Iodine Deficiency Disorders : आयोडीन की कमी से गर्भावस्था के दौरान पल रहे बच्चों का आईक्यू लेवल हो सकता है प्रभावित, जानें क्यों
नमक में पर्याप्त मात्रा में आयोडीन न हो तो इंसान कई प्रकार के रोगों का भी शिकार हो सकता है. गर्भ के दौरान बच्चों के विकास के लिए आयोडीन जरूरी है. इस दौरान आयोडीन की मात्रा कम रहने पर बच्चों का आईक्यू लेवल 8-10 फीसदी तक प्रभावित हो सकता है. किशोरावस्था के दौरान अगर आयोडीन की कमी हो, तो भी आईक्यू का लेवल 3-5 फीसदी तक सामान्य से कम हो सकता है. पढ़ें पूरी खबर..Global Iodine Deficiency Disorders Prevention Day, Iodine Deficiency Disorders, Diseases Due To Iodine.
हैदराबाद : 21 अक्टूबर को हर साल वैश्विक आयोडीन अल्पता विकार निवारण दिवस के रूप में मनाया जाता है. इसे विश्व आयोडीन अल्पता दिवस भी कहा जाता है. रोजमरा के जीवन में आयोडीन का महत्व की जरूरत के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए आज के दिन वैश्विक आयोडीन अल्पता विकार निवारण दिवस मनाया जाता है. इंसानों में सामान्य वृद्धि और विकास के लिए आयोडीन की आवश्यकता के बार में जन-जन तक पहुंचाने के लिए इस दिन कई तरह के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है.
विश्व शिखर सम्मेलन के बाद समस्या पर ध्यान किया गया केंद्रित 1990 में संयुक्त राष्ट्र की ओर से न्यूयॉर्क में बच्चों की समस्या पर विश्व शिखर सम्मेलन का आयोजन किया गया था. इस दौरान बच्चों से संबंधित रोगों के उन्मूलन के लिए वैश्विक कार्यक्रम पर बल दिया गया. शिखर सम्मेलन के बाद आयोडीन अल्पता विकार नियंत्रण हेतु अंतराष्ट्रीय परिषद (आईसीसीआईडीडी) ने दुनिया भर में आयोडीन की कमी से होने वाले विकारों से निपटने के लिए कार्य योजना पर काम शुरू कर दिया. इस विषय पर विशेष जागरूकता फैलाने के लिए 21 अक्टूबर 1992 को आयोजन किया गया. इसके बाद से 21 अक्टूबर को वैश्विक आयोडीन अल्पता विकार निवारण दिवस के रूप में मनाया जाने लगा.
वैश्विक स्तर पर सबों के लिए आयोडीन
1994 में विश्व स्वास्थ्य संगठन और यूनिसेफ ने दुनिया भर में सभी व्यक्तियों के लिए पर्याप्त मात्रा में आयोडीन सुनिश्चित करने के लिए एक नीति पर काम शुरू किया. इस दौरान सामान्य कीमत पर सालों भर सबों के लिए पर्याप्त आयोडीन उपलब्ध कराने के लिए यूनिवर्सल नमक आयोडीनीकरण के लिए काम किया. इसका फायदा कई वैसे देशों को भी हुआ जिनके पास आर्थिक व अन्य कारणों से आयोडीन युक्त नमक की उपलब्धता नहीं था.
बच्चों का आईक्यू लेवल 8-10 फीसदी हो सकता है प्रभावित
आयोडीन ग्लोबल नेटवर्क के अनुसार गर्भावस्था के दौरान आयोडीन की कमी से बच्चों के मस्तिष्क को स्थायी क्षति होती है. बच्चों का आईक्यू लेवल 8-10 फीसदी तक कम हो सकता है. वहीं स्कूली उम्र में आयोडीन की कमी से आईक्यू का लेवल 3-5 फीसदी तक प्रभावित हो सकता है. आयोडीन युक्त नमक के उपयोग से इस जटिल समस्या से मुक्त पाई जा सकती है.
यूनिसेफ की ओर से साल 2018 में जारी 'उज्जवल भविष्य, आयोडीकरण नमक के माध्यम से प्रारंभिक मस्तिष्क विकास की रक्षा करना' नामक एक रिपोर्ट जारी किया गया था. इसमें '1 अरब से भी ज्यादा लोगों के लिए बेहतर आयोडीन पोषण' शीर्षक से भारत केंद्रित कई जानकारियां मौजूद हैं.
आयोडीन की कमी के कारण गण्डमाला या घेंघा की समस्या को देखते हुए 1962 में राष्ट्रीय आयोडीन अल्पता विकार नियंत्रण कार्यक्रम को शुरू किया.
1983 में घेंघा उन्मूलन के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम को शुरू किया गया. इस दौनान आयोडीन युक्त नमक के उत्पादन को बढ़ाने के लिए निजी सेक्टर को भी इससे जोड़ा गया.
आयोडीन युक्त नमक के उत्पादन, वितरण सहित अन्य बिंदुओं को नियंत्रित करने के लिए विशेष नमक आयुक्त को तैनात किया गया.
1997 में गैर आयोडीन युक्त नमक के उपयोग पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया. महज 3 तीन साल बाद 2000 में गैर आयोडीन युक्त नमक के उपयोग पर लगे प्रतिबंध को हटा लिया गया.
गैर आयोडीन युक्त नमक पर प्रतिबंध के लिए लगातार पांच साल तक वकालत के बाद 2005 में भारत सरकार की ओर से प्रतिबंध बहाल कर दिया गया.
2014 में आयोडीन युक्त नमक के संबंध में राष्ट्रीय स्तर पर शोध के लिए वित्तीय मदद उपलब्ध कराया गया.
शोध में पाया गया कि 92 फीसदी घरों में आयोडीन युक्त नमक उपलब्ध था. वहीं 78 घरों में पर्याप्त मात्रा में आयोडीन युक्त नमक का उपयोग हो रहा था.
शोध में पाया गया कि हर दिन 90 फीसदी घरों में आयोडीन युक्त नमक की खपत प्रति व्यक्ति 5 ग्राम से ज्यादा है.
वर्ष 2000 तक, लगभग 70 फीसदी घरों में आयोडीन युक्त नमक की पहुंच होने से महत्वपूर्ण प्रगति हासिल हुई थी, जबकि 1990 में यह आंकड़ा 20-30 फीसदी था.
महामारी विज्ञान पर अंतरराष्ट्रीय जर्नल के अनुसार 2005 के आसपास आयोडीन की कमी की समस्या गंभीर हो चुकी थी. आयोडीन की कमी के कारण 130 देशों के 2 अरब से अधिक लोगों का मस्तिष्क सही से विकसित नहीं हो पाया था.