हमारी आंखें हमारे शरीर का वह अंग है जो पूरी दुनिया से हमारा परिचय कराती है. लेकिन कई बार बढ़ती उम्र, कुछ बीमारियों या अन्य कारणों से हमारी आंखों की रोशनी और उनके स्वास्थ्य पर असर भी पड़ सकता है. यह तक कि समस्या बढ़ने पर या समस्या को नजरअंदाज करने पर कभी-कभी आंखों की रोशनी जा भी सकती है. मोतियाबिंद भी ऐसी ही एक समस्या है. जिसके (Cataract Symptoms) लक्षण सामान्य तौर पर लोगों में 50 साल से अधिक आयु होने पर शुरू होते हैं. Eye diseases cataract symptoms causes blindness .
मोतियाबिंद और उसके प्रकार (Cataract types) : मोतियाबिंद एक ऐसी समस्या है जिसमें बढ़ती आयु , किसी रोग या अवस्था के चलते आंखों का वह प्राकृतिक पारदर्शी लेंस अपारदर्शी होने लगता है जो आँखों में प्रतिबिंब बनाने का कार्य करता है जिससे हम साफ देख पाते हैं. इसलिए जब यह लेंस अपारदर्शी होने लगता है तो लोगों को साफ दिखना कम होने लगता है जिससे नजर धुंधली और कई बार दोहरी भी होने लगती है. विभिन्न वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों की मानें तो भारत में तकरीबन 80 लाख लोगों की नजरें मोतियाबिंद के कारण कमजोर, धुंधली या दोहरी हो जाती हैं. इसके अलावा 60 साल की उम्र वाली जनसंख्या के लगभग आधे लोग इस समस्या से पीड़ित है. वही 70 वर्ष की उम्र के लोगों में 80% लोगों में कम से कम एक आंख में मोतियाबिंद की समस्या होती है.
दिल्ली के नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉक्टर अभिषेक सिंह (Dr Abhishek Singh, Ophthalmologist, Delhi ) बताते हैं कि मोतियाबिंद की शुरुआत होते ही आँखों की जांच करवानी जरूरी होती है. आमतौर पर लोग शुरुआत में नजर के कमजोर होने या धुंधला दिखने को ज्यादा गंभीरता से नहीं लेते हैं. यह वह दौर होता है जब मोतियाबिंद की शुरुआत हो रही होती है. इस अवस्था में यदि समय पर इलाज शुरू कर दिया जाय तो ज्यादातर मामलों में लेजर उपचार या सर्जरी से समस्या को बढ़ने से रोक जा सकता है. लेकिन यदि समस्या को अनदेखा किया जाए तो इसकी गंभीरता बढ़ने पर आँखों का लेंस पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो सकता है जिसका इलाज करना काफी मुश्किल हो सकता है. यहाँ तक कि कई बार इसी के चलते लोगों में दृष्टिहीनता की समस्या भी हो जाती है.
डॉ अभिषेक सिंह बताते हैं कि आमतौर पर बुजुर्गों में ग्लूकोमा यानी काला मोतिया तथा कैटरेक्ट यानी सफेद मोतिया (glaucoma, black cataract, white cataract) कि समस्या होना काफी आम होता है. इनमें सफेद मोतिया यानी कैटरेक्ट में आंखों के प्राकृतिक लेंस पर सफेद झिल्ली या बादल जैसी संरचना बनने लगती है. जिससे मोतियाबिंद के होने का पता अपेक्षाकृत जल्दी लग जाता है. शुरुआती दौर में इसका पता चले पर इसे लेजर, सर्जरी तथा दवाइयों कि मदद से बढ़ने से रोका जा सकता है. लेकिन ग्लूकोमा को ज्यादा जटिल समस्या की श्रेणी में रखा जाता है. दरअसल ग्लूकोमा होने पर आंख की ऑप्टिक नर्व क्षतिग्रस्त हो जाती है. जो हमारे रेटिना को दिमाग से जोड़ती है. आमतौर पर 65 साल से अधिक उम्र के लोगों में इसके ज्यादा मामले सामने आते हैं. ग्लूकोमा होने पर सिर्फ दृष्टि में कमजोरी या धुंधलापन जैसी समस्या ही नजर नहीं आती है बल्कि कभी आंख में सूखापन, तो कभी पानी आने या सिर दर्द की समस्या भी होने लगती है. यदि सही समय पर इस समस्या का इलाज ना करवाया जाए तो यह अंधेपन का कारण भी बन सकती है.