16 साल की दिव्या ने 10 वीं का पढ़ाई और इम्तेहान दोनों ही कोरोना के साएं में ऑनलाइन क्लास के जरिए दिए, लेकिन 11वीं की पढ़ाई के लिये जब दिव्या ने दोबारा नियमित स्कूल जाना शुरू किया तो एक तो स्कूल न जाने की आदत के कारण और दूसरे पढ़ाईका दबाव अचानक से बढ़ जाने के कारण दिव्या हद से ज्यादा तनाव महसूस करने लगी , और अचानक से जरूरत से ज्यादा और लगभग लगातार कभी भोजन तो कभी स्नेक्स खाने लगी. दिव्या की खाने की आदतों ने नहीं बल्कि उसके व्यवहार में परिवर्तन महसूस करने करने पर उसके अभिभावकों ने जब उसकी काउंसलिंग कराई तक जाकर पता चला की दिव्या ईटिंग डिसऑर्डर का शिकार है . सिर्फ दिव्या ही नही आमतौर पर लोगों में खाने पीने का असामान्य आदतों को लेकर लोग ज्यादा सचेत नहीं रहते हैं इसलिए ईटिंग डिसऑर्डर जैसी समस्या पर ज्यादातर लोगों का प्राथमिक स्तर पर ध्यान नहीं जाता है. लेकिन यह पीड़ित के सामान्य जीवन को काफी प्रभावित करता है.
दिल्ली के मनोवैज्ञानिक सलाहकार और चाइल्ड काउन्सलर डॉ रविश पांडे बताते हैं कि ईटिंग डिसऑर्डर होने के लिये कोई एक स्पष्ट कारण जिम्मेदार नही होता है. कई बार परिस्तिथि जन्य तो कभी अनुवांशिक, मानसिक, भावनात्मक या सामाजिक कारणों के चलते यह विकार हो सकता है जैसे तनाव, वजन कम करने की चाहत, दुख , बैचेनी तथा पारिवारिक व कार्य संबंधी समस्याएं . सामान्य परिस्तिथ्यों में यह विकार किशोरावस्था या युवावस्था में ज्यादा नजर आता है .
ईटिंग डिसऑर्डर के प्रकार:
डॉ रविश पांडे बताते हैं कि ईटिंग डिसऑर्डर ज्यादा या कम खाने, दोनों से जुड़ा हो सकता है. इस डिसॉर्डर के लगभग 2 प्रकार सबसे ज्यादा देखने सुनने में आते हैं. जो इस प्रकार हैं.
- बुलिमिया नर्वोसा:वहीं बुलीमिया नर्वोसा में व्यक्ति जरूरत से ज्यादा खाता है और हमेशा अपने वजनको लेकर चिंतित रहता है. ऐसे लोग ज्यादातर अपने भोजन पर नियंत्रण नहीं रख पड़े हैं और फिर पछतावे के प्रभाव में भोजन को पचाने के लियए जरुरत से ज्यादा व्यायाम और डायटिंग करने लगता है. यही नही इस मनोविकार के ज्यादा गंभीर प्रभाव होने पर पीड़ित कई बार खाने के बाद गले में उंगली डालकर उल्टी करने लगता है , जिससे आहार का उसके शरीर पर असर न पड़े.
- एनोरेक्सिया नर्वोसा: एनोरेक्सिया नर्वोसा से पीड़ित व्यक्ति के अंदर हर वक्त इस बात का डर रहता है कि कहीं उसका वजन तो नहीं बढ़ रहा. इस चक्कर में वह कम खाना शुरू कर देता है। नतीजा यह होता है कि समय के साथ उसका वजन और बॉडी मास कम होता जाता है। जिससे पीड़ित को कमजोरी और चक्कर आने लगते हैं और वह बहुत कमजोर हो जाता है. यह अवस्था आमतौर पर उन लोगों में ज्यादा नजर आती है जो बचपन में मोटापे का शिकार होते हैं.