मॉनसून का खुशनुमा मौसम परेशानियाँ भी कम नहीं लाता है। तमाम तरह की बीमारियों और संक्रमणों के लिए इस मौसम में फैली नमीं को जिम्मेदार माना जाता है। सर्दी-जुखाम, फ्लू, त्वचा रोग, पेट में संक्रमण सहित इस मौसम में हर उम्र के लोगों में कानों में संक्रमण जैसी समस्या भी देखने में आती है। मानसून का मौसम किस तरह कानों की समस्या बढ़ा सकता है इस बारें में ETV भारत सुखीभवा को ज्यादा जानकारी देते हुए ईएनटी सेंटर इंदौर के नाक, कान, गला, कैंसर, एलर्जी विशेषज्ञ, इंडोस्कोपिस्ट एवं सर्जन तथा जर्मनी से एडवांस ईएनटी ट्रेनिंग प्राप्त डॉ सुबीर जैन, कानों के संक्रमण के जड़ से इलाज के लिए ईएनटी विशेषज्ञ से ही जांच व इलाज करवाने की सिफारिश करते हैं।
क्या है कान में कवक यानी फंगल संक्रमण
डॉ सुबीर जैन बताते हैं की हर साल मानसून के दौरान काफी लोग कान में फंगस और संक्रमण की समस्या का शिकार होते हैं। बरसात के मौसम में वातावरण में नमी कानों में फंगल इंफेक्शन के खतरे को काफी ज्यादा बढ़ा देती है। वे बताते हैं की हमारे कान में मौजूद ग्लैंड्स में सेरुमेन बनाता है, जिसे आम भाषा में वैक्स या कान का मैल भी कहा जाता है। अलग-अलग लोगों के कान में इसकी प्रकृति अलग-अलग होती है जैसे कुछ लोगों के कान में यह मोम ज्यादा तरल प्रकृति का होता है तो कुछ में हल्का सख्त, और कुछ लोगों में ज्यादा सख्त । जब बारिश के मौसम में नमी बढ़ जाती है जो यह वैक्स इस नमीं को सोखने लगता है और फूल जाता है । जिससे कान की नाली में बाधा उत्पन्न होने लगती है । जिसके चलते कान में बंद होने, दर्द होने या खुजली होने जैसे अहसास होने लगते हैं। समस्या ज्यादा बढ़ने पर यह संक्रमण कान के परदे को भी नुकसान पहुँचा सकता है।
यह संक्रमण दो प्रकार के हो सकते हैं, एक है कैंडिडा और दूसरा है एस्पर्जिलस। कैंडिडा में कान से सफेद पस जैसा पदार्थ या फ्लैक्स निकलते है। और यदि कान से खून जैसे रंग वाला पदार्थ या द्रव्य निकलता है तो ये अवस्था एस्पर्जिलस होता है। डॉ जैन बताते हैं कि इन दोनों ही प्रकार के संक्रमणों के इलाज के लिए बहुत जरूरी है की चिकिसक से पूरा उपचार कराया जाय। कई बार लोग दूसरों से सुन के या कैमिस्ट से कान में संक्रमण के लिए दवाई या ड्रॉप ले लेते हैं और बगैर चिकित्सीय सलाह के उनका इस्तेमाल करने लगते हैं जिससे कान में संक्रमण के ज्यादा फैलने और कान के परदे को स्थाई नुकसान पहुँचने की आशंका बढ़ जाती है।
ईयर बड्स और माचिस की तीली से बनाएँ दूरी
डॉ सुबीर जैन बताते हैं की कान में वैक्स एक प्राकृतिक सुरक्षा होती है, जो बाहरी धूल और बैक्टीरिया को कान के भीतरी हिस्सों में जाने से रोकती है। आमतौर पर लोग कानों के मैल निकालने के लिए बालों की चिमटी, माचिस की तीली तथा अन्य चीजों का उपयोग करते हैं जो सही नहीं है। दरअसल एक प्राकृतिक प्रक्रिया के चलते यदि कान में वैक्स जरूरत से ज्यादा बन जाये तो वह अपने आप बाहर आ जाता है । लेकिन यदि ऐसा न हो तो किसी भी दुर्घटना या संक्रमण से बचने के लिए स्वतः कान का मैल साफ करने से बचना चाहिए। डॉ जैन बताते हैं की आमतौर पर लोग कान की सफाई के लिए माचिस की तीली का उपयोग करते हैं। दरअसल माचिस की तीली पर लगे मसाले में नमी या फफूंद, कान में फंगल इन्फेक्शन का कारण बन सकती है। वहीं बालों की चिमटी का इस्तेमाल करने से कानों की अंदरूनी त्वचा, यहाँ तक की कान के परदे पर भी चोट लग सकती है।