इंदौर में एक सोसाइटी में रहने वाली 35 वर्षीय कविता शिवहरे पिछले कुछ समय से गंभीर एंजायटी डिसऑर्डर झेल रही हैं। कविता के अनुसार कोरोना की दूसरी लहर के चलते लगातार बढ़ रही जनहानि की घटनाओं के चलते उनके मन में अपने जीवन को लेकर भी अनिश्चितता का डर पैदा हो गया है। स्थिति इतनी गंभीर है कि यदि आजकल किसी के सामान्य रूप से बीमार पड़ने पर या सामान्य अवस्था में किसी की मृत्यु की खबर सुनने पर भी उन्हे बहुत ज्यादा बेचैनी और घबराहट होने लगती है।
कविता जैसा ही कुछ हाल देहरादून में रहने वाले राजेश अग्रवाल का भी है। 45 वर्षीय राजेश बताते हैं कि आए दिन अपने आसपास हर उम्र के लोगों की मृत्यु की खबर सुनकर बेहद तनाव महसूस होता है। पिछले दिनों सोशल नेटवर्किंग साइट पर लगातार आ रहे कोरोना संक्रमण के चलते होने वाली मृत्यु संबंधी संदेशों को सुनकर और पढ़ कर मन में अजीब सा डर और घबराहट उत्पन्न होने लगी है। स्थिति ऐसी है कि आजकल किसी का फोन उठाने में या सोशल नेटवर्किंग साइट देखने तक में डर लगता है कि पता नहीं कब किस की खबर आ जाए।
यह सिर्फ कविता और राजेश की समस्या नहीं है हमारे देश में इस समय अधिकांश लोग इस प्रकार के डर और एंजाइटी का सामना कर रहे हैं। चिंता की बात यह है कि इस तरह की मानसिक अवस्था से पीड़ित लोगों में सिर्फ वे ही लोग शामिल नहीं है जिन्होंने कोरोना के कारण अपने परिजन या नजदीकी लोगों को खोया हो या फिर कोरोना के चलते गंभीर परिस्थितियों को झेला हो ।
वर्तमान परिस्थितियों के चलते लोगों के मन में पनपने वाली नकारात्मकता और गंभीर मानसिक समस्याओं की प्रभावों को लेकर ईटीवी भारत सुखी भव की टीम ने वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉक्टर वीना कृष्णन से बात की।
भविष्य की चिंता बढ़ा रहा है समस्याएं
डॉक्टर कृष्णन बताती है कि आजकल उनके पास सलाह तथा इलाज के लिए आने वाले अधिकांश लोग किसी ना किसी कारण से भय, अनिश्चितता, दुख, डर, एंजाइटी और तनाव सहित कई मानसिक समस्याओं से पीड़ित होते हैं। यह सत्य है कि कोरोना की दूसरी लहर के चलते बड़ी संख्या में हुई जनहानि की घटनाओं ने लोगों के मन मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव छोड़ा है। बड़ी संख्या में लोगों के मन में यह डर घर कर गया है कि उनके जीवन का भी कोई भरोसा नहीं है। वहीं ऐसे लोग जिन्होंने अपने परिवार के किसी सदस्य, किसी नजदीकी व्यक्ति तथा दोस्त को खोया हो , उनके मन में दुख और एंजाइटी के साथ अपराध बोध जैसी भावनाएं भी घर करने लगी है क्योंकि उन्हें लगता है कि वह कठिन परिस्थितियों में अपने अपनों की मदद नहीं कर पाए और उनका जीवन बचाने में सफल नहीं हो पाए। उस पर यदि काल के ग्रास में समाने वाले व्यक्ति की उम्र कम हो तो उसके दोस्तों व परिजनों पर उसकी मृत्यु का ज्यादा प्रभाव नजर आ रहा है।
डॉक्टर कृष्णन बताती है कि वर्तमान परिस्थितियां ऐसी है कि लोग चाह कर भी लोगों से मिलजुल नहीं पाते हैं और प्रत्यक्ष तौर पर उनकी मदद नहीं कर पाते हैं जिससे उनके मन का अपराध बोध ज्यादा बढ़ जाता है।
ग्रीफ साइकिल के यह पांच चरण
एलिजाबेथ कूबलर रॉस ने 1969 में अपनी पुस्तक “ऑन द डेथ एंड डाईंग” में दुख के पांच चरणों का उल्लेख किया था। डॉक्टर कृष्णन बताती है कि वर्तमान परिस्थितियों में बड़ी संख्या में लोग इन पांचों चरणों को महसूस कर रहे हैं। ग्रीफ साइकिल के यह पांच चरण इस प्रकार हैं।
1. डिनायल यानी अस्वीकार्यता
इस स्तर में आमतौर पर लोग दुर्घटना को लेकर अस्वीकार्यता का भाव रखते हैं। आमतौर पर इस स्तर में लोग भ्रम, परिस्थितियों से बचने तथा सदमा जैसी भावनाओं का एहसास करते हैं।
2. एंगर यानी गुस्सा