हाल ही में अमेरिका स्थित इंडियाना यूनिवर्सिटी स्कूल आफ मेडिसिन द्वारा अस्थमा तथा एलर्जी को लेकर किए गए एक शोध में इन समस्याओं के शरीर पर प्रभावों को तथा उन्हे बढ़ाने वाले कारकों को लेकर अध्धयन किया गया था. हालांकि शोध में अमेरिकी जनसंख्या को केंद्र में रखा गया था , लेकिन अस्थमा तथा श्वास संबंधी समस्याएं पूरी दुनिया में आम बात है. दुनिया भर में बड़ी संख्या में बच्चे व वयस्क अस्थमा से पीड़ित हैं. यहां यह जानना भी जरूरी है की अस्थमा या संबंधित एलर्जी कई बार कई अन्य रोगों या समस्याओं का कारण भी बन सकते हैं.
इंडियाना यूनिवर्सिटी स्कूल आफ मेडिसिन का शोध
"साइंस इम्यूनोलाजी" में प्रकाशित इस अध्धयन में अस्थमा होने तथा उसके इलाज में एंटीजन सेल तथा साइटोकाइन विशेषकर इंटरल्यूकिन -9 की भूमिका को लेकर अध्धयन किया गया था. शोध में बताया गया कि सीजनल अस्थमा या किसी मौसम विशेष में होने वाली एलर्जी या पराग कणों व शैवाल आदि कारकों से होने वाली एलर्जी के होने की अवस्था में पीड़ितों में एंटीजन सेल सीडी4, पॉजिटिव टी-सेल को सक्रिय कर देते हैं, जिससे साइटोकाइन का स्राव होने लगता है .
विशेषतौर पर अस्थमा व खाद्य एलर्जी के मरीजों में इंटरल्यूकिन -9 (आइएल-9) नामक साइटोकाइन पाया जाता है, जो पीड़ितों में सांस की नालियों व फेफड़ों में सूजन या जलन के लिए जिम्मेदार होता है. इस अध्धयन में शोधकर्ताओं ने आईएल-9 के एलर्जिक मेमोरी पर प्रतिक्रिया को लेकर अध्धयन किया .
शोध के निष्कर्षों में वरिष्ठ लेखक तथा इंडियाना यूनिवर्सिटी स्कूल आफ मेडिसिन के माइक्रोबायोलाजी एवं इम्यूनोलाजी विभाग के अध्यक्ष मार्क कपलान ने बताया कि आइएल-9 का मुख्य निशाना माइक्रोफेज नामक कोशिकाएं होती हैं. लेकिन आइएल-9 के रिसेप्टर के अभाव में फेफड़ों में अपेक्षाकृत कम संक्रमण होता है.
उन्होनें बताया कि हालांकि, अभी यह स्पष्ट नहीं है कि आइएल-9 सूजन को कैसे बढ़ाता है लेकिन उन्होंने इस बात पर जोर दिया है कि "एलर्जी की वजह से होने वाले फेफड़ों के संक्रमण के मामले में यह अध्धयन काफी अहम है और यह बीमारी के इलाज का नया मार्ग प्रशस्त करता है. "
अस्थमा का स्वास्थ्य पर प्रभाव
वैसे तो अस्थमा, श्वसन तंत्र विशेषतौर पर फेफड़ों की बीमारी है. लेकिन कई बार हर उम्र के लोगों विशेषकर बच्चों में यह कई अन्य समस्याओं या रोगों के लिए ट्रिगर का काम भी कर सकता है.
यूईजी वीक वर्चुअल 2020 में प्रस्तुत एक अध्ययन में कहा गया था कि 12 साल की उम्र में यदि बच्चे में अस्थमा और फूड एलर्जी की समस्या हो तो उनमें 16 साल या उसके बाद “इर्रिटेबल बाउल सिंड्रोम” होने की आशंका बढ़ जाती है. स्वीडन के स्टॉकहोम में गोथेनबर्ग विश्वविद्यालय और करोलिंस्का इंस्टीट्यूट में किए गए इस शोध में 16 साल की उम्र तक के 2,770 बच्चों के स्वास्थ्य का विश्लेषण किया गया था. इसके अलावा 2018 में प्रकाशित, स्पेन के बार्सिलोना इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ के एक शोध में बताया गया था कि अस्थमा या संबंधित सांस संबंधी रोगों के चलते मोटापे का खतरा भी हो सकता है. इस शोध में 8,618 लोगों पर अध्ययन किया गया था.