कहते हैं कि विवाह सिर्फ दो लोगों का नहीं, बल्कि दो परिवारों का मिलन होता है. विवाह के समय पूरी जिंदगी को हंसी खुशी और जिम्मेदारी से निभाने के साथ एक दूसरे की जरूरतें पूरी करने की कसमें ली जाती है. यह आयोजन एक जोड़े को एक सामाजिक रिश्ते में तो बांध देता है, लेकिन जो रिश्ता उनके जीवन की बुनियाद बनता है, वह होता है आपसी प्रेम. ऐसा प्रेम जो शरीर के मिलन से शुरू होकर रिश्ते को बुनियाद देता है और प्रेम को रूमानी परिभाषा. लेकिन कई बार लोगों की अत्याधिक अपेक्षाएं और शारीरिक संसर्ग को लेकर ज्ञान की कमी और डर के कारण नवविवाहितों का शारीरिक प्रेम यानि संभोग से पहला साक्षात्कार उन्हें बुरा अनुभव दे जाता है.
क्या कारण होते हैं, जो रिश्तों की इस मीठी शुरूआत को डर, तनाव, असंतुष्टि और बेचैनी से भर देते हैं. इस बारे में ETV भारत सुखीभवा टीम ने वरिष्ठ मनोचिकित्सीय सलाहकार डॉ. रश्मि वाधवा से बात की.
सही जानकारी और सही व्यक्ति से जानकारी का अभाव
डॉ. वाधवा बताती हैं उनके पास ऐसे कई केस आते है, जहां नवविवाहित जोड़े आपसी सामंजस्य कायम नहीं कर पा रहें होते हैं. जांच तथा बातचीत करने के बाद पता चलता है कि उनकी आधी से अधिक परेशानियों का कारण उनके असंतुष्ट शारीरिक रिश्ते हैं. वह बताती हैं कि हमारे समाज में सेक्स एजुकेशन अभी भी एक ऐसा विषय है, जहां लोग बोलने से पहले चार बार सोचते हैं. ऐसा भी कोई रिवाज नहीं है, जहां शादी से पहले लड़के या लड़की को इस बारे में सही तरीके से जानकारी दी जाये. युवा ज्यादातर जानकारी अपने दोस्तों से तथा टीवी देखकर या ऐसे ही अन्य माध्यमों से प्राप्त करते हैं.
अब होता कुछ यूं है कि अतिउत्साहित जानकारों द्वारा शारीरिक संबंधों का अतिश्योक्तिपूर्ण बखान युवाओं में उत्साह को एक अलग ही दिशा में ले जाता है. और यदि युवा पोर्न जैसे माध्यम से शारीरिक संबंधों के बारे में जानकारी लेता है, तो संभोग को लेकर उसके दिलों दिमाग पर एक अलग ही काल्पनिक अवधारणा बन जाती है, जो सच से बहुत दूर होती है. ऐसे में विवाह के बाद शारीरिक संबंधों के शुरूआती दौर में पुरुष और महिलाएं दोनों ही डर और अतिअपेक्षा का शिकार बन जाते हैं. जिसका नतीजा निराशा जनक शारीरिक संबंध होता है.