ऑटिज्म एक ऐसी विकासपरक अवस्था या विकार है, जिसके चलते ऑटिस्टिक बच्चों को सामाजिक मेलजोल में, दूसरों से संपर्क साधने तथा अपने व्यवहार को संयमित तथा नियंत्रित रखने में समस्याएं आती है। चिंताजनक बात यह है कि साल दर साल इस समस्या से पीड़ितों का आंकड़ा लगातार बढ़ता जा रहा है। आंकड़ों की मानें तो वर्तमान समय में भारत में 2 मिलियन से ज्यादा लोग ऑटिज्म से पीड़ित हैं।
ऑटिज्म के लक्षणों तथा उसके प्रबंधन से जुड़े विभिन्न मुद्दों को जनता के संज्ञान में लाने तथा उन्हें इस संबंध में जानकारियों को लेकर जागरूक करने के उद्देश्य से 2 अप्रैल को 'विश्व ऑटिज्म दिवस' का आयोजन किया जाता है।
सरल नहीं है ऑटिज्म प्रबंधन की राह
सेतु सेंटर फॉर चाइल्ड डेवलपमेंट एंड फैमिली गाइडेंस सालीगाओ, गोवा की निदेशक तथा बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर नंदिता डिसूजा बताती है कि सही समय पर इस रोग की जानकारी मिलने पर काफी हद तक ऑटिस्टिक बच्चों की स्थिति तथा उनके व्यवहार को नियंत्रित किया जा सकता है। लेकिन सिर्फ सामान्य लक्षणों के आधार पर उनके लिए इलाज की प्रणालियां निर्धारित नहीं की जा सकती है। दरअसल कई बार कुछ लक्षण बच्चों में देर से नजर आने शुरू होते हैं, जिन पर ध्यान दिया जाना बहुत जरूरी होता है। विश्व ऑटिज्म दिवस के अवसर पर ETV भारत सुखीभवा की टीम को इस संबंध में ज्यादा जानकारी देते हुए डॉ नंदिता बताती हैं की ऑटिस्टिक बच्चों में संचार, बोलने और सुनने से पहले लोगों के चेहरे के भावों से शुरू होता है। किसी भी खेल या थेरेपी के दौरान चिकित्सक, थेरेपिस्ट, माता-पिता या अन्य लोगों के चेहरे के अलग-अलग भाव यदि बच्चे का ध्यान अपनी तरफ खींच लेते हैं, तो यह बच्चे के विकास में एक बहुत बड़ी उपलब्धि मानी जाती है।
ऑटिज्म के शुरुआती लक्षण
डॉक्टर नंदिता बताती हैं कि यूं तो बच्चे के जन्म के बाद वैसे ही परिजन उसके हावभाव और उसकी हरकतों पर जरूरत से ज्यादा ध्यान देते हैं। लेकिन इसके साथ ही उनका बच्चों के असामान्य व्यवहार विशेषकर दूसरों से किसी भी माध्यम से संपर्क बनाने में अक्षमता, प्रतिक्रिया ना देना या देरी से देना या उसके चेहरे के उदासीन हाव भाव को लेकर सचेत रहना भी बहुत जरूरी है। डॉक्टर नंदिता बताते हैं कि जन्म के उपरांत उम्र के आधार पर बच्चों में ऑटिज्म के नजर आने वाले लक्षण इस प्रकार हैं;
- 6 महीने तक: बच्चे का खिलखिला कर ना हंसना, किलकारियां मारना तथा चेहरे पर खुशी तथा उत्साह जैसी भावों की कमी।
- 9 महीने तक: ना के बराबर या बिल्कुल भी आवाज नहीं निकालना, किसी भी माध्यम से दूसरों से संपर्क से बचना, चेहरे पर मुस्कुराहट सहित किसी भी प्रकार के भाव ना आना।
- 12 महीने तक: अपने नाम के प्रति प्रतिक्रिया ना देना। आवाज निकाल, दूसरों को छूकर या हाथ हिला कर, किसी भी प्रकार से दूसरों से संवाद या संचार स्थापित ना कर पाना।
- 16 महीने तक: बिल्कुल भी बात ना करना।
- 24 महीने तक: सामान्य तरीके से बात ना कर पाना। तथा बातों को लगातार दोहराते रहना।