एंटी मुलेरियन हार्मोन (एएमएच) महिलाओं के शरीर में पाया जाने वाला जरूरी प्रोटीन हार्मोन है। गर्भधारण में आने वाली समस्याओं से जूझ रही ज्यादातर महिलाओं में इस हार्मोन की गड़बड़ी पाई जाती है। यह हार्मोन अंडाशय में बनता है और इसका स्तर अंडाणुओं के प्रवाह को प्रभावित करता है। एंटी मूलेरियन हार्मोन के स्तर में कमी किस तरह हमारी प्रजनन क्षमता को प्रभावित कर सकती है, साथ ही एएमएच रक्त जांच के माध्यम से किस तरह भविष्य में मां बनने की संभावनाओं के बारे में जाना जा सकता है, के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए केआईएमएस फर्टिलिटी सेंटर, हैदराबाद की प्रजनन विशेषज्ञ तथा विभाग अध्यक्ष तथा मदर टू बी फर्टिलिटी में निदेशक डॉ. एस वैजयंथी ने बताया कि महिलाओं के शरीर में एएमएच का स्तर कम होने से बांझपन जैसी समस्या तक हो सकती है।
एंटी मुलेरियन हार्मोन के स्तर में कमी के कारण
डॉ. वैजयंथी बताती हैं की महिलाओं में इस हार्मोन का स्तर आमतौर पर उनके अच्छे ओवेरियन रिजर्व यानी अंडाशय द्वारा पर्याप्त मात्रा में फर्टिलाइज होने लायक एग सेल्स उपलब्ध कराने का संकेत है। यह हार्मोन छोटे विकसित फॉलिकल्स के जरिए बनता है। वैजयंती बताती हैं कि शरीर में एएमएस का स्तर कम होना इस बात का संकेत है कि महिला की ओवरी में बनने वाले अंडों की संख्या प्रजनन के लिए जरूरी संख्या से कम है। वैसे भी जैसे-जैसे महिलाओं की उम्र बढ़ती है, उनकी प्रजनन क्षमता या उनकी गर्भधारण करने की क्षमता में कमी आने लगती है। जानकारों के अनुसार एक स्वस्थ महिला के शरीर में एमएच का सामान्य स्तर 2.0-3.0 एनजी/ मिलीलीटर होता है। लेकिन यदि शरीर में एमएच की मात्रा 1 एनजी/ मिलीलीटर से कम हो, तो उसे लो यानि कम एएमएच माना जाता है।
आमतौर पर रजोनिवृत्ति यानी मेनोपॉज के समय तथा उम्र बढ़ने के साथ महिलाओं में एमएच का स्तर काफी कम होने लगता है। ऐसी महिलाएं जिनमें यह स्तर जरूरत से कम हो, उन्हें गर्भधारण करने में काफी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
डॉ. वैजयंथी बताती हैं कि बढ़ती उम्र के अलावा शरीर के पोषण में गड़बड़ी, विटामिन की कमी तथा कई बार कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों के उपचार के दौरान की जाने वाली कीमो या रेडिएशन थेरेपी का शरीर पर असर महिलाओं में अंडों की कमी का कारण बनता है।
कब कराएं एएमएच टेस्ट
ऐसी महिलाएं जो गर्भधारण के लिए विभिन्न प्रकार के उपचार करवाने के बारे में सोच रही हो या फिर ऐसी महिलाएं, जो 30 वर्ष के बाद भी गर्भधारण करने में सफल ना हो पा रही हों, इस टेस्ट को करवा सकती हैं। वहीं ऐसी महिलाएं जो देर से मां बनने की इच्छुक हों, वह भी इस टेस्ट के माध्यम से अपने अंडों की गुणवत्ता के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकती हैं, जिससे आवश्यकता पड़ने पर भविष्य के लिए अपने अंडों को संरक्षित करवा सकें।
एएमएच के लिए उपचार पद्धतियां