कार्पल टनल सिंड्रोम :ऐसे लोग जो ऐसे पेशों से जुड़े हों या ऐसे कार्य करते हैं जिनमें उनकी कलाईयों पर लगातार जरूरत से ज्यादा दबाव रहता हो, आमतौर पर हाथ या कलाई में झनझनाहट, दर्द या अकड़न जैसी ( Wrist problems ) अनुभूति करते हैं. आमतौर पर कभी-कभी या क्षणिक अवधि के लिए ऐसा होने पर ज्यादातर लोग इन्हे गंभीर ना मानते हुए अनदेखा कर देते हैं. लेकिन ऐसा करना कई बार भविष्य में गंभीर समस्याओं का कारण बन सकता है. क्योंकि कई बार इस तरह की समस्याओं के लिए मांसपेशियों या तंत्रिकाओं में समस्या या न्यूरोपैथी समस्याएं ( Nerve problems or neuropathy problems ) जिम्मेदार हो सकती हैं. ऐसी ही एक समस्या है कार्पल टनल सिंड्रोम.
Carpal Tunnel Syndrome या सीटीएस एक ऐसी चिकित्सीय स्थिति है जिसमें कलाई में मीडियन तंत्रिका ( Nerve ) अलग-अलग कारणों से ज्यादा दबाव के चलते संकुचित हो जाती है. ऐसा होने पर हाथ में पेरेस्टेसिया, सुन्नता और मांसपेशियों में कमजोरी जैसी परेशानियां नजर आने लगती है. इंदौर के फिजियोथेरेपिस्ट डॉ राकेश जोशी बताते हैं कि नियमित रूप से लगातार या ज्यादा देर तक ऐसी गतिविधि का अभ्यास जिसमें विशेषकर अंगूठे व कलाई के साथ कोहनी तथा कंधे में मौजूद मांसपेशियों विशेषकर मिडियन तंत्रिका ( Nerve ) पर ज्यादा दबाव पड़े, Carpal Tunnel Syndrome या CTS का कारण बन सकती है.
Carpal Tunnel Syndrome के शुरुआती चरण में पीड़ित को मिडियन नर्व के आसपास के हिस्सों में जैसे अंगूठा, तर्जनी उंगली, रिंग फिंगर, कलाई तथा कोहनी के आसपास सुन्नता, दर्द, या फिर सुई के चुभने जैसी अनुभूति होने लगती हैं. कुछ रोगियों को हथेली में भी लक्षण ( Wrist injury ) महसूस हो सकते हैं. धीरे-धीरे समस्या बढ़ने पर उसका प्रभाव पीड़ित के प्रभावित हाथ पर ज्यादा नजर आने लगता है . यहां तक की इसके चलते उसकी उंगुलियों की पकड़ या चीजों को उठाने की क्षमता भी कमजोर होने लगती है. समस्या ज्यादा बढ़ने पर कभी-कभी अंगूठे के नीचे की मांसपेशियों में पक्षाघात जैसी समस्या भी हो सकती है.
कार्पल टनल सिंड्रोम का कारण
डॉ राकेश बताते हैं कार्पल टनल सिंड्रोम को दरअसल Repetitive strain injury की श्रेणी में रखा जाता है . वह बताते हैं कि सीटीएस को आइडियोपैथिक भी कहा जाता है क्योंकि कई बार इसके कारण अज्ञात भी हो सकते हैं. आमतौर पर इसके लिए हाथ या कलाई में किसी प्रकार की चोट, गठिया (रुमेटीइड गठिया), मधुमेह, ऑस्टियोपोरोसिस, हाइपोथायरायडिज्म, मल्टीपल मायलोमा, एक्रोमेगाली, मोटापा या ओबेसिटी जैसी समस्याएं, लिपोमा और कलाई में गांठ , हार्मोन में उतार-चढ़ाव तथा आनुवंशिक कारण जिम्मेदार हो सकते हैं. कई बार कुछ विशेष बीमारियों के इलाज के लिए ली जाने वाली दवाओं के चलते भी यह समस्या हो सकती है.
महिलाओं में कभी-कभी गर्भावस्था में इस सिंड्रोम का प्रभाव देखने में आ सकता है. वहीं ऐसी महिलायें जो मासिक चक्र को आगे बढ़ाने वाली गोलियों का सेवन करती हैं उनमें भी इस समस्या के लक्षण नजर आ सकते हैं. वह बताते हैं कि सामान्य परिस्थितियों में यह समस्या ज्यादातर 50 वर्ष से ज्यादा आयु वाले लोगों में देखने में आती है. वहीं यह पुरुषों की तुलना में महिलाओं को ज्यादा प्रभावित करती है. इस समस्या के प्रभाव या इसके कारण होने वाली परेशानियां वैसे तो दिन में कभी भी महसूस हो सकती हैं, लेकिन रात में यह समस्याएं आमतौर पर ज्यादा परेशान करती है.