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ब्लैक फंगस पहुंचा सकता हैं आपकी आंखों को नुकसान

कोरोना के पार्श्व प्रभाव के रूप में प्रसिद्धि पा चुका म्यूकरमायकोसिस यानी ब्लैक फंगस लोगों के समक्ष चिंता का एक बडा सबब बना हुआ है। ब्लैक फंगस के नाम से मशहूर यह संक्रमण शरीर के सभी महत्वपूर्ण अंगों पर असर डालता है, विशेष तौर पर हमारी आँखों पर। ध्यान न देने पर यह संक्रमण हमें नेत्रहीन तक बना सकता है ।

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Published : Jun 4, 2021, 5:45 PM IST

अत्यंत जटिल और जानलेवा माना जाने वाला म्यूकरमायकोसिस यानी ब्लैक फंगस संक्रमण यूं तो शरीर के सभी अंगों को प्रभावित करता है, लेकिन आँखों पर इसका असर ज्यादा नजर आता है। समय रहते यदि संक्रमण के लक्षणों पर ध्यान न दिया जाए तो रोगी को आँखों से जुड़ी कई समस्याएं हो सकती है।यहाँ तक की उनकी आँखों की रोशनी भी जा सकती है। आँखों पर इस संक्रमण के असर को लेकर ईटीवी भारत सुखीभवा की टीम ने “ दिया पीड़ियाट्रिक आई केयर” की निदेशक तथा रेनबो चिल्ड्रन अस्पताल हैदराबाद की नेत्र रोग विशेषज्ञ तथा न्यूरो ऑपथेलमोलोजिस्ट डॉ सुषमा रेड्डी काटुकुरी से बात की।

क्या है म्यूकर मायकोसिस और कैसे फैलता है

डॉ सुषमा बताती है की म्यूकरमायकोसिस फैलाने वाले जीवाणु (फफूंद यानी फंगस) हमारे वातावरण में मौजूद रहते है। जो हवा, प्रदूषण, मिट्टी, खाद, पौधे और दूषित फलों या सब्जियों से फैलते हैं तथा ऐसे लोग जिनकी इम्यूनिटी कमजोर होती है उन्हें यह अपना शिकार बनाता है । यह जीवाणु पहले हमारे साइनस में प्रवेश करते हैं जिसेके उपरांत वे आँखों को प्रभावित करते हैं। यह संक्रमण होने पर सबसे पहले लोगों को बंद नाक, नाक बहना और नाक से काले ता भूरे रंग का कफ निकालना, चेहरे में दर्द, सूजन व सुन्नता होना, सिर में दर्द, दांतों में दर्द, उनका कमजोर होना तथा टूट जाने जैसे लक्षण नजर आते हैं।

संक्रमण के फैलने के कारण

डॉ सुषमा बताती है की जिन लोगों के शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता काफी मजबूत है उनके शरीर पर इस संक्रमण का ज्यादा असर नहीं पड़ता है। जब इस संक्रमण के वायरस कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता वाले व्यक्ति के संपर्क में आते हैं तो यह पोषित होना शुरू हो जाते हैं और पीड़ित व्यक्ति के शरीर को तेजी से प्रभावित करने लगते हैं। म्यूकर माइकोसिस के लगातार बढ़ रहे मामलों के लिए कुछ जिम्मेदार कारकों को जिम्मेदार माना जाता है।

  • कोविड-19 संक्रमण के इलाज के दौरान लंबे समय तक तथा ज्यादा मात्रा में स्टेरॉयड के उपयोग के परिणाम स्वरूप शरीर में रक्त शर्करा का स्तर अनियंत्रित होने पर ।
  • कोरोना के चलते शरीर में प्रतिरक्षा दमन उत्पन्न होने की स्थिति में ।
  • शरीर में इम्यूनिटी बढ़ाने वाली दवाइयां जैसे तौसिलीजुमेब तथा इटोलिजूमैब के जरूरत से ज्यादा सेवन से ।
  • कोरोना के मरीजों द्वारा अनावश्यक रूप से एंटीबायोटिक का इस्तेमाल करने से।
  • कोरोना के इलाज के दौरान दूषित ऑक्सीजन का इस्तेमाल या ह्यूमिडिफायर में पानी का इस्तेमाल करने से।
  • लंबे समय तक अस्वच्छ मास्क का इस्तेमाल करने से ।
  • इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन का ज्यादा मात्रा में इस्तेमाल करने से ।
  • जरूरत से ज्यादा जिंक सप्लीमेंट का सेवन करने से।

पढ़ें:भारत में बढ़ रहे हैं ब्लैक फंगल इंफेक्शन के मामले, जाने क्या है यह संक्रमण?

संक्रमण होने के कारण

कोरोना संक्रमण के दौरान कोमोरबिडिटी या अन्य गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं ( एड्स, अनियंत्रित मधुमेह, कैंसर जैसे लिम्पहोमास, किडनी फेल हो जाना, ऑर्गन ट्रांसप्लांट होना तथा क्रायोसिस ऊर्जा में कमी जैसी समस्यायों) के कारण गंभीर हुई परिस्थितिया तथा डेफर ऑक्सीमाइन थेरेपी म्यूकरमायकोसिस का कारण बन सकती है। चूंकि 17 साल से कम उम्र के बच्चों में रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत मानी जाती है इसलिए आमतौर पर इस उम्र के बच्चों में इस संक्रमण का प्रभाव कम देखने में आता है।

संकेत और लक्षण

डॉ सुषमा बताती है कि यह संक्रमण शरीर में बहुत तेजी से फैलता है । आमतौर पर जब तक नेत्रों में संक्रमण के लक्षण नजर आने लगते हैं तब तक संक्रमण अपने एडवांस स्तर में पहुँच चुका होता है। जिसके चलते ज्यादातर लोगों की दृष्टि या उनकी जिंदगी बचाना कठिन हो जाता है।

इसलिए बहुत जरूरी है की कोविड-19 हो चुके मरीज, विशेष तौर पर ऐसे लोग जिन्हें इलाज के दौरान स्टेरॉयड दिए गए हो तथा कमजोर ग्लाइसेमिक नियंत्रण वाले मरीजों को संक्रमण से जुड़े हल्के-फुल्के लक्षण नजर आने पर भी तुरंत चिकित्सक से सलाह लेनी चाहिए। शुरुआती लक्षणों की जरा सी भी अनदेखी नेत्रहीन बना सकती यहाँ तक की जानलेवा भी हो सकती है।

कितनी मात्रा में है स्टेरॉयड जरूरी

डॉ सुषमा बताती है मरीज को सिस्टमैटिक या ऑरल, किसी भी प्रकार का स्टेरॉयड देते समय मरीज की आयु, उसकी शारीरिक अवस्था, स्टेरॉयड की जरूरत व मात्रा तथा देने की अवधि सभी को ध्यान में रखना चाहिए । इसके अलावा भी कुछ अन्य बात हैं जिन्हे स्टेरॉयड देते समय ध्यान में रखना बहुत जरूरी होता है। जैसे –

  • सिस्टमैटिक स्टेरॉयड सिर्फ हाइपोक्समिया के मरीजों को दिया जाना चाहिए।
  • यदि पीड़ित को सिस्टमैटिक स्टेरॉयड दिया जा रहा है तो उसके शरीर में रक्त शर्करा की नियमित जांच होनी चाहिए।
  • स्टेरॉइड थेरेपी के दौरान डेक्सामेथासोन की खुराक तथा दो दवाइयों के बीच का समय अंतराल , दोनों ही कम होना चाहिए।

क्यों जानलेवा होता है ब्लैक फंगस

डॉ सुषमा बताती हैं की म्यूकरमाइकोसिस के मामले में जब फंगस हमारी पैरानैसल साइनस म्यूकोसा में प्रवेश करती है तो यह तो यह हमारे मस्तिष्क पर भी असर डालना शुरू कर देती है जिसके चलते वैस्कुलर थर्माबॉयसिस, यानी खून में थक्के जमने जैसी समस्याएं उत्पन्न होने लगती है । इसके चलते कई बार मरीज को स्ट्रोक का भी सामना करना पड़ जाता है, जो जानलेवा हो सकता है।

इस संक्रमण में रोगी की आंखों में सूजन या लालिमा आने, आंखों से पानी आने, आंख की पुतलियों को न हिला पाने, धुंधला दिखाई देने या अंधापन तथा दोहरा दिखाई देना जैसी समस्याओ का सामना करना पड़ सकता है।

कैसे करे बचाव

  • कोरोना के उपचार के दौरान ग्लाइसेमिक को नियंत्रित करके इस संक्रमण से काफी हद तक बचा जा सकता है।
  • स्टेरॉयड को सिर्फ जरूरत होने पर चिकित्सक द्वारा निर्देशित मात्रा में ही दिया जाना चाहिए।
  • सिर्फ धुले हुए साफ मास्क का इस्तेमाल करना चाहिए ।
  • ऐसे स्थल जहां पर निर्माण का कार्य चल रहा हो या जहां बहुत ज्यादा धूल मिट्टी हो वहां जाने से बचना चाहिए।
  • कोविड-19 ठीक होने के बाद मरीज को म्यूकर मायकोसिस के लक्षणों और उसकी गंभीरता के बारे में सचेत करना चाहिए।
  • रोगी को ऑक्सीजन देते समय साफ सफाई और स्वच्छता का ज्यादा ध्यान रखा जाए।

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