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लू से बचने के लिए आयुर्वेदिक उपाय

बदलते मौसम प्रकृति में नई जान फूंक देते हैं। मानव जीवन परंपराओं और त्योहारों से घिरा होता है, जो तापमान, आर्द्रता और बारिश जैसे जलवायु तत्वों में परिवर्तन के परिणामस्वरूप विकसित होते हैं, और जो फसल को प्रभावित भी करते हैं। एक तरफ जहां पश्चिम में चार मौसम होते हैं, वहीं भारतीय उपमहाद्वीप में छह मौसम देखे जाते हैं। हालांकि, छह मौसम में से, तीन मौसम अधिक महत्वपूर्ण हैं। ग्रीष्म ऋतु एक विशेष मौसम है, क्योंकि यह उष्ण कटिबंध को साफ करता है, लेकिन साथ ही हमें तेज धूप से झुलसा देता है। आयुर्वेदाचार्य डॉ. पी.वी. रंगनायकुलु, बताते हैं कि गर्मियों का अधिकतम लाभ कैसे प्राप्त करें और स्वस्थ रहें

Ayurvedic treatment of heat stroke
लू का आयुर्वेदिक उपचार

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Published : Apr 9, 2021, 5:30 PM IST

आयुर्वेद मानता है कि पित्त की वृद्धि लू जैसे स्थिति के लिए जिम्मेदार होती है। यह गुण गर्मी की तेजी से बढ़ जाता है, इसलिए व्यक्ति को उचित सावधानी बरतनी चाहिए। हालांकि, अधिकांश सावधानियां जनसंख्या वृद्धि और जंगलों के सिकुड़ने के कारण असंभव है। इसके लिए हम अपने घरों में इस तरह के माहौल का निर्माण कर सकते हैं। जैसा कि आयुर्वेद के अनुसार झरने में अधिक समय बिताना चाहिए, जोकि रोजमर्रा की जिंदगी में मुमकिन नहीं है। हम अपने घर के अंदरूनी हिस्से को क्रॉस वेंटिलेशन के साथ अधिक नमी युक्त बना सकते हैं। अंदरूनी तापमान 30 डिग्री सेल्सियस से कम बनाए रखें।

हीट स्ट्रोक या लू एक तरह से हाइपरथर्मिया ही है, जिसमें शरीर का तापमान हमारी सहनीय सीमा से अधिक बढ़ जाता है। इसे आयुर्वेद में उष्णताप के नाम से जाना जाता है। जब शरीर का मुख्य तापमान 104 डिग्री फारेनहाइट तक बढ़ जाता है या उससे अधिक, तो मस्तिष्क तापमान विनियमन प्रणाली को बनाए रखने में विफल हो जाता है। मानव शरीर सामान्यतः 98-99 डिग्री फारेनहाइट पर काम करता है। शरीर के अंदरूनी तापमान में वृद्धि शारीरिक प्रक्रियाओं के लिए खतरनाक है। विशेष रूप से वरिष्ठ नागरिकों को तापमान की विफलता के प्रभाव का खतरा अधिक होता है।

उच्च तापमान वाले क्षेत्र में अधिक समय बिताना, अत्यधिक शारीरिक व्यायाम करना, शराब का सेवन, तेज धूप में घूमना आदि मस्तिष्क में तापमान विनियमन केंद्र को विफल करता है। पसीने का ना निकलना भी लू लगने के महत्वपूर्ण कारणों में से एक है। लू लगने पर इन लक्षणों पर ध्यान दें;

⦁ पसीना आना

⦁ शरीर के तापमान में वृद्धि

⦁ भ्रम, व्याकुलता, बेहोशी में बोलना, दौरा पड़ना आदि

⦁ मतली और उल्टी

⦁ त्वचा में लालिमा

⦁ सांस लेने की दर में वृद्धि

⦁ सिरदर्द

⦁ हृदय गति का बढ़ना

⦁ रक्तचाप में कमी

⦁ बेहोश होना

इसलिए आयुर्वेद सुझाव देता है कि व्यक्ति को शरीर पर गर्मी के प्रभाव को कम करने के लिए आंवले, गिलोय, खरपतवार, चंदन, नारियल आदि जड़ी बूटियों का उपयोग करना चाहिए। सामान्य आयुर्वेदिक उपाय हैं:

⦁ ज्यादा दौड़-भाग ना करें

⦁ कॉफी, नशीले या सोडा युक्त पेय के सेवन से बचें

⦁ ठंडी जगह पर आराम करें

⦁ नियमित अंतराल में पानी पिएं

⦁ शरीर को गीले कपड़े से पोछे

⦁ बेल फल का जूस पियें

⦁ आंवला का जूस पिएं

⦁ नारियल पानी पिएं

⦁ छाछ पियें

⦁ सिर की त्वचा पर नारियल तेल लगाएं

⦁ तरबूज जैसे उच्च पानी की मात्रा वाले फल खाएं

⦁ नमकीन, खट्टे और गर्म (मसालेदार) खाद्य पदार्थों से बचें

⦁ मीठे, कड़वे और कसैले खाद्य पदार्थ खाएं

⦁ कम खाना खाएं, अधिक पानी पीएं और शरीर में नमी बनाएं

⦁ अरोमा थेरेपी का आनंद लें

पढ़े:मस्तिष्क क्षति या स्ट्रोक में तुरंत उपचार जरूरी

जब रोगी का शरीर उच्च तापमान के बावजूद पसीना निकालने में अक्षम हो, तो उन्हें अच्छे वेंटिलेशन वाली जगह पर रखना चाहिए। शरीर को ठंडक पहुंचाने के लिए निम्न दवाएं फायदेमंद साबित होगी;

⦁ चंदनादि वटी (दिन में दो बार दो गोलियां)

⦁ मृत संजीवनी सुरा 25 मिलीलीटर दिन में दो बार

दिन में उच्चतम तापमान दोपहर 2 बजे और सबसे कम तापमान सुबह 5 बजे दर्ज किया गया है। इसलिए बेहतर स्वास्थ्य के लिए व्यक्ति को सुबह 11 बजे से शाम 4 बजे के बीच धूप में नहीं निकलना चाहिए। जो लोग बाहर निकलते हैं, उन्हें हल्के रंग की टोपी पहननी चाहिए या छाता लेकर जाना चाहिए। श्रमिक वर्ग, जो दैनिक मजदूरी के लिए शारीरिक श्रम पर निर्भर हैं, गर्मियों में सबसे अधिक प्रभावित होते हैं। उनके लिए नमक और चीनी के साथ पानी पीना लाभदायक होगा।

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