आयुर्वेद मानता है कि पित्त की वृद्धि लू जैसे स्थिति के लिए जिम्मेदार होती है। यह गुण गर्मी की तेजी से बढ़ जाता है, इसलिए व्यक्ति को उचित सावधानी बरतनी चाहिए। हालांकि, अधिकांश सावधानियां जनसंख्या वृद्धि और जंगलों के सिकुड़ने के कारण असंभव है। इसके लिए हम अपने घरों में इस तरह के माहौल का निर्माण कर सकते हैं। जैसा कि आयुर्वेद के अनुसार झरने में अधिक समय बिताना चाहिए, जोकि रोजमर्रा की जिंदगी में मुमकिन नहीं है। हम अपने घर के अंदरूनी हिस्से को क्रॉस वेंटिलेशन के साथ अधिक नमी युक्त बना सकते हैं। अंदरूनी तापमान 30 डिग्री सेल्सियस से कम बनाए रखें।
हीट स्ट्रोक या लू एक तरह से हाइपरथर्मिया ही है, जिसमें शरीर का तापमान हमारी सहनीय सीमा से अधिक बढ़ जाता है। इसे आयुर्वेद में उष्णताप के नाम से जाना जाता है। जब शरीर का मुख्य तापमान 104 डिग्री फारेनहाइट तक बढ़ जाता है या उससे अधिक, तो मस्तिष्क तापमान विनियमन प्रणाली को बनाए रखने में विफल हो जाता है। मानव शरीर सामान्यतः 98-99 डिग्री फारेनहाइट पर काम करता है। शरीर के अंदरूनी तापमान में वृद्धि शारीरिक प्रक्रियाओं के लिए खतरनाक है। विशेष रूप से वरिष्ठ नागरिकों को तापमान की विफलता के प्रभाव का खतरा अधिक होता है।
उच्च तापमान वाले क्षेत्र में अधिक समय बिताना, अत्यधिक शारीरिक व्यायाम करना, शराब का सेवन, तेज धूप में घूमना आदि मस्तिष्क में तापमान विनियमन केंद्र को विफल करता है। पसीने का ना निकलना भी लू लगने के महत्वपूर्ण कारणों में से एक है। लू लगने पर इन लक्षणों पर ध्यान दें;
⦁ पसीना आना
⦁ शरीर के तापमान में वृद्धि
⦁ भ्रम, व्याकुलता, बेहोशी में बोलना, दौरा पड़ना आदि
⦁ मतली और उल्टी
⦁ त्वचा में लालिमा
⦁ सांस लेने की दर में वृद्धि
⦁ सिरदर्द
⦁ हृदय गति का बढ़ना
⦁ रक्तचाप में कमी
⦁ बेहोश होना
इसलिए आयुर्वेद सुझाव देता है कि व्यक्ति को शरीर पर गर्मी के प्रभाव को कम करने के लिए आंवले, गिलोय, खरपतवार, चंदन, नारियल आदि जड़ी बूटियों का उपयोग करना चाहिए। सामान्य आयुर्वेदिक उपाय हैं:
⦁ ज्यादा दौड़-भाग ना करें
⦁ कॉफी, नशीले या सोडा युक्त पेय के सेवन से बचें
⦁ ठंडी जगह पर आराम करें