हाइपरपिग्मेंटेशन एक ऐसी समस्या है जो आमतौर पर सूरज के संपर्क में आने पर लोगों को प्रभावित करती है। यह समस्या किसी भी प्रकार की त्वचा वाले व्यक्ति को प्रभावित कर सकती है। हाइपरपिग्मेंटेशन को लेकर आमतौर पर एलोपैथिक दवाइयों की मदद लेते हैं, लेकिन आयुर्वेद में भी इस समस्या का काफी कारगर इलाज मौजूद है।
हाइपरपिग्मेंटेशन
डॉ यास्मीन बताती हैं की हाइपरपिग्मेंटेशन के कुछ सामान्य प्रकारों में मेलाज्मा और सन स्पॉट्स शामिल हैं, जो आमतौर पर चेहरे , हाथ और पैर को प्रभावित करती है। वे बताती हैं की हाइपरपिग्मेंटेशन को साधारण कॉस्मेटिक समस्या मानना सही नही है क्योंकि यह व्यक्ति में मानसिक व भावनात्मक तनाव भी उत्पन्न कर सकती है।
गौरतलब हैं की आयुर्वेद में हाइपरपिग्मेंटेशन की स्थिति को “व्यंग” के नाम से जाना जाता है और इसके लिए वात और पित्त दोष के साथ-साथ क्रोध , शोक, और थकावट सहित मानसिक कारणों को जिम्मेदार माना जाता है।
हाइपरपिग्मेंटेशन के मुख्य कारण
डॉ. यास्मीन बताती हैं की आयुर्वेद में हाइपरपिग्मेंटेशन के लिए 12 कारको को जिम्मेदार माना जाता है।
1. त्वचा में ज्यादा मात्रा में मेलेनिन उत्पन्न होना तथा सूर्य की अल्ट्रा वायलट किरणों का त्वचा पर प्रभाव ।
2. मासिक धर्म के दौरान हार्मोनल परिवर्तन, गर्भावस्था, रजोनिवृत्ति, कुछ दवाओं विशेषकर गर्भनिरोधक गोलियां के कारण ।
3. पोस्ट इंफ्लेमेटरी हाइपरपिग्मेंटेशन (पी.आई.एच) भी इसका एक कारण हो सकता है। आमतौर पर किसी भी प्रकार की चोट लगने पर शरीर में प्रतिक्रिया स्वरूप सूजन उत्पन्न होती है, जो त्वचा में मेलेनिन के उत्पादन को ट्रिगर करती है, जिसके परिणामस्वरूप त्वचा पर भूरे रंग के धब्बे, मुँहासे या पैच हो सकते हैं।
4. एनीमिया-आयरन, फॉलिक एसिड, विटामिन बी12 और विटामिन डी की कमी के कारण ।
5. पारिवारिक इतिहास।
6. यकृत विकार।
7. उल्टी जैसी प्राकृतिक समस्याओं को रोकने का प्रयास करना।
8. खाने के तुरंत बाद चेहरे के भारी व्यायाम करना जैसे गाना गाना या जोर से पढ़ना आदि।
9. दिन में सोना।
10. रक्त में दोष उत्पन्न करने वाला भोजन ग्रहण करना जैसे बासी, तेज मिर्च-मसाले और ज्यादा तेल वाला , तथा गलत फूड कॉम्बिनेशन का सेवन करना आदि ।
11. पित्त दोष को बढ़ाने वाले कारक जैसे भय, क्रोध, शोक आदि।
12. अत्यधिक तीखा, खट्टा, मसालेदार और नमकीन भोजन का सेवन।
हाइपरपिग्मेंटेशन के लिए कुछ आयुर्वेदिक उपचार