गर्भाशय के मूंह का कैंसर पूरी तरह से रोके जाने वाली बीमारी है, क्योंकि यह अच्छी तरह से परिभाषित, लंबे समय से पूर्व घातक चरण में है और नियमित जांच और परीक्षण के बाद आसानी से इसका पता लगाया जा सकता है. भारत में महिलाएं गर्भाशय के मूंह के कैंसर की देखभाल के लिए स्क्रीनिंग प्रक्रिया से अनजान हैं. टीकाकरण, स्क्रीनिंग और इलाज के साथ,विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने हाल ही में 2050 तक 40 प्रतिशत से अधिक नए मामलों और 5 मिलियन से संबंधित सर्विकल कैंसर से होने वाली मौतों को कम करने का लक्ष्य रखा है.
पैप स्मीयर टेस्ट क्या है?
नोएडा के मर्दर अस्पताल के प्रसूति एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. संदीप चड्ढा बताते हैं, 'यह महत्वपूर्ण है कि हमें पैप स्मीयर टेस्ट के बारे में भी सीखना चाहिए. यह एंडोक्रॉइल नहर में संभावित पूर्व-कैंसर और कैंसर की प्रक्रियाओं का पता लगाने के लिए एक स्क्रीनिंग टेस्ट है. महिला के गर्भाशय के मूंह से कोशिकाओं का एक समूह एक स्पैटुला जैसे उपकरण का उपयोग करके सर्विक्स की कोशिकाओं में परिवर्तन देखने के लिए. एक पैप स्मीयर कैंसर, प्रीकैंसर, मानव पैपिलोमा वायरस (एचपीवी), सूजन, या संक्रमण के परिणाम स्वरूप होने वाले सेलुलर परिवर्तनों का निदान करने में मदद करता है.
किस उम्र में पैप स्मियर टेस्ट किया जा सकता है?
डॉ. चड्ढा बताते हैं कि, रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र (सीडीसी) के अनुसार, महिलाएं जो 21 से 65 वर्ष की आयु के बीच हैं, उन्हें नियमित अंतराल पर अपने पैप स्मीयर परीक्षण करवाने चाहिए. हालांकि, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ (NIH) सलाह देता है कि 21 साल से कम उम्र की लड़कियों को पैप स्मीयर से बचना चाहिए. साथ ही, वे यह भी सुझाव देते हैं कि 65 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं को पैप स्मीयर नहीं कराना चाहिए. वहीं वह महिलाएं जिनके पास गैर-कैंसर की स्थिति और अन्य कारण से महिलाओं का गर्भाशय निकाल दिया गया, उनको पैप टेस्ट की जरूरत नहीं है.
उम्र के आधार पर कितनी बार पैप स्मीयर के लिए जाना चाहिए?