ऑटिज्म के क्षेत्र में कार्य कर रहे चिकित्सक, थेरेपिस्ट तथा स्वास्थ्य कर्मी मानते हैं की बच्चों में ऑटिज्म पर नियंत्रण में सेंसरी इंटीग्रेशन थेरेपी( एस. आई ) काफी मददगार साबित होती है, क्योंकि यह एक खेल आधारित थेरेपी है। सेंसरी इंटीग्रेशन थेरेपी के बारे में ज्यादा जानकारी लेने के लिए ETV भारत सुखीभवा की टीम ने किमाया थेरेपी सेंटर विले पार्ले ईस्ट तथा बॉडी डायनेमिक क्लीनिक मुंबई की सेंसरी इंटीग्रेशन तथा एनडीटी थेरेपी प्रशिक्षण प्राप्त बाल मनोचिकित्सक डॉ किमाया सबनिस से बात की।
सेंसरी इंटीग्रेशन थेरेपी( एस. आई )
डॉक्टर किमाया बताती हैं कि एस.आई यानी सेंसरी इंटीग्रेशन एक न्यूरोलॉजिकल प्रक्रिया है जो ऑटिस्टिक बच्चे के आसपास की परिस्थितियों के आधार पर इस बात का पता चलाने के लिए इस्तेमाल की जाती है कि वह कैसे अपने आसपास की बातों तथा चीजों के बारे में जानकारी ग्रहण करता है और कैसे उनके प्रति प्रतिक्रिया देता है। साधारण भाषा में कहा जाए तो सेंसरी इंटीग्रेशन थेरेपी इंद्रियों पर आधारित नीतिगत उपचार पद्धति है जो देखने में एक खेल जैसी लगती है। यह आमतौर पर उन बच्चों के लिए ज्यादा इस्तेमाल की जाती है जिन्हें अपने इंद्रियों के माध्यम से चीजों और बातों को महसूस करने में समस्याएं होती हैं।
किनके लिए उचित हैसेंसरी इंटीग्रेशन थेरेपी( एस. आई )
डॉ किमाया बताती हैं की हर ऑटिस्टिक बच्चे के लक्षण तथा उसके हाव भाव तथा गतिविधियां दूसरे ऑटिस्टिक बच्चों से अलग होती है, इसलिए बहुत जरूरी है कि सबसे पहले यह जानकारी ली जाय की जिस बच्चे को यह थैरेपी दी जा रही है उसके लिए यह मददगार भी होगी या नही।
सेंसरी इंटीग्रेशन थेरेपी उन बच्चों के लिए ज्यादा फायदेमंद होती है जिनमें इंद्रियों पर आधारित विकासात्मक, व्यवहारपरक तथा सीखने संबंधी समस्याएं देखने में आती हैं। ऐसे ऑटिस्टिक बच्चों के लक्षण जिनके लिए एस थेरेपी मददगार हो सकती है , इस प्रकार हैं ।
- अति संवेदनशीलता , जैसे किसी के छूने पर, किसी विशेष स्वाद या सुगंध को लेकर, तेजशोर के चलते, किसी विशेष चीज को देखने पर या किसी एक प्रतिक्रिया के डर के चलते तीव्र प्रतिक्रिया देना।
- ऐसे बच्चे जो इंद्रियों से संबंधित संवेदनाओं के प्रति कम प्रतिक्रिया देते हैं।
- ऐसे बच्चे जिनकी कार्य संबंधी गतिविधियां या तो बहुत ज्यादा होती है या बहुत ही कम यानी नहीं के बराबर होती हैं। जिन्हें अंग्रेजी में हाइपरएक्टिव या लेथार्जिक भी कहा जाता है।
- ऐसे बच्चे जिन्हें आंखों व हाथ तथा आंखों व पांव के कार्यों के बीच समन्वय बैठाने में समस्याएं होती हैं।
- ऐसे ही बच्चे जो देर से बोलना शुरू करते हैं तथा जिन्हें भाषा समझने में समस्याएं होती हैं, या फिर शिक्षा ग्रहण करने में समस्याएं होती हैं।
- ऐसे बच्चे जो व्यवस्थित नहीं हो, जिनका ध्यान सरलता से भटक जाता हो, जो नए वातावरण के साथ सामंजस्य स्थापित करने में समस्याएं महसूस करते हो तथा जिन्हें बताए गए निर्देशों के अनुसार कार्य करने तथा उन निर्देशों को समझने में समस्या होती हो।
- ऐसे बच्चे जो आमतौर पर आलसी तथा हमेशा थके दिखते हो । तथा जिनमें प्रेरणा की कमी हो।
जरूरी है समस्याओं के बारें में जानना