हम कई बार देखते हैं कि कुछ बच्चों या बड़ों को थोड़ी सी भागदौड़ करने पर या ऐसी गतिविधि का हिस्सा बनने पर जिनमें उन्हें ज्यादा चलना पड़ता हो, या शारीरिक मेहनत करनी पड़ती है, सांस लेने में समस्या होने लगती है. इस अवस्था में उनकी सांस फूलने लगती है और कई बार बहुत ज्यादा खांसी भी आने लगती है. ऐसी अवस्था के लिए कई बार अस्थमा जिम्मेदार हो सकता है, जोकि एक श्वसन संबंधी रोग है. अस्थमा को लेकर लोगों में यह भ्रम व्याप्त है कि इससे पीड़ित लोग सामान्य जीवन नहीं जी सकते हैं या वे हमेशा बीमार रहते हैं. सही इलाज तथा संतुलित व स्वस्थ जीवन शैली का पालन करके अधिकांश मामलों में इस रोग को नियंत्रण में रखा जा सकता है और अस्थमा पीड़ित काफी हद तक सामान्य जीवन जी सकते हैं. Asthma symptoms reasons prevention precautions and types of asthma .
क्या है अस्थमा (What is asthma) : विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization) के अनुसार भारत में लगभग 20 मिलियन अस्थमा रोगी हैं. इसमें हर उम्र के लोग शामिल हैं. अस्थमा किस तरह का रोग है तथा यह कैसे हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित करता है, इस बारें में जानने के लिए ETV भारत सुखीभवा ने मुंबई के नाक, कान व गला रोग विशेषज्ञ डॉ समीर कुमार सोलंकी (Dr. Samir Kumar Solanki, ENT Specialist) से बात की. डॉ समीर कुमार सोलंकी बताते हैं कि अस्थमा एक ऐसा रोग है जो आम भाषा में दमे की बीमारी या सांस फूलने की बीमारी के नाम से चर्चित है . वह बताते हैं आजकल अलग-अलग कारणों से हर उम्र के लोगों में इस रोग के रोगियों की संख्या काफी बढ़ रही है. सिर्फ बड़ों ही नहीं बल्कि बच्चों में भी आजकल अस्थमा होने के कई मामले सामने आ रहे हैं.
Dr Samir Kumar Solanki बताते हैं कि अस्थमा दरअसल फेफड़ों से जुड़ी ऐसी बीमारी है जिसमें श्वास की नलियों में सूजन आ जाती है और श्वसन मार्ग सिकुड़ने लगता है. जिसके फलस्वरूप रोगी को सांस लेने में परेशानी होने लगती है. यदि समय पर इस समस्या का इलाज शुरू ना किया जो कई बार यह समस्या गंभीर परेशानियों का कारण भी बन सकती है. यहां तक की पीड़ित को अस्थमा के दौरे भी पड़ सकते हैं, जो कभी कभी जानलेवा भी ही सकते हैं. वैसे तो अस्थमा का कोई स्थाई इलाज नहीं है लेकिन यदि सही समय पर इस रोग का पता चल जाए और व्यक्ति सही समय पर इलाज लेना शुरू कर दें तो अस्थमा को सरलता से नियंत्रित किया जा सकता है.
अस्थमा के लक्षण (Asthma symptoms): डॉ सोलंकी बताते हैं कि अस्थमा एक ऐसी समस्या है जो 6 महीने के बच्चे से लेकर बुजुर्ग व्यक्ति तक, सभी को हो सकती है. अस्थमा के लिए कई कारण जिम्मेदार हो सकते हैं जैसे आनुवंशिकता, कोई स्वास्थ्य समस्या, एलर्जी, संक्रमण, मौसमी समस्याएं और प्रदूषण आदि. वह बताते हैं बच्चों में अस्थमा के लिए ज्यादातर मामलों में आनुवंशिक कारण (Genetic factors are responsible asthma) जिम्मेदार होते हैं. ज्यादातर मामलों में ऐसे बच्चों में आम तौर पर छः महीने की आयु के बाद से ही इस रोग के लक्षण नजर आने लगते हैं. जैसे उन्हे खांसी बहुत ज्यादा आती है और वे अपेक्षाकृत ज्यादा रोते हैं, क्योंकि वे बोल कर सांस लेने में समस्या या छाती में जकड़न तथा अपनी अन्य परेशानियों के बारें में नहीं बता पाते हैं. ऐसे में माता पिता या बच्चे के देखभाल करने वाले व्यक्ति को ज्यादा सचेत रहने की जरूरत होती है.
वहीं वयस्कों में अस्थमा होने ज्यादा चलने पर, खेलने पर या ऐसी गतिविधि का हिस्सा बनने पर जिनमें शारीरिक श्रम ज्यादा होता है और सांस लेने कि गति बढ़ती है, सांस लेने में समस्या होने लगती है. इसके अलावा कई बार कुछ लोगों में ऐसी अवस्था में बहुत ज्यादा व लंबी अवधि तक खांसी आने , छाती में भारीपन या जकड़न महसूस होने तथा बहुत ज्यादा थकान व कमजोरी महसूस होने जैसी समस्या भी नजर आने लगती है. वह बताते हैं कि कई बार मौसम बदलने पर, जानवरों के पास जाने या उनके साथ खेलने पर, पेन्ट या मिट्टी के तेल जैसी तीव्र सुगंध वाली वस्तुओं के संपर्क में आने पर, ज्यादा ठंडा खाने या पीने पर या ऐसे वातावरण का हिस्सा बनने पर भी जिसमे धूल, मिट्टी व प्रदूषण काफी ज्यादा हो, लोगों को ब्रीदिंग संबंधी तथा अन्य संबंधित समस्याएं हो सकती है.
क्यों होता है अस्थमा :Dr. Samir Kumar Solanki, Mumbai, ENT Specialist बताते हैं कि आनुवंशिकता के अलावा अस्थमा के लिए कई बार कुछ शारीरिक, परिस्थितियां तथा वातावरणीय कारक भी जिम्मेदार होते है. जैसे यदि किसी बच्चे के माता-पिता दोनों को अस्थमा की बीमारी हो तो बच्चे को यह रोग होने की आशंका काफी ज्यादा होती है. वहीं कई बार किसी शारीरिक रोग, जानवर के संपर्क में आने से , पौधों व फूलों के पराग या किसी विशेष आहार से एलर्जी के चलते, संक्रमण और यहां तक की किसी दवा के पार्श्वप्रभाव के कारण भी यह समस्या हो सकती है. इसके अलावा प्रदूषण को भी अस्थमा के बढ़ते मामलों के लिए जिम्मेदार ठहराना गलत नहीं होगा. वह बताते हैं कि उम्र, परिस्थितियों तथा अवस्थाओं के आधार पर अस्थमा कई प्रकार का हो सकता है. जिनमें से कुछ इस (Types of asthma) प्रकार है.
- एलर्जिक अस्थमा (Allergic Asthma)
- नॉन एलर्जिक अस्थमा (Non Allergic Asthma)
- ऑक्यूपेशनल अस्थमा (Occupational Asthma)
- मिमिक अस्थमा (Mimic Asthma)
- चाइल्ड ऑनसेट अस्थमा (Child Onset Asthma)
- एडल्ट ऑनसेट अस्थमा (Adult Onset Asthma)
- सूखी खांसी वाला अस्थमा (Dry Cough Asthma)
- दवा के रिएक्शन से होने वाला अस्थमा (Drug-reaction Asthma), आदि
चिकित्सकीय परामर्श जरूरी (Asthma prevention) : डॉ सोलंकी बताते हैं कि यदि पीड़ित में रोग के बारें में सही समय पर जानकारी मिल जाए और उसका सही समय पर इलाज शुरू हो जाए तो अस्थमा के साथ भी सामान्य जीवन जिया जा सकता है. लेकिन इलाज व दवाओं के साथ ही रोगी के लिए कई तरह की सावधानियों का ध्यान रखना भी जरूरी होता है. अन्यथा ना सिर्फ अस्थमा गंभीर समस्याओं का कारण बन सकता है बल्कि अस्थमा का दौरा भी पड़ सकता है. जो कई बार जानलेवा भी हो सकता है.
वह बताते हैं कि अगर अस्थमा पीड़ित व्यक्ति सही समय पर दवाइयों का सेवन व चिकित्सकों के निर्देशों का पालन करता है तथा स्वस्थ व संतुलित जीवन व आहार शैली का पालन करता है तो इस समस्या के प्रभाव को काफी हद तक कम किया जा सकता है. यही नहीं ऐसा करने पर कभी कभी सामान्य अवस्था में प्रभावित व्यक्ति को नियमित रूप से दवाएं लेने की जरूरत भी नहीं पड़ती है. हालांकि अस्थमा पीड़ितों को आमतौर पर इन्हेलर (asthma patient inhaler) को हमेशा साथ रखने कि सलाह दी जाती है.
सावधान रहें स्वस्थ रहें (Asthma Precautions) : डॉ सोलंकी बताते हैं अस्थमा के पीड़ितों के लिए जरूरी है कि वे सही समय पर स्वस्थ व संतुलित आहार लें, नींद संबंधी अनुशासन पालन करें तथा ऐसे व्यायामों को अपनाए जिसमें सांस लेने की तकनीक तथा क्षमता बेहतर होती हो और फेफड़ों का स्वास्थ्य (Lung health Strengthens) मजबूत होता है. योग, मेडिटेशन, स्ट्रेचिंग तथा तैराकी ऐसे लोगों के लिए आदर्श व्यायाम होते हैं. लेकिन अस्थमा से पीड़ित लोगों को बिना चिकित्सीय परामर्श लिए जटिल, तेज गति से होने वाले तथा हाई इंटेनसीटी व्यायाम करने से बचना चाहिए. इसके अलावा उन्हे कुछ बातों को लेकर सचेत रहने की भी जरूरत होती है. क्योंकि जरा सी लापरवाही या अनदेखी गंभीर परिणाम भी दे सकती है. यही नहीं कुछ विशेष परिस्थितियां नजर आने पर उनके लिए तत्काल चिकित्सक से संपर्क करना जरूरी होता है. जिनमें से कुछ इस प्रकार है.
- सांस लेने में समस्या होने (Breathing problem) पर या सांस लेते समय सिटी ता घरघराहट की आवाज आने पर.
- बहुत ज्यादा खांसी होने तथा लंबे समय तक सर्दी जुकाम (Severe cough and prolonged cold) होने पर.
- छाती में दर्द या जकड़न महसूस (chest pain or tightness) होने पर
- किसी विशेष प्रकार की एलर्जी के बार-बार होने (Occurrence of allergy) की अवस्था में
- सोते समय ज्यादा बेचैनी (Restlessness while sleeping) होने, छाती में जकड़न महसूस होने, नींद ना आने या सांस लेते समय परेशानी होने पर
- मौसम के कारण या मौसम के संधिकाल (Weather conjunctival periods) के समय खांसी या श्वसन संबंधी परेशानी (Cough or respiratory problems) महसूस होने पर.
- किसी दवा का रिएक्शन (Drug reaction) होने पर.
वह बताते हैं कि इनके अलावा भी कुछ ऐसी सावधानियां हैं जिनका पालन करने से अस्थमा के प्रभाव को काफी हद तक कम किया जा सकता है और अस्थमा रोगी भी जी सकते हैं सामान्य जीवन. जैसे घर से बाहर जाते समय मास्क का प्रयोग करें, मौसम में परिवर्तन के समय अपने आहार तथा अपनी दिनचर्या का विशेष ध्यान रखें. यदि मौसम के संधि काल के दौरान या सर्दी के मौसम में समस्याएं ज्यादा बढ़ जाती हो तो पहले से ही चिकित्सक से संपर्क करने उनके द्वारा बताई गई दवाइयों विशेषकर इन्हेलर का इस्तेमाल करें और उनके द्वारा बताए गए निर्देशों का पालन करें. इसके अलावा अस्थमा पीड़ित लोगों को हमेशा ही ठंडे आहार व पेय पदार्थों, धूम्रपान, शराब या किसी भी प्रकार के नशीले पदार्थ के सेवन से दूरी बनाकर रखनी चाहिए.