नई दिल्ली : भारत इस समय दो सबसे प्रमुख बीमारियों की चपेट में हैं. जीवनशैली में हुए बदलाव के कारण टाइप 2 मधुमेह और उच्च रक्तचाप के मामलाें में भारी वृद्धि हुई हैं. वहीं, मोटापे के बढ़ते मामलों ने देश में चिंता बढ़ा दी है . द लैंसेट गैस्ट्रोएंटरोलॉजी एंड हेपेटोलॉजी में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन के अनुसार, पिछले दो दशकों के दौरान भारत में अधिक वजन और मोटापे का प्रसार दोगुना हो गया है, जिससे रोगों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है .
मोटापे में वृद्धि ऐसे समय में हुई है, जब लाखों भारतीय घर में बने पारंपरिक आहार को छोड़कर वसायुक्त खाद्य पदार्थों और चीनी युक्त पेय पदार्थों की ओर रुख कर रहे हैं. मध्यम आय और निम्न आय वाले देशों में भी मोटापा एक प्रमुख चिंता है, मधुमेह, हृदय रोग और कुछ कैंसर जैसी बीमारियों से मोटापे का सीधा संबंध है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत ने अपने नागरिकों को स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने में जबरदस्त प्रगति की है, लेकिन मोटापे को गंभीरता से नहीं लिया. भारत को इस पर काम करना चहिए. अध्ययन में इस बात पर जोर दिया गया कि सार्वजनिक स्वास्थ्य निकायों का लक्ष्य एक स्वस्थ वजन प्राप्त करना होना चाहिए, जो संक्रामक रोगों को कम कर सके .
2016-2021 के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के आंकड़ों के अनुसार, लगभग 20 प्रतिशत भारतीय आबादी मोटापे से ग्रस्त है, जिसमें 5 प्रतिशत गंभीर रूप से मोटापे से ग्रस्त हैं. बचपन से ही मोटापे के मामलाें में तेज वृद्धि पाई गई है. एक अनुमान के मुताबिक भारत में 135 मिलियन मोटे लोग हैं.
स्वास्थ्य विशेषज्ञ भारत में खान-पान की आदतों में बदलाव को मोटापे का जिम्मेदार मानते हैं. भारत में युवाओं का आहार अधिक पश्चिमी हो गया है. फास्ट फूड पर अधिक निर्भरता बढ़ गई हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि इन खाद्य पदार्थों में अक्सर उच्च स्तर की कैलोरी, चीनी और वसा शामिल होती है जो वजन बढ़ने और मोटापे का कारण बन सकती है.