नई दिल्ली: एक तरह जहां हजारों-करोड़ों रुपये खर्च कर दिल्ली की साफ-सफाई एजेंसियां नाकाम साबित हो रही हैं, तो वहीं दूसरी ओर निस्वार्थ पढ़े लिखे नौजवान राजधानी को सुंदर साफ सुथरा बनाने में लगे हैं. ये नौजवान सूट-बूट पहनकर हाथों में गल्ब्स पहने घर-घर जाकर रसोई से कूड़ा इकट्ठा करते हैं. सॉफ्टवेयर इंजीनियर मनोज साबले और उनकी टीम इस काम में लगी है.
सॉफ्टवेयर इंजीनियर मनोज साबले इन्हीं लोगों में से एक हैं. सूट-बूट पहनकर, टाई लगाकर मनोज रोजाना अपनी टीम के साथ पश्चिमी दिल्ली के इलाकों में निकलते हैं. सड़कों और गलियों की साफ-सफाई के साथ-साथ कूड़े से 'सोना' बनाने का काम करते हैं. चार साल पहले शुरू किए गए इस अनोखे सफर में आज मनोज के साथ 16 अन्य लोग जुड़ गए हैं. साफ-सफाई, कूड़ा इकट्ठा करना, मंदिरों से फूल इकट्ठे करना, कूड़े से खाद बनाना, मेट्रो पिलर साफ करना ये सब मनोज साबले की टीम करती है.
हाल ही में दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन के अधिकारियों ने इनके कामकाज की रिपोर्ट आला अधिकारियों को भेजी इनके कामकाज को देखकर इन्हें कई पुरुस्कारों से नवाजा भी गया है.
ऊंची डिग्री, सूट-बूट और हाथ में झाड़ू, ये हैं असली सफाई वाले हीरो 4 साल से बिना पैसे काम कर रही है ये टीम
पिछले 4 साल से बिना किसी पैसे के साफ सफाई को अपना समय देने वाले मनोज कहते हैं कि इस काम में भी उन्हें कोई कम चुनौतियों का सामना नहीं करना पड़ता. यहां सबसे बड़ी समस्या खाद बनाने को लेकर जगह की आ रही है जिसके लिए पिछले दिनों सरकार और एजेंसियों को पत्र लिखकर थोड़ी जगह देने की मांग की गई. इस क्रम में दिल्ली सरकार ने एक स्कूल में उन्हें ये जगह दे दी है लेकिन मनोज कहते हैं कि 200 किलो से ज्यादा के रोज के कूड़े के लिए ये जगह पर्याप्त नहीं है.
पूरी दिल्ली को साफ करना है टारगेट
मनोज कहते हैं कि अभी कम लोगों और कम संसाधनों के होने के चलते उन्होंने अपना काम पश्चिमी दिल्ली के कुछ इलाकों इलाकों तक ही सीमित रखा गया है. हालांकि बहुत जल्दी वो अपनी टीमें बढ़ाएंगे. वो कहते हैं कि उन्हें सरकार से किसी वित्तीय मदद की जरूरत नहीं है लेकिन अगर उन्हें खाद बनाने के लिए थोड़ी जमीन मुहैया करा दी जाए तो उनका काम बेहतर तरीके से हो सकता है.