नई दिल्ली: संवत्सर 2080 के प्रथम दिन वर्ष प्रतिपदा को चैत्र नवरात्रि आरंभ हो रही है, जिसे वासंतिक नवरात्रि भी कहा जाता है. यह हिंदुओं का नव संवत्सर यानी नया साल है. इस समय से प्रकृति में परिवर्तन होना आरंभ होता है और मौसम में न अधिक नमी होती है न अधिक गर्मी होती है. इस दौरान नई फसलें उगना शुरू होती हैं. ऐसे शुभ समय में भारतीय नववर्ष का आरंभ होगा.
इस बार वासंतिक नवरात्रि 22 मार्च, बुधवार से आरंभ होगी. इस नवरात्रि में मां दुर्गा नाव पर बैठकर आएंगी. इस कारण पूरे साल पर्याप्त वर्षा, धनधान्य से पूर्ण होने की संभावना है. आने वाली नवरात्रि साधकों के लिए बहुत शुभ है. नवरात्रि के दिन हिंदू परिवारों में घर-घर मां भगवती का आह्वान व कलश स्थापना की जाती है. नवरात्रि में भक्त मां भगवती को प्रसन्न करने के लिए पूजा, व्रत आदि करते हैं.
कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त:प्रातः काल 6:04 बजे से 7:30 बजे तक मीन लग्न, इसके बाद 9:06 बजे तक मिथुन लग्न और 11:00 बजे तक वृषभ लग्न है. उपरोक्त तीनों लग्न मां भगवती के आह्वान व कलश स्थापना के लिए बहुत शुभ है. इसके पश्चात सिंह लग्न दोपहर 3:34 बजे से शाम 5:51 बजे तक रहेगा. यदि प्रातः काल किसी कारणवश घट स्थापना नहीं कर पाते हैं तो इस समय में भी घट स्थापना कर सकते हैं.
घट स्थापना की विधि:मां भगवती का आह्वान और घट स्थापना करने के लिए मिट्टी का कलश, जौ बोने के लिए कोई पात्र, मिट्टी, जौ, गंगाजल, फूल, मिष्ठान, फल , रोली, चावल, कलावा आदि इक्कठा कर लें. प्रात: काल सूर्य उदय से पहले उठकर स्नान करें और मंदिर की सफाई करें. इसके बाद वहां कोई पटरा या चौकी रखकर उस पर लाल या पीला कपड़ा बिछाकर मां भगवती की मूर्ति रखें. ध्यान रहे कि कलश स्थापना अथवा भगवती मां के आह्वान में भगवती मां का मुख पश्चिम की ओर हो और आपका मुंह उनके सामने पूरब की ओर हो. अपने बायी ओर कलश स्थापना करें और दायी ओर दीपक जलाकर रखें.
इसके बाद मिट्टी के पात्र में मिट्टी भरकर थोड़ा गंगाजल छिड़कें और उसमें जौ के कुछ दाने बिखेर दें. फिर मिट्टी के कलश अथवा तांबें के लोटे में गंगा जल व शुद्ध जल भरें और लाल कलावा से बांधकर उसके ऊपर आम के पत्ते अथवा अशोक के पत्ते रखें. उसके ऊपर चुन्नी अथवा अंगोछे में नारियल लपेट कर रखें और ऊपर से पुष्पमाला अर्पित करें. इसी प्रकार पटरी अथवा चौकी पर पीला या लाल कपड़ा बिछाकर मां भगवती की प्रतिमा की स्थापना करें और चुनरी चढ़कर पुष्पमाला अर्पित करें. तत्पश्चात संकल्प लेकर चावल, पुष्प, कलावा, रोली, चंदन आदि से उनकी आराधना करें और पूजा कर भोग लगाएं. जो साधक अखंड दीपक जलाते हैं. वे अपने सीधे हाथ की ओर दीपक स्थापित करें.
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