नई दिल्ली:विश्व स्वास्थ्य संगठन(WHO) ने कोविड-19 के मद्देनजर बच्चों की वैक्सीन को पूरी दुनिया के लिए उपलब्ध कराने की बात कही है. भारत इस दिशा में कई कदम आगे बढ़ चुका है. उम्मीद की जा रही है कि जुलाई के मध्य तक बच्चों की वैक्सीन विकसित होकर उनके लगाने का शेड्यूल जारी किया जा सकता है. स्वैच्छिक रूप से ट्रायल का हिस्सा बनने के लिए इच्छुक बच्चों के ब्लड टेस्ट से लेकर हर तरह को हेल्थ स्क्रीनिंग की जा रही है.
ट्रायल में हिस्सा लेने वाले बच्चों के एंटीबॉडी जांच सबसे जरूरी
शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ रमेश बंसल बताते हैं कि वैक्सीन ट्रायल में भाग लेने वाले इच्छुक बच्चे के लिये सबसे जरूरी है कि उसके शरीर में कोरोना का एंटीबॉडी मौजूद नहीं होना चाहिए. इनके लिए ब्लड टेस्ट के जरिये एंटीबॉडी की मौजूदगी का पता लगाया जाता है. सबसे पहले यही टेस्ट किया जाता है. इस टेस्ट में पास होने के बाद यानी अगर शरीर में कोरोना का एंटीबॉडी नहीं पाया गया तो आगे के सभी टेस्ट किये जाते हैं. हार्ट, लीवर, किडनी फंक्शन टेस्ट के अलावा ये भी पता किया जाता है कि बीपी और डायबिटीज की दिक्कत तो नहीं है. सभी टेस्ट में पास होने के बाद बच्चे ट्रायल टीका लेने के लिए तैयार होते हैं.
अभिभावकों से मंजूरी पत्र पर कराये जाते हैं हस्ताक्षर
विशेषज्ञ बताते हैं कि अभिभावकों को पहले ही ट्रायल से जुड़ी तमाम चीजें ही बता दी जाती है. साथ ही उन्हें रिस्क फैक्टर्स के बारे में आगाह कर दिया जाता है. इस स्टेज में भी अभिभावक अगर चाहे तो ट्रायल के लिए मना कर सकते हैं. एक बार परमिशन देने के बाद ट्रायल से पीछे नहीं हट सकते हैं.
टीका के गंभीर दुष्प्रभाव होने पर मुआवजा का भी प्रावधान
डॉ रमेश बंसल बताते हैं कि अगर किसी वॉलेंटियर पर टीका का कोई गंभीर दुष्प्रभाव पड़ता है तो टीका बनाने वाली कंपनी के साथ हुए करार के मुताबिक परिजनों को एक तयशुदा रकम भरपाई के रूप में दिए जाने का भी प्रावधान होता है.