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World Environment Day: स्वास्थ्य पर भारी पड़ रहा प्लास्टिक, बढ़ रहे डायबिटीज के खतरे - भारतीयों में डॉयबिटीज होने की छह गुना अधिक संभावना

प्लास्टिक से डायबिटीज के खतरे बढ़ रहे हैं. प्लास्टिक कचरे से बना ईडीसी इंडोक्राइन के फंक्शन को बिगाड़ सकता है, इसलिए प्लास्टिक से बचाव के लिए इस बार विश्व पर्यावरण दिवस का थीम बीट प्लास्टिक पॉल्यूशन रखा गया है.

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Published : Jun 5, 2023, 7:41 PM IST

प्लास्टिक से बढ़ रहे डायबिटीज के खतरे पर डॉक्टरों की सलाह

नई दिल्ली: प्लास्टिक कचरा विश्व भर के लिए एक बड़े खतरे के रूप में मंडरा रहा है. इससे निपटने के लिए विश्व के सभी देश जूझ रहे हैं, इसलिए इस बार पर्यावरण दिवस की थीम ' बीट प्लास्टिक पॉल्यूशन' (Beat plastic pollution) रखी गई है. इसका लक्ष्य प्लास्टिक प्रदूषण पर रोक लगाने के लिए जरुरी कार्यों के बारे में लोगों को जागरूक करना है. हम अंधाधुंध प्लास्टिक का उपयोग कर रहे हैं, लेकिन यह पृथ्वी के लिए यह बेहद खतरनाक साबित हो रहा है. ये हमारे स्वास्थ्य को काफी प्रभावित कर रहे हैं और हमें इसका पता भी नहीं चलता है. इसमें एंडोक्राइन डिस्रप्टिंग केमिकल् (ईडीसी) होते हैं, जो हमारे शरीर के उस हिस्से को खराब कर सकते हैं, जो हार्मोन बनाता है. इससे लोगों को डायबिटीज जैसी खतरनाक बीमारियां भी हो सकती हैं.

प्लास्टिक से प्राप्त EDC कर सकते हैं हॉर्मोन की गड़बड़ी:एम्स दिल्ली की माइक्रोबायोलॉजी विभाग की एसआर डॉ. मनाली अग्रवाल बताती हैं कि डायबिटीज एक ऐसी बीमारी है, जो तब होती है जब हमारा शरीर भोजन से मिल रही ऊर्जा का ठीक से उपयोग नहीं कर पाता है. पर्यावरण में कुछ चीजें होती हैं, जिन्हें ईडीसी कहा जाता है और इनकी वजह से लोगों को डायबिटीज होने की आशंका अधिक होती है. ये ईडीसी प्लास्टिक, खाद्य कंटेनर और कुछ व्यक्तिगत देखभाल में उपयोग किये जा रहे उत्पादों में पाये जाते हैं. ऐसे में ये ईडीसी हमारे शरीर में हार्मोन की तरह कार्य कर सकते हैं और गड़बड़ी कर सकते हैं.

ईडीसी हमारे शरीर में इंसुलिन बनाने वाली कोशिकाओं को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं, जिससे हमारे शरीर के लिए हमारे ब्लड शुगर लेवल को सामान्य रखना और भी कठिन हो जाता है. ये इंसुलिन के उत्पादन और स्राव को कम कर सकता है. यही आगे चलकर डॉयबिटीज को बढ़ाता है.

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भारतीयों में डॉयबिटीज होने की छह गुना अधिक संभावना:एलएनजेपी अस्पताल के डॉक्टर डॉ. रोहन कृष्णन बताते हैं कि भारतीयों समेत दक्षिण एशियाई सामान्य आबादी के बाकी हिस्सों की तुलना में टाइप 2 डॉयबिटीज होने की छह गुना अधिक संभावना है. हम डॉयबिटीज होने के बाद भी शरीर का सही तरीके से ध्यान नहीं रखते हैं, जिसकी वजह आनुवांशिकी और जीवनशैली भी है, कुछ पर्यावरणीय खतरों से भी हम नहीं बच पाते हैं. जैसे प्रदूषण और औद्योगिक रसायन विज्ञान, ईडीसी जो भारतीयों में डॉयबिटीज के विकास के खतरे में योगदान करते हैं.

जागरुकता बढ़ाने के लिए बदलाव की आवश्यकता:बीट ओ के मुख्य क्लिनिकल ऑफिसर डॉ. नवनीत अग्रवाल बताते हैं कि ईडीसी का मुद्दा सभी के लिए चिंता का विषय है. इसके खतरे को देखते हुए हमें ईडीसी के उपयोग और सुरक्षित विकल्पों को बढ़ावा देने के लिए सख्त नियमों की आवश्यकता है. इस पर्यावरण दिवस पर एंडोक्राइन डिस्रप्टिंग केमिकल्स (ईडीसी) से जुड़े संभावित स्वास्थ्य जोखिमों को उजागर करने के अवसर के तौर पर लेना चाहिए. इसमें डॉयबिटीज़ से उनका संबंध भी शामिल है. भारत में लगभग 7. 7 करोड़ लोगों को डॉयबिटीज पहले से ही है. हमें लोगों को इसके बारे में जागरूक भी करना होगा. उन्होंने बताया कि ईडीसी डॉयबिटीज के कई संभावित योगदानकर्ताओं में से एक हैं और हमें बीमारी में उनकी भूमिका को पूरी तरह से समझने के लिए अधिक अध्ययन करने की आवश्यकता है.

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