नई दिल्लीःनए साल से दिल्ली के प्राइवेट हॉस्पिटल्स में सरकारी नियम के तहत मुफ्त इलाज कराने के लिए योग्य गरीब मरीजों को दिल्ली सरकार के बदले नियम के बाद इलाज नहीं मिल पा रहा है. निजी अस्पताल वाले गरीब मरीजों को एक गैर जरूरी नियम का हवाला देकर अस्पताल में इलाज करने से मना कर रहे हैं.
दिल्ली में गरीब मरीजों को इलाज में हो रही दिक्कत..! अस्पताल गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले मरीजों को किसी सरकारी अस्पताल में जाकर वहां से रेफरल लेटर लेकर आने को कह रहे हैं. तभी उन्हें निजी अस्पतालों में मुफ्त इलाज मिल सकता है. दूसरी तरफ सरकार ने सरकारी अस्पतालों में मेडिकल डायरेक्टर और सुपरिंटेंडेंट को सख्त निर्देश दिया है कि किसी भी मरीज को निजी अस्पतालों में रेफर ना किया जाए, जिसका परिणाम है कि गरीब मरीज इलाज के अभाव में सरकारी और निजी अस्पतालों के बीच झूलते हुए दम तोड़ रहे हैं.
एक निजी अस्पताल में मरीज को हो रही दिक्कत..!
आरोप लगाया गया है कि द्वारका सेक्टर 12 निवासी दिनेश के पिता के डायबिटिज का इलाज पिछले 6 महीने से द्वारका स्थित एक निजी अस्पताल वेंकटेश्वर अस्पताल में चल रहा था. कुछ दिन पहले जब उनके किडनी फैलियर का पता चला, तो अस्पताल ने मरीज को स्पष्ट कर दिया कि वह किसी सरकारी अस्पताल में जाकर रेफरल लेटर लेकर आए, तभी उनका इलाज इस अस्पताल में मुफ्त में हो सकता है.
हैरानी की बात यह है कि पिछले 6 महीने से इसी अस्पताल में मरीज का मुफ्त में इलाज हो रहा था. नए साल के बाद ऐसा क्या हुआ कि अस्पतालों में मुफ्त इलाज पाने के लिए एक अलग से नियम बना दिया गया? दिनेश ने बताया कि 7 जनवरी को उनके पिता की तबीयत अचानक खराब हो गई, तो वह द्वारका सेक्टर 16 स्थित वेंकटेश्वर हॉस्पिटल ले गए, जहां उनका पहले से इलाज चल रहा था.
अस्पताल में जांच के बाद जब पता चला कि उनके पिता की किडनी फेल हो रहे हैं, तो उन्हें डायलिसिस की जरूरत है. अस्पताल प्रशासन ने उन्हें ईडब्ल्यूएस के तहत मुफ्त में इलाज पाने के लिए दिल्ली सरकार के किसी सरकारी अस्पताल से रेफरल लेटर बनवाकर लाने को कह दिया. इसके लिए उन्हें बताया गया कि दिल्ली सरकार ने अब नियम में बदलाव कर दिए हैं. बिना रेफरल लेटर के वो किसी भी गरीब मरीज का इलाज नहीं कर सकते हैं.
'जबरदस्ती साइन करवाकर मरीज को निकाला'
इसके बाद दिनेश 8 जनवरी को अपने पिता को लेकर राम मनोहर लोहिया अस्पताल पहुंचे. वहां उनकी जरूरी जांच हुई. जांच में उनकी किडनी फेल होने की रिपोर्ट सामने आई, लेकिन आरएमएल अस्पताल में बेड उपलब्ध नहीं होने का हवाला देकर उनके पिता को एडमिट करने से मना कर दिया गया. डॉक्टर ने दिनेश से कहा कि उनके पिता की स्थिति काफी खराब है वह किसी और अस्पताल में ले जाएं.
दिनेश ने कहा कि आप उनके पिता को द्वारका के वेंकटेश्वर अस्पताल में रेफर कर दें, जहां उनका इलाज चल रहा है. इस पर राम मनोहर लोहिया अस्पताल के डॉक्टरों ने एक पेपर पर दिनेश से जबरदस्ती हस्ताक्षर करवा लिए. उस पेपर पर अंग्रेजी में लिखा था कि वह अपनी मर्जी से अपने पिता को इस अस्पताल से ले जा रहे हैं और इसकी जिम्मेदारी वह खुद ले रहे हैं.
मरीज से बदसलूकी का आरोप
दिनेश अपने पिता को लेकर वेंकटेश्वर अस्पताल ले गए, तो वहां उनसे काफी बदसलूकी की गई. उनकी गरीबी का मजाक उड़ाया गया. वहां के सीएमडी ने उनसे बड़े ही बेरूखी से कहा कि बड़े अस्पताल देखे नहीं कि मुंह उठा कर चले आए. आपको बता दें कि निजी अस्पतालों को गरीब मरीजों के इलाज के पैसे दिल्ली सरकार वहन करती है. इसके बावजूद निजी अस्पतालों का गरीब मरीजों के प्रति रवैया बेहद खराब होता हैं.
सोशल ज्यूरिस्ट ने दिल्ली सरकार को लिया आड़े-हाथों
सोशल ज्यूरिस्ट और अस्पतालों में गरीब मरीजों के इलाज में मदद करने वाले अशोक अग्रवाल ने दिल्ली सरकार के बदले नियम को लेकर उस पर निशाना साधा है. उन्होंने कहा कि दिल्ली सरकार को गरीबों से केवल वोट के अलावा कोई लेना- देना नहीं है. नए वर्ष से दिल्ली सरकार ने निजी अस्पतालों में मुफ्त इलाज पाने योग्य गरीब मरीजों की सुविधा के लिए बनाए नियम में अचानक बदलाव कर दिया है.
उन्होंने कहा कि जितने भी गरीब मरीज चाहे उनका इलाज ओपीडी में हो रहा हो या आईपीडी में, नए मरीज हो या पुराने मरीज हो उनका किसी निजी अस्पताल में इलाज के लिए किसी सरकारी अस्पताल से रेफर होना अनिवार्य कर दिया है. निजी अस्पतालों का कहना है कि उन्हें निर्देश दिल्ली सरकार की तरफ से मिला है. इसका परिणाम यह हुआ है कि दिल्ली में जितने भी गरीब मरीजों का इलाज निजी अस्पतालों में चल रहा था या आगे होने वाला था इलाज बीच में ही रुक गए हैं.
'दिल्ली सरकार कोर्ट के आदेश का कर रही उल्लंघन'
अशोक अग्रवाल ने स्पष्ट कहा कि हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिया है कि गरीब मरीजों का इलाज निजी अस्पतालों में बिना किसी परेशानी की होनी चाहिए, तो बीच में दिल्ली सरकार कोर्ट के निर्देश की अवहेलना करने वाली कौन होती है? निजी अस्पताल गरीब मरीजों का इलाज करने से सिर्फ एक बिना पर मना कर सकता है कि उनके पास बेड नहीं है. लेकिन अगर 25 परसेंट ओपीडी और 10 परसेंट आईपीडी में बेड खाली रहने पर निजी अस्पताल में मरीजों का इलाज करने से मना नहीं कर सकते.
वेंकटेश्वर अस्पताल और महाराजा अग्रसेन अस्पताल में ऐसे ही गरीब मरीजों को इलाज करने से मना किया गया है. सारे निजी अस्पतालों में गरीब मरीजों का मुफ्त इलाज रुक गया है. दिल्ली सरकार को तुरंत इस मुद्दे को स्पष्ट करन चाहिए और गरीब मरीजों का निजी अस्पातालों में इलाज सुनिश्चित करवानी चाहिए.
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