नई दिल्ली:राजधानी दिल्ली में कोरोना का प्रकोप लगातार जारी है और मौत का ग्राफ भी बढ़ रहा है. ऐसे भयावय हालात में ग्रामीण क्षेत्रों में क्या हालात हैं. इसी को लेकर ईटीवी भारत की टीम राजधानी दिल्ली के आखिरी गांव भाटी माइंस में पहुंची. जहां कोरोना का हाल, स्वास्थ्य सेवाओं का इंतज़ाम और अंतिम संस्कार की स्थिति कैसी है इसका जायजा लिया और स्थानीय लोगों से इन विषयों पर बात कर जाना कि सरकार की तरफ से इस गांव में क्या व्यवस्थाएं की गई हैं.
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कोरोना से बचाव को लेकर नहीं है कोई इंतजाम
ईटीवी भारत से स्थानीय लोगों ने बात करते हुए बताया की इस गांव में करीब 50 हजार की आबादी रहती है. जो लगभग मजदूरी कर ही अपना गुजर बस कर रहे हैं. अशिक्षा के कारण इनके अंदर जागरूकता का अभाव है. तो वहीं सरकार भी कोई काम नहीं कर रही. जिससे वह सुरक्षित रह सके. इन लोगों का कहना है कि यहां इस भयानक बीमारी से बचने के लिए सेनेटाइजेशन और जागरूकता की कोई व्यवस्था नहीं है.
साथ ही इस गांव में कोरोना टेस्टिंग की व्यवस्था न होनें के कारण उन्हें 10-15 किलोमीटर छत्तरपुर और महरौली जाना पड़ता है. कुछ गिनेचुने ही लोग वहां जाते है लेकिन कभी नम्बर नहीं आता तो कई बार वहीं के लोकल लोग नम्बर आने नहीं देते जिसके कारण बिना टेस्टिंग के इस गांव में अंदाज लगाना मुश्किल है कि कितने लोग संक्रमित है.
स्वास्थ सेवाएं ठप
भाटी माइंस के इस गांव में स्वास्थ्य सेवाओं के नाम पर मोहल्ला क्लीनिक बने हुए हैं. जो इस कोरोना काल मे भी बंद पड़े हैं अगर ऐसे में किसी को छोटी-मोटी बीमारी से परेशानी हो तो वह कहां जाएंगे. तानिष नाम के युवक ने बताया कि उनके 2 भाई पिछले 8 दिनों से संक्रमित हैं लेकिन अभी तक कोई डॉक्टर या सरकार की तरफ से परामर्श नहीं मिल पाया है. ऐसे में वह क्या करें, कहां जाएं.
श्मशान घाट में नहीं है कोई व्यवस्था
लोगों का कहना है कि अभी कुछ लोगों ने ही टेस्टिंग करवाई है जिसमें 500 से 600 केस पॉजिटव पाए गए हैं और करीब 15-20 लोग अपनी जान भी गंवा चुके हैं. ऐसे में अगर बात श्मशान घाट की करें तो यहां प्रशासन की तरफ से कोई व्यवस्था नहीं है ये लोग गांव के ही घरों से लकड़ियां इकठ्ठा कर अंतिम संस्कार कर रहे हैं.
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मजदूरों को आजीविका का संकट
स्थानीय लोगों का कहना है कि इस गांव में लगभग 80 प्रतिशत लोगों का जीवन मजदूरी करके ही चलता है. ऐसे लगे लॉकडाउन के कारण हालात काफी बिगड़ते जा रहे हैं उन्हें अपना जीवन यापन करने में काफी समस्याएं हो रही है और अभी तक सरकार की मदद उन तक नहीं पहुंची.
भगवान भरोसे ही है ये गांव
स्थानीय लोगों नें सरकार पर उदासीनता के आरोप लगाते हुए कहा कि इस गांव में न तो कोरोना से बचाव के लिए सरकार कोई मदद के रही है और नहीं कोरोना की टेस्टिंग की जा रही है. अगर कोई संक्रमित होता है तो वो ऐसे में कहां जाएंगे. साथ ही इन लोगों का कहना है की मोहल्ला क्लीनिक बंद होनें से स्वास्थ्य सेवाएं भी ठप पड़ी हैं. ऐसे में इस संकट की घड़ी में उनका पूरा गांव भगवान भरोसे ही दिखाई दे रहा है.
भाटी माइंस के श्मशान गृह में व्यवस्थाओं का अभाव मटियाला गांव
मटियाला गांव की कहनी भी कुछ ऐसी ही है. यहां ग्रामीणों से सतर्कता बरती जिसके कारण आज यहां कोरानो का प्रकोप कम देखने को मिल रहा है. यहां लॉकडाउन का बखूबी पालन किया जा रहा है। लोग-बाग अपने घरों में है, जिस वजह से संक्रमण की चेन अब टूटती नजर आ रही है. इस गांव की बात करें तो यहां कुछ- एक लोग ही अभी कोरोना संक्रमित हैं. यहां के 45 साल से ऊपर के 70 प्रतिशत के लगभग लोगों ने अपना वैक्सीनशन करवा लिया है. जिन्होंने नहीं लिया है उसके लिए ये एक- दूसरे को जागरूक बना कर वैक्सीनेशन के लिए प्रेरित कर रहे हैं.
अर्थशास्त्री भी जता रहे चिंता
अर्थशास्त्री भी कोरोना के कारण ग्रामीण इलाकों से होने वाले अर्थव्यवस्था को नुकसान की बात कह रहे हैं. अर्थशास्त्री आकाश जिंदल ने ग्रामीण इलाकों में फैल रहे संक्रमण के चलते रूरल इकोनामी को होने वाले नुकसान को लेकर चिंता जाहिर की है.
अर्थशास्त्री आकाश जिंदल का कहना है कि जहां पिछले वर्ष संक्रमण शहरों में तेजी से फैला था लेकिन ग्रामीण इलाकों में इसके मामले बहुत कम देखने को मिले थे, ऐसे में जहां शहरी इलाकों में अर्थव्यवस्था को काफी नुकसान पहुंचा था.
ग्रामीण इलाकों से अर्थव्यवस्था को कोई नुकसान नहीं पहुंचा था, ग्रामीण इलाकों में खेती-बाड़ी और अन्य कामकाज के चलते अर्थव्यवस्था पर बुरा असर नहीं पड़ा था, लेकिन इस बार दूसरी लहर में संक्रमण ग्रामीण इलाकों में भी तेजी से बढ़ रहा है, और ऐसे में वहां स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव और लोगों में जागरूकता की कमी के चलते स्थिति चिंताजनक होती जा रही है
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ग्रामीण इलाकों में लगातार बढ़ रही संक्रमितों की संख्या
अर्थशास्त्री आकाश जिंदल का कहना है कि जहां पिछले वर्ष संक्रमण शहरों में तेजी से फैला था लेकिन ग्रामीण इलाकों में इसके मामले बहुत कम देखने को मिले थे, ऐसे में जहां शहरी इलाकों में अर्थव्यवस्था को काफी नुकसान पहुंचा था वहीं ग्रामीण इलाकों से अर्थव्यवस्था को कोई नुकसान नहीं पहुंचा था.
ग्रामीण इलाकों में खेती-बाड़ी और अन्य कामकाज के चलते अर्थव्यवस्था पर बुरा असर नहीं पड़ा था, लेकिन इस बार दूसरी लहर में संक्रमण ग्रामीण इलाकों में भी तेजी से बढ़ रहा है, और ऐसे में वहां स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव और लोगों में जागरूकता की कमी के चलते स्थिति चिंताजनक होती जा रही है.
जांच और इलाज की नहीं है ग्रामीण इलाकों में पर्याप्त सुविधा
आकाश जिंदल का कहना है कि ग्रामीण इलाकों में वायरस की जांच बहुत कम हो रही है, वही वैक्सीनेशन को लेकर भी लोग जागरुक नहीं है, और ना ही उस स्तर पर वैक्सीनेशन के लिए व्यवस्था है जिस प्रकार से शहरी इलाकों में व्यवस्था बनी हुई है. हालांकि वैक्सीनेशन की कमी के चलते उस प्रकार से वैक्सीनेशन भी नहीं हो पा रहा है.
भाटी माइंस में बंद पड़ा मोहल्ला क्लीनिक इसके अलावा यदि कोई संक्रमित होता है, तो अधिकतर लोग उसे कोई आम बुखार या खासी जुखाम समझकर घर पर ही इलाज करने की कोशिश करते हैं, और जब तक बीमारी गंभीर होती है तब तक व्यक्ति की जान चली जाती है, इसके अलावा ग्रामीण इलाकों में नजदीकी अस्पतालों में हर जगह कोरोना का इलाज नहीं हो रहा है, दूरदराज अस्पतालों में कोरोना को लेकर इलाज के लिए ऑक्सीजन, वेंटिलेटर या कोरोना की दवाइयों की सुविधा भी नहीं देखने को मिलती.
ग्रामीण इलाकों में वैक्सीनेशन और एंबुलेंस की हो सुविधा
अर्थशास्त्री आकाश जिंदल ने केंद्र सरकार और राज्य सरकारों से अपील की है कि ग्रामीण इलाकों में फैल रहे संक्रमण को रोकने के लिए अभियान चलाया जाना चाहिए, ज्यादा से ज्यादा टेस्टिंग करवाई जाए, और लोगों के लिए फ्री वैक्सीनेशन की सुविधा भी उपलब्ध हो, इसके साथ ही यदि कोई संक्रमित होता है, तो एंबुलेंस की सुविधा उपलब्ध कराई जाए जिससे की तुरंत नजदीकी जिला अस्पताल में उसका इलाज हो सके.
आकाश जिंदल ने सरकार को आगाह करने की कोशिश की है कि यदि रूरल एरिया में यह संक्रमण और बढ़ेगा,तो ना केवल बहुमूल्य जाने जाएंगी, बल्कि इससे अर्थव्यवस्था को भी बड़ा नुकसान हो सकता है, क्योंकि भारत की अर्थव्यवस्था अधिकतर एग्रीकल्चर और ग्रामीण इलाकों पर निर्भर होती है.