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Unique Surgery in AIIMS: एम्स में पहली बार मेटल फ्री स्पाइन फिक्सेशन सर्जरी से दी गई नवजात को नई जिंदगी

एम्स में 6 महीने के शिशु की एक अनोखी सर्जरी कर उसे एक नया जीवन दिया गया है. एम्स ट्रामा सेंटर के न्यूरो सर्जरी के प्रोफेसर के नेतृत्व में 15 घंटे चली मेटल फ्री स्पाइन फिक्सेशन सर्जरी की गई. इतनी कम उम्र के शिशु की होने वाली भारत की यह पहली सफल सर्जरी है, इसमें शिशु को 11 तक महीने वेंटिलेटर पर रखना पड़ा.

metal free spine fixation surgery at AIIMS
metal free spine fixation surgery at AIIMS

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Published : May 12, 2023, 7:53 PM IST

नई दिल्ली:देश के सबसे बड़े अस्पताल एम्स में 6 महीने के बच्चे की अनोखी सर्जरी कर डॉक्टरों ने उसे नया जीवन दिया है. एम्स ट्रामा सेंटर के न्यूरो सर्जरी के प्रोफेसर डॉ. दीपक गुप्ता के नेतृत्व में न्यूरोएनेस्थीसिया के प्रोफेसर डॉ जीपी सिंह, न्यूरोफिजजियोलॉजी के प्रोफेसर डॉ अशोक जरयाल, बाल रोग विभाग के डॉ शेफाली गुलाटी, डॉ राकेश लोढ़ा और डॉ झूमा शंकर ने इस स्पेशल सर्जरी मेटल फ्री स्पाइन फिक्सेशन सर्जरी को अंजाम दिया, जो सफल रहा.

इस बच्चे को लगभग 11 महीने तक वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखना पड़ा. बच्चे का ऑपरेशन हुआ 10 जून, 2022 को हुआ था और उसे 10 मई 2023 को डिस्चार्ज किया गया. इसके अलावा बच्चे को लंबे समय तक पुनर्वास सहायता की आवश्यकता पड़ी. उसे प्रोफिलैक्टिक रूप से ट्रेकियोस्टोमी ट्यूब पर छुट्टी दे दी गई. बच्चा अब माता-पिता के साथ अच्छी तरह से बातचीत करता है और अच्छी तरह खेलता भी है. सर्जरी के बाद उसके अंगों में मूवमेंट हो रही है और आंशिक न्यूरोलॉजिकल रिकवरी दिखाई दे रही है.

भारत में ऐसी पहली सर्जरी: एम्स ट्रामा सेंटर के न्यूरो सर्जरी डिपार्टमेंट के प्रोफेसर डॉक्टर दीपक गुप्ता ने बताया कि ऐसे छोटे शिशुओं में स्पाइन फिक्सेशन की सर्जरी भारत में न तो रिपोर्ट की गई है और न ही देखी गई है. जून 2022 में एम्स ट्रॉमा सेंटर में 6 महीने की एमसीएच की सफल मेटल फ्री स्पाइन फिक्सेशन सर्जरी की गई थी. इसके साथ ही यह शिशु भारत में इस तरह की सर्जरी से नया जीवन पाने वाला सबसे कम उम्र का बच्चा बन गया है. उन्होंने बताया कि उसे ठीक होने और छाती के संक्रमण से बचने के अपने रास्ते में अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना है. जेपीएन एपेक्स ट्रॉमा सेंटर में 11 महीने तक अस्पताल में रहने के दौरान, अस्पताल के विभिन्न डॉक्टरों, नर्सों और पैरामेडिकल स्टाफ ने बच्चे और माता-पिता को लगातार सहायता प्रदान की, जो हर समय मौजूद रहे.

बच्चे की स्पाइन हुई थी चोटिल:सामान्य प्रसव के दौरान बच्चे को रीढ़ की हड्डी और ब्रेकियल प्लेक्सस में चोट लगी थी. जन्म के समय उसका वजन 4.5 किलो था. स्पाइन फ्रैक्चर होम के कारण जन्म के बाद, बच्चे को ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखा गया था. जिस अस्पताल मेम शिशु का जन्म हुआ था वहां उसे एस्पिरेशन निमोनिया से पीड़ित बताया गया था. मई 2022 में शिशु को एम्स ट्रामा सेंटर में ले जाया गया था. बच्चे को श्वसन संकट और तीनों अंगों (बाएं ऊपरी और निचले अंग, दाएं निचले अंग) की न्यूनतम गति थी और दाएं ऊपरी अंग (एर्ब्स'पाल्सी) का कोई मूवमेंट नहीं हो रहा था. जांच में रीढ़ की हड्डी में चोट और सर्वाइकल स्पाइन डिस्लोकेशन (सरवाइकल स्पॉन्डिलोप्टोसिस) का पता चला.

जब बच्चे को एम्स ट्रॉमा सेंटर में लाया गया था तो बच्चे की श्वसन प्रणाली पूरी तरह खराब हो चुकी थी. जांच में पता चला रीड की हड्डी में चोट और सर्वाइकल स्पाइन डिसलोकेशन के कारण उसकी ऐसी स्थिति हुई है. इस प्रकार की स्पाइन इंजरी को ठीक करना लगभग असंभव था, क्योंकि ऐसे छोटे शिशुओं में कार्टिलेजिनस हड्डियों के बहुत छोटे आकार के कारण इसका प्रत्यारोपण नहीं किया जा सकता. इसलिए इसके इलाज के दूसरे तरीके पर विचार करना पड़ा.

मेटल फ्री स्पाइन फिक्सेशन सर्जरी:ऐसे छोटे शिशुओं में कार्टिलाजिनस हड्डियों के बहुत छोटे आकार के कारण प्रत्यारोपण लगभग असंभव था. समझाने पर मां अपनी इलियाक क्रेस्ट बोन का हिस्सा अपने बच्चे को देने के लिए तैयार हो गई. बच्चे की मां को उसी समय सामान्य एनेस्थीसिया दिया गया था, जब बच्चे की रीढ़ की हड्डी को ठीक करने के लिए समानांतर ऑपरेशन थियेटर में 15 घंटे की लंबी सर्जरी की जा रही थी. दिलचस्प बात यह है कि इस मामले में मां का ब्लड ग्रुप बी पॉजिटिव था जबकि बच्चे का ब्लड ग्रुप ए पॉजिटिव था. एक साल के फॉलोअप में बोन ग्राफ्ट की कोई अस्वीकृति नहीं देखी गई. इस प्रक्रिया से बच्चे में अच्छी बोनी फ्यूजन और रीढ़ की स्थिरता प्राप्त की गई.

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बच्चे ने अपना पहला जन्मदिन दिसंबर 2022 में जेपीएनएटीसी (एम्स) में मनाया था और 11 महीने तक ट्रॉमा सेंटर के टीसी5 वार्ड में रहा. जबकि वह वेंटिलेटर सपोर्ट पर था और न्यूरोरिहैबिलिटेशन सपोर्ट से गुजर रहा था. बच्चे की देखभाल न्यूरोसर्जरी, न्यूरोएनेस्थीसिया, पीडियाट्रिक्स और ट्रॉमा सर्जरी विभाग के डॉक्टरों की टीम ने की.

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