नई दिल्लीःकेजरीवाल सरकार शेल्टर होम में बेघरों के लिए बेहतर सुविधा देने का दावा करती है, लेकिन शेल्टर होम की हालत को देखकर ऐसा बिल्कुल नहीं लगता. दिल्ली सरकार के ज्यादातर शेल्टर होम्स में ना तो बिस्तर का इंतजाम है और ना ही ओढ़ने के लिए कंबल है. कड़कड़ाती सर्द रात बेघरों के लिए पूस की रात बन जाती है और खुद बेघर प्रेमचंद की मशहूर कथा "पूस की रात" का मुख्य पात्र "सहना" बन जाता है, जिसकी नियति सरकारी अव्यवस्थाओं के साथ जीना और मौसम की मार को सहना मात्र रह गया है.
इसी बीच बेघरों के लिए आवाज उठाने वाले सामाजिक कार्यकर्ता सुनील अलेडिया दिल्ली सरकार के नाइट सेंटर्स का जायजा लिया. कोरोना काल में जहां दो गज की दूरी और मास्क है जरूरी एक राष्ट्रीय नारा बन गया है, वहीं इन नाइट शेल्टर्स में दोनों ही चीजें नदारद हैं. ठूस-ठूस कर लोग नाइट शेल्टर्स में तो भरे हैं ही, यहां उनके साथ कुत्ते भी बिस्तर साझा करने के लिए पहुंच जाते हैं.
'सिर्फ विज्ञापनों में ही दिखती है सुविधाएं'