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शौर्यगाथाः 'ऑपरेशन रक्षक' के दौरान भारतीय जांबाजों ने दिखाया था अदम्य साहस, याद कर पत्नियों की भर आती हैं आखें

आज कारगिल युद्ध के 24 साल पूरे हो गए. इस युद्ध को हमने वीरता के साथ लड़ते हुए जीता था. वहीं, कारगिल युद्ध के दौरान सरहद के समीप जम्मू कश्मीर में उग्रवादियों का आतंक था. इस आतंक को खत्म करने के लिए 'ऑपरेशन रक्षक' चलाया गया था. उस दौरान भी हमारे कई सैनिक वीरता से लड़ते हुए शहीद हुए थे. आइए जानते हैं उनकी शहादत और उनके परिवार के बारे में...

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Published : Jul 26, 2023, 11:06 AM IST

Updated : Jul 26, 2023, 4:42 PM IST

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कारगिल विजय दिवस की यादें

नई दिल्लीः 26 जुलाई 2023 को कारगिल युद्ध के 24 साल पूरे हो गए हैं. देश में इस दिन को कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है. 3 मई 1999 को पाकिस्तानी सैनिकों ने जम्मू-कश्मीर के कारगिल जिले में घुसपैठ शुरू कर दी थी. इसके बाद भारतीय सेनाओं ने उनका जमकर मुकाबला किया और 14 जुलाई को पाकिस्तानी सेना को भारतीय क्षेत्र से पूरी तरह से खदेड़ दिया. भारत ने अपने सभी इलाकों को हासिल कर लिया. 26 जुलाई को भारत ने कारगिल युद्ध को जीतने की घोषणा कर दी. 18 हजार फीट की ऊंचाई पर भारत ने जीत का परचम लहराया.

वहीं, कारगिल युद्ध के दौरान देश की सरहद के समीप जम्मू कश्मीर में उग्रवादियों का आतंक था. उसको खत्म करने के लिए 'ऑपरेशन रक्षक' चलाया गया था. वहीं, इस ऑपरेशन में शहीद हुए जवानों के परिवार वाले इस दिन को याद करके गमगीन हो जाते हैं. द्वारका स्थित कारगिल अपार्टमेंट में रह रहे शहीद के परिजनों का कहना है कि वह ऐसा बुरा दौर था, जो पहाड़ की तरह उनके ऊपर टूट पड़ा था, लेकिन सरकार की तरफ से जैसे-तैसे मिला समर्थन ही काम आया. उस वक्त पैदा हुए बच्चे आज 24-25 साल के हो चुके हैं.

लांसनायक अरुण कुमार सिंह ने दिखाया था अदम्य साहसः'ऑपरेशन रक्षक' के दौरान श्रीनगर के अनंतनाग जिले में तैनात लांसनायक अरुण कुमार सिंह ने उग्रवादियों का जमकर मुकाबला किया था. उनकी उम्र उस समय मात्र 23 साल थी. वह मुठभेड़ में 20 नवंबर 1999 को शहीद हो गए थे. कारगिल युद्ध समाप्त होने के बाद वे दो महीने की छुट्टी पर घर लौटे और फिर नवंबर में आने का आश्वासन देकर काम पर लौट गए थे. वे लौटे नवंबर में ही, पर जिंदा नहीं. अरुण कुमार सिंह मूल रूप से बिहार के छपरा के रहने वाले थे. अपने पिता से प्रेरणा लेकर अब उनका बेटा NDA में एडमिशन ले चुका है.

उनकी पत्नी नीलम ने बताया कि जिस समय वो शहीद हुए, उनका बेटा मात्र पांच महीने का था. उन्हें बहुत ही डर लग रहा था, क्या होगा अब? उन्होंने भरे मन से कहा कि सरकारी मदद जैसे-तैसे मिली, सबकी नजर हमारे ऊपर थी. क्या पहनते हैं, क्या खाते हैं, कैसे रहते हैं, सब पर कटाक्ष होता था. सरकार की तरफ से जो मिलना था, उतना मिला नहीं. ज्यादा कुछ बोलती तो लोग कहते कीमत मांग रही हूं, इसलिए मैं चुप हो गई थी.

सूबेदार कैलाश सिंह ने किया था दुश्मन का डटकर मुकाबलाः वहीं, 'ऑपरेशन रक्षक' के दौरान श्रीनगर के अवंतीपुर ब्रिज के पास उग्रवादी हमले में सूबेदार कैलाश सिंह कौंछर शहीद हो गए. 18 जनवरी 2001 को हुए हमले में सूबेदार कैलाश सिंह ने बहादुरी का परिचय देते हुए उग्रवादियों का डटकर सामना किया. उन्होंने तीन उग्रवादियों को ताबड़तोड़ हमले में ढेर कर दिया, लेकिन इस दौरान उनके सीने में गोली लग गई, जिसमें वे शहीद हो गए. वे मूलतः उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ के रहनेवाले थे.

उनकी पत्नी जयंती देवी ने बताया कि पति सूबेदार कैलाश सिंह की शहादत के बाद सरकार से मदद मिली. कुछ पैसा लेकर विजय वीर अपार्टमेंट में फ्लैट दिया गया था. उस समय तीन छोटे-छोटे बच्चेथे. उन्होंने बताया कि उन्हें बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ा. अब बच्चे बड़े हो गए हैं. जिंदगी पटरी पर लौटने लगी है. लेकिन वह समय हमारे लिए बहुत ही कठिन था. उसे याद करना भी मुश्किल होता है. पति के जाने के बाद क्या दिक्कत होती है, कैसी मुसीबत आती है, यह बयां नहीं कर सकते.

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Last Updated : Jul 26, 2023, 4:42 PM IST

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