नई दिल्ली: राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) ने दिल्ली के एक निजी अस्पताल और संबंधित डॉक्टरों पर प्रजनन प्रक्रिया संबंधी गड़बड़ी के लिए 1.5 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया है. दरअसल डॉक्टरों ने महिला को गर्भधारण में मदद के लिए पति के बजाय किसी और व्यक्ति के शुक्राणुओं का इस्तेमाल किया था. शीर्ष उपभोक्ता आयोग द्वारा एआरटी क्लीनिकों के खिलाफ कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा गया कि ऐसे क्लीनिकों की मान्यता की जांच के अलावा नवजात शिशुओं का डीएनए प्रोफाइल जारी करना भी अनिवार्य किए जाने की जरूरत है.
डीएनए प्रोफाइल से गड़बड़ी का पता चला:आयोग दंपति की एक शिकायत पर सुनवाई कर रहा था, जिसके अनुसार पत्नी ने जून 2009 में एसिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलोजी (एआरटी) प्रक्रिया के माध्यम से जुड़वा बच्चों को जन्म दिया था. चूंकि बच्चों का ब्लड ग्रुप माता-पिता के ब्लड ग्रुप के अनुरूप नहीं था, इसलिए उनकी डीएनए प्रोफाइलिंग की गई. इसमें पचा चला कि महिला का पति उसके जुड़वां बच्चों का जैविक पिता था ही नहीं. इसके बाद दंपती ने अस्पताल की लापरवाही के लिए दो करोड़ रुपये के मुआवजे का दावा करते हुए आयोग का रुख किया. इसमें कहा गया कि इससे उनके लिए भावनात्मक तनाव, पारिवारिक कलह और आनुवंशिक रूप से विरासत में मिली बीमारियों का डर सहित कई मुद्दे पैदा हुए.
लगा 1.5 करोड़ रुपये का जुर्माना:पीठासीन सदस्य एसएम कानितकर ने अपने आदेश में कहा, 'मेरे विचार में मौजूदा मामला विरोधी पक्षों द्वारा अपनाई गई भ्रामक और अनुचित व्यापार प्रथाओं का है जो पेशेवर नैतिकता भूल गए हैं. इस प्रकार दूसरे पक्ष 1-3 (अस्पताल, उसके निदेशक और अध्यक्ष) के अलावा विरोधी पक्ष 4-6 (तीन डॉक्टर) लापरवाही और अनुचित व्यापार प्रथाओं के लिए उत्तरदायी हैं. मैं प्रतिवादियों के खिलाफ 1.5 करोड़ रुपये की कुल एकमुश्त देनदारी तय करता हूं.' उन्होंने कहा कि रक्त समूह रिपोर्ट और डीएनए प्रोफाइल ने स्पष्ट रूप से साबित किया कि महिला का पति बच्चों का जैविक पिता नहीं था. आयोग ने कहा कि जुड़वां बच्चियों की पारिवारिक वंशावली अपरिवर्तनीय रूप से बदल दी गई और वे भविष्य में कठिनाइयों का सामना कर सकती हैं.