नई दिल्ली: दुनिया भर में कोरोना के प्रकोप में एक ठहराव आ गया है. साथ ही ऑक्सफोर्ड द्वारा बनाई वैक्सीन फाइजर के सफलतापूर्वक ह्यूमन ट्रायल पूरी होने के बाद इसके व्यवसायिक प्रयोग को हरी झंडी भी दिए जाने से कोरोना को लेकर लोगों के मन में डर कुछ कम हुआ है. इसी बीच वैक्सीन से जुड़े कुछ दुष्प्रभाव की तरफ भी विशेषज्ञों का ध्यान गया है, जिसके बाद वैक्सीन की सुरक्षा को लेकर एक बड़ा सवाल खड़ा हो गया है.
विशेषज्ञों का मानना है कि जिस वायरस की फैटालिटी रेट सिर्फ डेढ़ से दो फीसदी है, उसके लिए पूरी दुनिया में इतना बड़ा डर का माहौल खड़ा करना उचित नहीं है. जिस इंफेक्शन की वजह से 100 में सिर्फ एक या दो व्यक्ति के मरने की संभावना होती है. ऐसे में सभी लोगों को वैक्सीन की होड़ में शामिल करना कितना उचित है.
संदेह के घेरे में वैक्सीन फाइजर! 'डर पैदा करना उचित नहीं'
विशेषज्ञों की मानें तो यह सुनिश्चित कर पाना आसान नहीं है कि किस व्यक्ति को इस वायरस से बचाव का वैक्सीन दिया जाना चाहिए और किसको नहीं. यह सवाल इसलिए भी है क्योंकि कैंसर, जीवन शैली बीमारियां और वाइटल ऑर्गन के फेल होने की वजह से लाखों लोग मर रहे हैं जिस पर ध्यान नहीं है, लेकिन कोरोना इंफेक्शन की वजह से केवल कुछ लोग ही मर रहे हैं. उसको लेकर इतना बड़ा पैनिक क्रिएट किया जा रहा है.
दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन के सचिव और vaccineindia.org के एडमिनिस्ट्रेटर डॉ अजय गंभीर बताते हैं कि कोरोनावायरस की आड़ में पूरी दुनिया में एक बहुत बड़ा डर पैदा किया गया है और इस डर को फैला कर वैक्सीन बनाने वाली कंपनियां आपदा में अरबों- खरबों रुपए कमाने का अवसर देख रहे हैं.
'जितना बड़ा डर, उतना बड़ा मुनाफा'
विशेषज्ञों का कहना है कि मौजूदा हालात को देखते हुए यह अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि जिस तरह लोग कोरोना वायरस से डरे हुए हैं, वे वैक्सीन को लेकर भी काफी उत्साहित हैं. सभी लोग हर हाल में वैक्सीन लेकर खुद को इस बीमारी से सुरक्षित रखना चाहते हैं. इसमें कोई संदेह नहीं है कि वैक्सीन को लेकर लोगों में एक होड़ लगी है.
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हर कोई जल्दी से जल्दी वैक्सीन लेकर अपने आप को प्रोटेक्ट करना चाहता है वैक्सीन बनाने वाली कंपनियां यही तो चाहती है ताकि उन्हें ज्यादा से ज्यादा मुनाफा मिल सके.
फाइजर के साइड इफेक्ट्स से सुरक्षा के लेकर संदेह
बड़े जोर- शोर से ब्रिटेन की ऑक्सफोर्ड द्वारा बनाई गई वैक्सीन फाइजर का पूरी दुनिया भर में प्रचार प्रसार किया जा रहा है. लेकिन इस वैक्सीन का प्रयोग जिस व्यक्ति के ऊपर किया गया है, उनमें कई दुष्प्रभाव देखने को मिले हैं. इससे वैक्सीन की सुरक्षा को लेकर एक बड़ा सवाल पैदा हो गया है. जिन लोगों को फाइजर वैक्सीन लगाई गई है, उनमें कई लोगों को एलर्जी रिएक्शन देखे गए हैं.
डॉ अजय गंभीर बताते हैं कि ड्रग एक्ट के तहत वैक्सीन भी एक तरह की दवाई है, जो किसी बीमार व्यक्ति के बजाय किसी स्वस्थ व्यक्ति को दी जाती है ताकि उन्हें किसी खास तरह के इंफेक्शन से सुरक्षा प्रदान की जाए. यह ऐसी दवाई नहीं है, जो सर्दी बुखार या किसी तरह की दर्द के लिए दी जाए.
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कोरोना के लिए जो वैक्सीन बनाई गई है, वह पहली ऐसी वैक्सीन है, जो किसी एडल्ट व्यक्ति के लिए किसी बीमारी से सुरक्षा प्रदान के लिए बनाई गई है. इसके पहले जो भी वैक्सीन बनाई गई हैं, वह आमतौर पर बच्चों को कुछ खास बीमारियों से बचाव के लिए लगाई जाती हैं. बच्चों को अगर कोई दुष्प्रभाव हो तो इसे वह प्रतिक्रिया नहीं देते, लेकिन अगर एडल्ट व्यक्ति लगाई जाए और उसे कोई दुष्प्रभाव हो तो उस वैक्सीन के लिए उनका विश्वास टूट जाता है.
डॉ अजय के मुताबिक आमतौर पर कोई भी वैक्सीन को डिवेलप करने में 3 से 4 साल का समय लगता है, लेकिन कोरोना के वैक्सीन को सिर्फ 10 महीने के भीतर बनाया गया है. इसके लिए सेफ्टी मेजर्स का कितना पालन किया गया है, कहना मुश्किल नहीं है.
ब्रिटेश सरकार ने दुष्प्रभावों को दुनिया के सामने रखा
डॉ अजय वैक्सीन की सुरक्षा को लेकर सवाल खड़ा करते हैं कि अगर वैक्सीन इतना ही सुरक्षित है तो इसका दुष्प्रभाव क्यों हो रहा है, इसकी सेफ्टी और क्वालिटी को लेकर गहरा संदेह पैदा हो रहा है. अच्छी बात है कि ब्रिटेन की सरकार ने वैक्सीन के दुष्प्रभाव से जुड़ी खबरों को छिपाया नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के सामने उसे रखा ताकि ज्यादा बेहतर वैक्सीन डेवलप किया जा सके.
उन्होंने कहा कि कई बार ऐसा होता है कि वैक्सीन से जुड़े आंकड़े अंडरग्राउंड कर दिए जाते हैं और हमें पता भी नहीं चलता. आमतौर पर 95% माइल्ड रिएक्शन होते हैं, जबकि पांच परसेंट सीरियस होते हैं.