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अंगदान की कमी से जूझता देश, कोरोना ने भी डाला असर..! - organ donation in delhi

मानव शरीर एक अद्भुत मशीन है, लेकिन इसके कलपुर्जे किसी फैक्ट्री में नहीं बनते. शरीर के कलपुर्जे जरूरत पड़ने पर मरम्मत और बदले जा सकते हैं, लेकिन इसके लिए किसी दूसरे इंसान को अपना अंगदान करना होगा. हमारे देश में 9.1 फीसदी भी अंगदान नहीं हो पा रहा है. अंगों की मांग और सप्लाई के बीच एक बड़ा अंतर है. चलिये, इस रिपोर्ट के जरिये जानते हैं अंगदान का गणित..

donate organs because huge gap between organ demand and supply
अंगदान महादान

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Published : Oct 26, 2020, 5:00 PM IST

Updated : Oct 26, 2020, 7:43 PM IST

नई दिल्लीःमानव शरीर एक बेहतरीन मशीन है. इसमें जानदार अंग लगे हैं, जिनकी मदद से इंसान एक स्वस्थ जीवन जीता है, लेकिन इंसान और मशीन में एक बुनियादी फर्क है. मशीन के कलपुर्जे फैक्ट्री में बन सकते हैं, लेकिन अंग किसी लैब या किसी फैक्ट्री में नहीं बनते हैं. मशीन की तरह इंसानों को भी नई जिंदगी दी जा सकती है. इसके लिए अंगदान बेहद जरूरी है. हालांकि कोरोना के कारण दिल्ली समेत देशभर में अंगदान के अभियान को झटका लगा है और पहले से कम अंगदान हो रहे हैं.

अंगदान की कमी से जूझता देश

कोविड-19 के संक्रमण ने हालत और बुरी कर दी है. साथ ही कोरोना के कारण ज्यादातर अस्पतालों में ऑर्गन ट्रांसप्लांट रुक गए हैं. जीटीबी हॉस्पिटल के फॉरेन्सिक डिपार्टमेंट के हेड डॉ. एनके अग्रवालबताते हैं कि कोरोना की वजह से पिछले 5 महीने से ऑर्गन डोनेशन के लिए लोग सामने नहीं आ रहे हैं. इसका एक बड़ा कारण लॉकडाउन के चलते लोगों के मूवमेंट का रिस्ट्रिक्टेड होना है. इस वजह से जिन लोगों का ऑर्गन ट्रांसप्लांट होना था, उनकी तारीखें आगे बढ़ा दी गई है. ऑर्गन डोनेशन को लेकर जागरूकता फैलाने की आवश्यकता है ताकि लोग बड़ी संख्या में स्वैच्छिक रूप से ऑर्गन डोनेशन के लिए सामने आ सके.

ट्रांसप्लांट करने से किया मना
हरियाणा के रोहतक में रहने वाले सनोज(32) की दोनों किडनी खराब हैं. उनका आरएमएल हॉस्पिटल में इलाज चल रहा था. ऑपरेशन की तारीख मिलती इससे पहले ही कोरोना की वजह से आरएमएल हॉस्पिटल को कोविड डेडिकेटेड हॉस्पिटल घोषित कर दिया गया. सनोज को किसी और अस्पताल में किडनी ट्रांसप्लांट कराने को कह दिया गया. सनोज के पास उतने पैसा नहीं है कि किसी प्राइवेट हॉस्पिटल में जाकर किडनी ट्रांसप्लांट करवा सके. फिलहाल डायलिसिस पर है और स्थिति नॉर्मल होने का इंतजार कर रहे हैं.

अंगों की मांग और सप्लाई के बीच बड़ा गैप

एम्स के ओर्बो डिपार्टमेंट के मेडिकल सोशल वर्क ऑफिसर राजीव मैखुरी बताते हैं कि हर साल लाखों लोग अंगदान का इंतजार करते-करते असमय ही काल के गाल में समा जाते हैं. वेटिंग लिस्ट काफी लंबी है.

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राजीव बताते हैं कि भारत सरकार के तहत नेशनल ऑर्गन एंड टिशू ट्रांसप्लांट ऑर्गेनाइजेशन के वेबसाइट पर नजर डालने से पता चल जाता है कि अंगदान करने वाले और अंग दान प्राप्त करने वाले के बीच एक लंबा गैप है. हर साल 10- 15 हजार हार्ट ट्रांसप्लांट की जरूरत होती है, लेकिन 250 लोगों का ही हर साल ट्रांसप्लांट हो पाता हैं.

भारत में अंगदान

केवल 0.1 फीसदी अंगों की मांग ही हो पाती है पूरी

हालांकि पहले की तुलना में यह गिनती थोड़ी बढ़ी है. ऐसा डोनेशन बढ़ने से हुआ है. लोगों में जागरूकता आ रही है और लोग अंगदान के लिए आगे बढ़ रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद अंगों की मांग और सप्लाई में काफी बड़ा अंतर है. हमें हर साल 50 से 60 हजार लीवर, 10 से 20 हजार हार्ट की जरूरत होती है. इनमें से 0.1% ऑर्गन जरूरतमंद लोगों को मिल पाता है. सबसे ज्यादा कॉर्निया का डोनेशन होता है, जिसे हम टिशूज कहते हैं. 25000 के आसपास टिशूज डोनेशन होता है, लेकिन यह भी पर्याप्त नहीं है. 35 से 40000 टिशूज की जरूरत होती है.

'जागरूकता के लिए आगे आएं लोग'

राजीव उन लोगों से अपील कर रहे हैं, जिन्होंने किसी के डोनेशन से एक नई जिंदगी पाई है. अगर वह आगे बढ़ कर लोगों को डोनेशन के लिए अपील करेंगे, तो लोग जागरूक होंगे और स्वेच्छा से अंगदान के लिए सामने आएंगे.



'दूसरे देशों के मुकाबले कम होते हैं अंगदान'

मोहन फाउंडेशन की कार्यकारी निदेशक पल्लवी कुमार बताती हैं कि भारत में अंगदान के आंकड़े दुनिया के दूसरे देशों के मुकाबले बहुत कम है. अंगों की मांग और आपूर्ति के बीच एक बहुत बड़ा फासला है. अगर किडनी को ही ले लें, तो हर साल भारत में लगभग दो लाख लोगों को किडनी की जरूरत होती है, लेकिन पूरे भारत में सिर्फ 7 से 8 हजार ही किडनी ट्रांसप्लांट हो पाते हैं.

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पल्लवी ने बताया कि 20 हजार लोग डायलिसिस पर हैं और बाकी के लोग भगवान के भरोसे हैं. 50-60 हजार लोगों को लीवर ट्रांसप्लांट की जरूरत होती है, लेकिन 900 या 1 हजार लोग ही लीवर ट्रांसप्लांट करा पाते हैं. हर साल लोग अंगदान नहीं होने की वजह से अंगों के इंतजार में दम तोड़ रहे हैं.

अंगदान की कमी से जूझता देश

'महीने में 30 से 40 ऑर्गन ट्रांसप्लांट होते थे'
आपको बता दें कि कोरोना से पहले सामान्य दिनों में दिल्ली के निजी और सरकारी अस्पतालों में लगभग 30 से 40 ऑर्गन ट्रांसप्लांटहर महीने में होते थे. लेकिन कोरोना के कारण इनकी संख्या महज तीन से चार रह गई है. यह ट्रांसप्लांट भी दिल्ली के बड़े निजी अस्पतालों में हो रहे हैं.

जानें क्या कहते हैं 22 अंगों का डोनेशन करने वाले

दिल्ली के पंजाबी बाग इलाके में रहने वाले अजय भाटिया के परिवार से 22 अंग दान किए गए हैं और 22 लोगों को नई जिंदगी मिली है. सबसे पहले इन्होंने अपने माता और पिता के नेत्रों को दान किया. अजय भाटिया अपने पिताजी की बातों को याद कर कहते हैं कि उनके पिताजी अक्सर कहा करते थे कि "अपने लिए जिए तो क्या जिए, जिओ तो जमाने के लिए". उनके पिताजी ने अपने जीवन काल में ही प्रण किया था कि वह अपना नेत्रदान और देहदान करेंगे.

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उनकी इच्छा का सम्मान करते हुए उनकी मृत्यु के बाद उनके नेत्र दान किया गया, लेकिन किसी कारणवश उनका देहदान नहीं किया जा सका, लेकिन पिताजी के पहले ही माता का देहांत हो गया, तो उन्होंने माताजी की इच्छा के मुताबिक उनकी नेत्रों को दान किया.

भारत में अंगदान

पूरा परिवार अंगदान-देहदान का ले चुके हैं प्रण

अजय भाटिया के परिवार में आज सभी लोग अपना अंगदान और देहदान का प्रण ले चुके हैं. भाटिया दूसरों के लिए प्रेरणा बन सकते हैं. दूसरे लोग उनसे सीख ले सकते हैं. किस तरह मृत्यु के बाद भी अपना अंगदान कर दूसरे के शरीर में जीवित रह सकता है. अजय लोगों से अंगदान के लिए सामने आने की अपील कर रहे हैं.

कैसे कर सकते हैं डोनेट

आप ऑनलाइन ओर्बो की वेबसाइटwww.orbo.org या एम्स की वेबसाईटwww.aiims.eduमें भी विजिट कर कोई भी ओर्बो का फार्म भर सकते हैं. जब आप इस फॉर्म को ऑनलाइन भरते हैं तो आपको एक ई-रजिस्ट्रेशन कार्ड मिल जाता है. इसके बारे में आप अपनी फैमिली मेंबर से डिस्कस करते हैं और उनसे कहते हैं कि आपने अंगदान का निर्णय लिया है. उनका क्या विचार है. उनकी मृत्यु के बाद जिस संस्थान से रजिस्ट्रेशन हुआ है, उस संस्थान के अधिकारी से संपर्क कर ऑर्गन रिसीव करने को कहा जाए.

Last Updated : Oct 26, 2020, 7:43 PM IST

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