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बच्चों में बढ़ रहे हैं मायोपिया के मामले, ऑल इंडिया ऑपथैल्मोलॉजी सोसायटी ने जारी की गाइडलाइंस - ऑल इंडिया ऑपथैल्मोलॉजी सोसायटी

वयस्कों की अपेक्षा बच्चों में लगातार मायोपिया के मामले बढ़ रहे हैं. ऐसे में आंखों की सेहत पर ध्यान देना जरूरी है. इसे लेकर ऑल इंडिया ऑपथैल्मोलॉजी सोसायटी ने बच्चों की मायोपिया से बचाव और प्रबंधन के लिए सर्वसम्मत गाइडलाइंस जारी की.

myopia affected children
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Published : May 21, 2022, 1:22 PM IST

नई दिल्ली: बच्चों की आबादी के बीच दृष्टिदोष (खासकर मायोपिया) को लेकर जागरूकता बढ़ाने के प्रयास के तहत ऑल इंडिया आपथैल्मोलॉजी सोसायटी ने सन फार्मा के साथ मिलकर बच्चों की मायोपिया से बचाव और प्रबंधन के लिए सर्वसम्मत गाइडलाइंस जारी की. यह कार्यक्रम एआईओएस (2022-23) के माननीय अध्यक्ष डॉ. वरुण कुमार नायक, डॉ. ललित वर्मा, डॉ. हरबंस लाल, डॉ. (प्रो.) नम्रता शर्मा और डॉ. (प्रो.) राजेश सिन्हा की मौजूदगी में शुरू किया गया. इसमें बच्चों के मायोपिया के मामलों की शुरुआती और समयबद्ध जांच तथा इलाज के महत्व पर जोर दिया गया, साथ ही अध्यक्षों ने इस पर खुली चर्चा की.

पश्चिमी देशों के पीडियाट्रिक आप्थाल्मालॉजिस्ट द्वारा कई सारी गाइडलाइंस जारी की जा चुकी है, लेकिन भारतीय नेत्र विशेषज्ञों के लिए ऐसी कोई व्यावहारिक व्यवस्था नहीं है और न ही हमारे देश के लिए कोई प्राथमिकता आधारित क्लिनिकल प्रैक्टिस निर्धारित है. इस दस्तावेज से यह कमी दूर होने की उम्मीद है और भारतीय परिस्थितियों के अनुसार सर्वश्रेष्ठ गाइडलाइंस जारी की गई है. मायोपिया यानी निकट दृष्टिदोष दुनिया के बच्चों की एक बड़ी स्वास्थ्य समस्या बनी हुई है. हाल ही में भारतीय नियामक संस्था सीडीएससीओ ने भी प्रोग्रेसिव मायोपिया के इलाज के लिए भारत में फार्माकोलॉजिकल ड्रग अट्रोपिन 0.01 फीसदी को मंजूरी दे दी है, इसलिए शुरुआती चरण में जांच कराने से सही समय पर इलाज कराने और बच्चों को उज्ज्वल भविष्य संवारने में मदद मिलती है.

बच्चों पर मंडराया मायोपिया का ख़तरा

डॉ. नम्रता बताती हैं, "मायोपिया सबसे ज्यादा फैलने वाला और बहुत सामान्य दृष्टिदोष है. अनुमान है कि इससे विश्व की 20 फीसदी आबादी प्रभावित है जिनमें लगभग 45 फीसदी वयस्क और 25 फीसदी बच्चे शामिल हैं. निकट दृष्टिदोष पर ध्यान न देना या इलाज न कराना ही दृष्टि गंवाने का सबसे मुख्य कारण बनता है, जिस वजह से मोतियाबिंद, मैक्युलर डिजनरेशन, रेटिनल डिटैचमेंट या ग्लूकोमा जैसी बीमारियां हो जाती हैं. कोविड काल में और डिजिटल प्लेटफॉर्म अपनाने के मामले तेजी से बढ़ने के कारण छोटे शिशु और स्कूली बच्चे विभिन्न प्रकार के दृष्टिदोष के शिकार हुए हैं, जिनमें सबसे ज्यादा मामले निकट दृष्टिदोष के ही हैं. ऐसे मामलों में तत्काल चश्मा, कॉन्टैक्ट लेंस या जरूरत पड़ने पर सर्जरी जैसे उपाय अपनाने की जरूरत है ताकि उनके बड़े होने पर आंखों संबंधी अन्य कोई परेशानी न आए."

वहीं डॉ. रोहित सक्सेना का कहना है कि "एआईओएस विश्व में नेत्र चिकित्सा की सबसे बड़ी संस्था है और भारत में आंखों की सेहत बनाए रखने के लिए समर्पित है, क्योंकि मायोपिया या निकट दृष्टिदोष दुनियाभर के बच्चों में एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या है. पिछले कुछ दशकों से मायोपिया के मामले न सिर्फ दुनिया बल्कि भारत में भी बढ़ रहे हैं. इसके अलावा कोविड महामारी के कारण फिजिकल शिक्षण या बाहरी गतिविधियों की जगह वर्चुअल प्लेटफॉर्म ने ले ली. इस वजह से बच्चों के स्क्रीन पर समय बिताने की अवधि बढ़ गई और उनमें मायोपिया के मामले भी तेजी से बढ़े. इससे बच्चों के सीखने और प्रगति करने की रफ्तार पर असर पड़ा है और यदि समय रहते इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो भविष्य में आंखों संबंधी दिक्कतें बढ़ सकती हैं."

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