एम्स ट्रामा सेंटर अध्यक्ष डॉ कामरान फारूकी नई दिल्ली: एंटीबायोटिक दवाओं के असर और देशभर के अस्पतालों में होने वाले इंफेक्शन को लेकर एम्स ट्रामा सेंटर में एक अध्ययन किया गया. आंकड़ों के अनुसार 2015 से लेकर 2023 तक आईसीयू इंफेक्शन में बहुत हद तक कमी आई है. साथ ही बैक्टीरिया अपने विचित्र मैकेनिज्म के कारण अबूझ पहेली बन गए हैं, जिसके कारण पुराने एंटीबायोटिक्स असरहीन हो रहे हैं.
एम्स ट्रामा सेंटर के अध्यक्ष डॉ. कामरान फारूकी के मुताबिक, संक्रमण को लेकर गंभीर अध्ययन आवश्यक है, ताकि उपलब्ध एंटीबायोटिक्स की प्रभावशीलता को कायम रखा जा सके. एक अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2019 में दुनिया भर में 12 लाख से अधिक लोगों की मृत्यु ऐसे बैक्टीरिया के संक्रमण की वजह से हुई, जिन पर दवाओं का असर नहीं हुआ. यह आंकड़ा मलेरिया या एड्स से हर साल मारे जाने वाले लोगों की संख्या से अधिक है.
डॉ. कामरान फारूकी ने बताया कि मेडिकल शब्दावली में दवाओं के बेअसर होने की इस स्थिति को एंटी-माइक्रोबियल रेजिस्टेंस (एएमआर) कहा जाता है. ये तब होता है जब बैक्टीरिया, वायरस, फंगस और परजीवी समय के साथ बदलते हैं और उन पर दवाओं का असर नहीं होता. इससे किसी संक्रमण का इलाज कठिन हो जाता है. जिससे पीड़ित मरीज की मृत्यु का खतरा बढ़ जाता है.
25 लाख मरीजों के आंकड़ों का अध्ययन:फारूकी ने बताया कि 25 लाख मरीजों के आंकड़ें हैं, जो आईसीयू मरीजों के हैं. इस विशाल डेटाबेस की ध्यानपूर्वक स्टडी की गई. इसमें दो-तीन प्रकार के इंफेक्शन है. एक वेंटिलेटर से संबंधित आंकड़े, दूसरा यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन के आंकड़े हैं. वेंटिलेटर से जुड़े इंफेक्शन 5-10 प्रतिशत है. सबसे ज्यादा सेंट्रल लाइनइंफेक्शन देखे गए, जो 10-15 प्रतिशत है. ये सभी आंकड़े आईसीयू के मरीजों से प्राप्त किए गए हैं.
डॉ. कामरान ने नए एंटीबायोटिक्स के आविष्कार में हो रही देरी को लेकर बताया कि हम लोग जीवनदायनी दवा एंटीबायोटिक को लेकर इसलिए चिंतित हैं, क्योंकि फर्स्ट लाइन के लगभग सभी एंटीबायोटिक्स रेजिस्टेंट बेकार हो चुके हैं. विगत 15-20 वर्षों से कोई नया एंटीबयोटिक नहीं बनाया जा सका है. बैक्टीरिया नए-नए जीन्स बनाते रहते हैं, जिसके कारण एंटीबायोटिक उनके ऊपर असरहीन है. बैक्टीरिया का मैकेनिज्म एक अबूझ पहेली बन गई है.
भविष्य के लिए एंटीबायोटिक्स को बचाना बड़ी चुनौती:एम्स ट्रामा सेंटर के चीफ ने कहा कि बैक्टीरिया का प्रतिरोधी बन जाना एक ऐसी वैश्विक स्वास्थ्य इमर्जेंसी बन चुकी है जिसे दुनिया की कोई भी सरकार अनदेखा नहीं कर सकती. हमें एंटीबायोटिक के उपयोग पर निगरानी करनी होगी ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे भविष्य के लिए प्रभावी रहें. रिपोर्ट में कहा गया है कि इससे बचाव के लिए जरूरी है कि नई दवाओं के लिए तत्काल निवेश किया जाए.
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