नई दिल्ली:देशभर में हर साल पांच लाख लोग इसीलिए मर जाते हैं क्योंकि उनको प्रत्यारोपण के लिए समय पर अंग नहीं मिल पाते. वहीं अब कोविड-19 के संक्रमण ने हालत और बुरी कर दी है. साथ ही कोरोना के कारण ज्यादातर अस्पतालों में ऑर्गन ट्रांसप्लांट रुक गए हैं. देश के सबसे बड़े अस्पताल एम्स की ऑर्गन रिट्रीवल बैंकिंग ऑर्गनाइजेशन(ओर्बो) ने एक बार फिर साइकिल यात्रा के सहारे जिंदगी को रीसाइकल करने की मुहिम शुरू कर दी है.
देश के सबसे बड़े अस्पताल अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) में अंगदान का एक अलग ही विभाग है, जिसे ऑर्गन रिट्रीवल बैंकिंग ऑर्गनाइजेशन (ओर्बो) कहते हैं. ओर्बो के मुताबिक, हमारे देश में ट्रांसप्लांट के लिए अंगों की मांग और इसकी उपलब्धता के बीच काफी बड़ा गैप है. लाखों लोग इंतजार कर रहे हैं कि कोई उन्हें अंगदान करें तो उनकी जान बच सके, लेकिन अंगदान करने वाले 0.1 प्रतिशत लोग भी नहीं मौजूद हैं.
हमारे देश में हर साल डेढ़ से दो लाख मरीजों को किडनी ट्रांसप्लांट के लिए किडनी की आवश्यकता होती है, लेकिन इनमें मुश्किल से 8 हजार लोगों को ही किडनी मिल पाती है. लगभग 75 हजार से 80 हजार लोगों को लिवर ट्रांसप्लांट की जरूरत होती है, लेकिन सिर्फ 1800 भाग्यशाली लोगों को ही यह मौका मिल पाता हैं. इसी तरह से एक लाख लोगों को हर साल कॉर्निया ट्रांसप्लांट की जरूरत होती है, लेकिन इनमें से सिर्फ 50 हजार लोगों का कॉर्निया ट्रांसप्लांट हो पाता है. हर साल 10 हजार लोगों को हार्ट ट्रांसप्लांट की जरूरत होती है, लेकिन सिर्फ 150 भाग्यशाली लोगों का ही हार्ट ट्रांसप्लांट हो पाता है.
कोरोना ने ऑर्गन डोनेशन को रोका
जीटीबी हॉस्पिटल के फॉरेन्सिक डिपार्टमेंट के हेड डॉ. एनके अग्रवाल बताते हैं कि कोरोना की वजह से पिछले 5 महीने से ऑर्गन डोनेशन के लिए लोग सामने नहीं आ रहे हैं. इसका एक बड़ा कारण लॉकडाउन के चलते लोगों के मूवमेंट का रिस्ट्रिक्टेड होना है. इस वजह से जिन लोगों का ऑर्गन ट्रांसप्लांट होना था, उनकी तारीखें आगे बढ़ा दी गई है. ऑर्गन डोनेशन को लेकर जागरूकता फैलाने की आवश्यकता है ताकि लोग बड़ी संख्या में स्वैच्छिक रूप से ऑर्गन डोनेशन के लिए सामने आ सके.
ट्रांसप्लांट करने से किया मना
हरियाणा के रोहतक में रहने वाले सनोज(32) की दोनों किडनी खराब हैं. उनका आरएमएल हॉस्पिटल में इलाज चल रहा था. ऑपरेशन की तारीख मिलती इससे पहले ही कोरोना की वजह से आरएमएल हॉस्पिटल को कोविड डेडिकेटेड हॉस्पिटल घोषित कर दिया गया. सनोज को किसी और अस्पताल में किडनी ट्रांसप्लांट कराने को कह दिया गया. सनोज के पास उतने पैसा नहीं है कि किसी प्राइवेट हॉस्पिटल में जाकर किडनी ट्रांसप्लांट करवा सके. फिलहाल डायलिसिस पर है और स्थिति नॉर्मल होने का इंतजार कर रहे हैं. इसी तरह घनश्याम का एम्स में बोन मैरो ट्रांसप्लांट होना है, लेकिन कभी सूटेबल डोनर नहीं मिलने से तो अब कोरोना की वजह से अब तक चार बार ट्रांसप्लांट करने की तारीखें बदली जा चुकी है. उनके शरीर में खून नहीं बन पा रहा है. खून के लिए वे डोनर्स पर निर्भर है.
भारत में 0.1 फीसदी ऑर्गन डोनेशन
एम्स के ऑर्गन रिट्रीवल बैंकिंग ऑर्गनाइजेशन (ओर्बो) के मेडिकल सोशल सर्विस ऑफिसर राजीव मैखुरी बताते हैं कि अंगदान जिसमें हार्ट, किडनी, लीवर, कॉर्निया, टिश्यूज, बोन्स और स्कीन जैसी तमाम शारीरिक अंगों को मृत्यु उपरांत डोनेट किया जाता है. वहीं जिन मरीजों के इनमें से कोई भी अंग खराब हो जाते हैं उनको ऑर्गन डोनेशन कर नया जीवन दिया जाता है.
क्यों नहीं हो पाता अंगदान?