नई दिल्ली: कोरोना के बारे में अभी तक ज्ञात जानकारी के अनुसार यह शरीर में मुंह नाक और आंख के माध्यम से जाता है और फेफड़े पर ज्यादा असर करता है. ऐसे में कई लोगों के फेफड़े पर इतना गंभीर असर होता है कि वेंटिलेटर पर डालने के बाद भी उनकी श्वसन प्रक्रिया ठीक नहीं हो पाती. ऐसे मरीजों में ECMO काफी कारगर साबित हो रही है.
नई दिल्ली: कोरोना के गंभीर मरीजों में काफी कारगर साबित हो रहा है ECMO
कोरोना महामारी से ग्रसित मरीजों के फेफड़े कमजोर हो जाते हैं, जिससे उन्हें सांस लेने में परेशानी होती है. ऐसे में उपचार की ECMO प्रक्रिया काफी कारगर साबित हो रही है.
करीब 2 प्रतिशत मरीजों में पड़ रही इक्मो की जरूरत
कोरोना वायरस अभी तक देश भर में 75 लाख से ज्यादा लोगों को अपना शिकार बना चुका है. इनमे से बड़ी संख्या ऐसे लोगों की है, जिनमें इसके मामूली लक्षण ही दिखाई पड़ रहे हैं. लेकिन विशेषज्ञ बताते हैं कि इनमें से करीब 10 प्रतिशत मरीजों को गंभीर परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. ऐसे मरीजों को सांस लेने में काफी परेशानी हो रही है. इसलिए इन्हे वेंटिलेटर पर डाल कर बाहरी तौर पर सांस दिया जाता है. लेकिन करीब दो प्रतिशत मरीज ऐसे भी हैं, जिन्हें वेंटिलेटर पर रखने के बाद भी सांस लेने में परेशानी हो रही है. ऐसे मरीजों में ECMO काफी कारगर साबित हो रहा है.
40 प्रतिशत तक है रिकवरी रेट
डॉ केवल कृष्ण बताते हैं कि कोरोना वायरस फेफड़े में जाने के बाद फेफड़े पर एक तरह की परत बना देता है, जो फेफड़े को इतना सख्त बना देता है कि वो अपना काम नहीं कर पाता है. ऐसे में एकमो काफी कारगर साबित हो रहा है और इससे करीब 40 प्रतिशत मरीज ठीक हो रहे हैं.