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दुनिया को अलविदा कह गई गांधी जी की पौत्रवधू, देखिए स्पेशल रिपोर्ट

गांधी जी की पौत्रवधू और तीसरे बेटे रामदास की पुत्रवधू शिवालक्ष्मी अपने अंतिम दिनों में दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर थी. वहीं 7 मई को 94 वर्ष की उम्र में उनकी मौत हो गई, लेकिन दिल्ली में एक परिवार है जो उनकी मौत को लेकर काभी दुखी है और लॉकडाउन खुलने का इंतजार कर रहा है.

shiva lakshmi gandhi
महात्मा गांधी की पौत्रवधु का निधन

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Published : May 9, 2020, 8:46 PM IST

नई दिल्लीः महात्मा गांधी को कौन नही जानता, महात्मा गांधी किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं. लेकिन गांधी जी की पौत्रवधू और तीसरे बेटे रामदास की पुत्रवधू शिवालक्ष्मी अपने अंतिम दिनों में दर-दर की ठोकरें खाने को क्यों हुई मजबूर है. गुजरात में 7 मई को 94 वर्ष की उम्र में उनकी मौत हो गई. वहीं दिल्ली का एक परिवार उनकी मौत से परेशान है और लॉकडाउन खुलने का इंतजार कर रहा है.

दुनिया को अलविदा कह गई गांधी जी की पौत्रवधू, देखिए स्पेशल रिपोर्ट

ईटीवी भारत की टीम ने शिवालक्ष्मी गांधी की मौत के बाद दिल्ली के समाज सेवी हरपाल राणा से मुलाकात की. इस दौरान ईटीवी भारत ने जाना कि कैसे उनकी और उनके परिवार की मुलाकात महात्मा गांधी के पौत्र कनुभाई गांधी की पत्नी शिवलक्ष्मी गांधी से हुई.

गांधी की पोत्रवधू का 94 साल की उम्र में निधन

महात्मा गांधी और उनके परिवार के बारे में तो ज्यादातर सभी जानते हैं, लेकिन उनके ही परिवार के कुछ लोगों कोई नहीं जानते हैं. हम बात कर रहे हैं महात्मा गांधी के तीसरे बेटे रामदास गांधी के पुत्र कनुभाई गांधी ओर उनकी पत्नी शिवलक्ष्मी गांधी की. जिनका 7 मई को गुजरात में 94 साल की उम्र में देहांत हुआ है.

अमेरिका में वैज्ञानिक थे कनुभाई गांधी

दरसल कनुभाई गांधी अमेरिका में वैज्ञानिक थे, उनकी पत्नी शिवालक्ष्मी लंदन में प्रोफेसर थी और उनका कोई संतान नहीं था. कनुभाई गांधी की मौत के बाद शिवालक्ष्मी भारत आ गई. कुछ समय गुजरात में रही तो कुछ समय अलग-अलग जगहों पर. कोई भी उन्हें सहारा देने वाला नहीं था, जिसकी वजह से वह दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हुई.

एक साल तक दिल्ली के कादीपुर गांव में रही

दिल्ली के कादीपुर गांव में रहने वाले समाज सेवी हरपाल राणा और उनका परिवार बताता है कि उनकी मुलाकात गांधी जी की पौत्रवधू से दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) में हुई. इससे पहले वे दिल्ली के द्वारका में एक परिवार के साथ रह रही थी. उसके बाद उनकी तबीयत खराब हुई तो उन्हें एम्स में भर्ती कराया गया.

2017 से 2018 तक रहीं हड़पाल के परिवार के साथ

हरपाल राणा ने बताया कि करीब 1 महीने तक उनका इलाज एम्स में चला. इस दौरान हरपाल राणा के परिवार अस्पताल में उनकी खूब सेवा की और बाद में उन्हें अपने घर कादीपुर ले आए. शिवालक्ष्मी गांधी जुलाई 2017 से लेकर अप्रैल 2018 तक करीब 1 साल उनके घर पर परिवार के साथ रहीं. सभी ने शिवालक्ष्मी गांधी की खूब सेवा की और अब उनकी मौत के बाद दुख भी प्रकट कर रहे हैं.

उम्र के आखरी पड़ाव में भी बहुत मजबूत थी

गुजरात जाने के बाद भी हरपाल राणा और उनके परिवार की बात शिवालक्ष्मी गांधी से लगातार होती थी. वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए भी वे उनसे बात करते थे. परिवार ने उन्हें याद करते हुए बताया कि शिवालक्ष्मी को इंग्लिश फिल्में देखने का बहुत शौक था. खाने में सबसे ज्यादा गुजराती व्यंजन बहुत पसंद था, लेकिन परिवार में किसी को बनाना नहीं आता था तो उन्होंने ने खुद बनाना सिखाया.

रसोई के कामकाज में बटाती थी हाथ

हरपाल राणा के परिवार ने बताया कि 92 साल की उम्र होने के बावजूद वह रसोई के कामकाज में उनका हाथ बटाती थी. शिवालक्ष्मी दूसरे लोगों पर विश्वास जल्दी नहीं करती थी. हालांकि वह मॉल में शॉपिंग करने के लिए भी जाती थी तो परिवार के लोग उनके साथ जाते थे. भारतीय और वेस्टर्न ड्रेसेस दोनों उन्हें पसंद थे और वह फैशन को लेकर बहुत ज्यादा सजग थी.

लॉकडाउन खुलने का कर रहे है इंतजार

7 मई को हुई मौत की सूचना दिल्ली में रह रहे हरपाल राणा के परिवार को भी मिली. उन्हें दुख है कि वह अंतिम क्षणों में उनके साथ नहीं थे. वह उनकी मौत के वजह से परेशान भी हैं. गुजरात जाने का निश्चय भी किया लेकिन दिल्ली सहित पूरे देश में लॉकडाउन चल रहा है. अब परिवार लॉकडाउन के खुलने का इंतजार कर रहा है. उनका मानना है कि जल्द से जल्द लॉकडाउन खुल जाए ताकि एक बार गुजरात जाकर उन लोगों से मिले जिनके पास शिवालक्ष्मी अंतिम समय में रह रही थी.

दर-दर की ठोकरें खाने को क्यों हुईं मजबूर?

महात्मा गांधी का परिवार काफी बड़ा है. बावजूद भी महात्मा गांधी के तीसरे बेटे रामदास की पुत्रवधू अपने अंतिम समय में दर-दर की ठोकरें खाने को क्यों मजबूर हुई, यह अभी भी एक सवाल बना हुआ है. जबकि गांधी जी भारत ही नहीं विदेश में भी ख्याति प्राप्त हैं, उसके बावजूद भी इतनी बड़ी शख्सियत की पौत्रवधू का अंतिम समय में उनके परिवार के लोगों ने उनका साथ क्यों नहीं दिया सवाल बना हुआ है.

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