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DU : दलित बनाम सवर्ण में फंसी हिन्दी विभाग में अध्यक्ष पद की कुर्सी, जातिवाद की राजनीति शुरू

हिंदी डिपार्टमेंट के प्रोफेसर श्योराज सिंह बेचैन और प्रोफेसर कैलाश नारायण तिवारी दोनों ही अपने आप को वरिष्ठ प्रोफेसर बताकर अध्यक्ष पद के लिए दावा पेश कर रहे हैं, जिसके कारण अभी तक किसी की नियुक्ति नहीं हो पाई है और अध्यक्ष पद खाली पड़ा है.

दिल्ली विश्वविद्यालय

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Published : Oct 10, 2019, 8:18 AM IST

नई दिल्ली :दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर मोहन का कार्यकाल 12 सितंबर को समाप्त हो चुका है. लेकिन अभी तक हिंदी विभाग के नए अध्यक्ष की नियुक्ति नहीं हुई है.

DU के हिंदी डिपार्टमेंट में नहीं हो रही अध्यक्ष की नियुक्ति

नियमों के मुताबिक विभाग में जो सबसे सीनियर होता है, उसकी हर 3 साल बाद नए अध्यक्ष के रूप में नियुक्ति कर दी जाती है. जिसके बाद हिंदी डिपार्टमेंट के दो प्रोफेसरों के बीच वरिष्ठता को लेकर जंग छिड़ गई है.

दो प्रोफेसरों के बीच वरिष्ठता की जंग

हिंदी डिपार्टमेंट के प्रोफेसर श्योराज सिंह बेचैन और प्रोफेसर कैलाश नारायण तिवारी दोनों ही अपने आप को वरिष्ठ प्रोफेसर बताकर अध्यक्ष पद के लिए दावा पेश कर रहे हैं, जिसके कारण अभी तक किसी की नियुक्ति नहीं हो पाई है और अध्यक्ष पद खाली पड़ा है.

प्रोफेसरों ने लगाया जातिवाद का आरोप

हिंदी डिपार्टमेंट के प्रोफेसर लक्ष्मण कुमार यादव ने ईटीवी भारत को बताया कि पहले प्रोफेसर श्योराज सिंह बेचैन अध्यक्ष पद की दावेदारी पेश की थी और वही सबसे ज्यादा सीनियर भी है. बावजूद इसके दिल्ली विश्वविद्यालय प्रशासन उनकी नियुक्ति नहीं कर रहा है, क्योंकि वह एक दलित कम्युनिटी से आते हैं और पिछले 10 सालों की बात की जाए तो एक भी दलित प्रोफेसर की अध्यक्ष पद पर नियुक्त नहीं हुआ है, तो कहीं ना कहीं जातिवाद इसका कारण है.

'जातिवाद फैलाने की हो रही कोशिश'

प्रोफेसर ने इसके पीछे कई गतिविधियों को कारण बताते हुए कहा कि जानबुझ कर प्रोफेसर बेचैन की नियुक्ति रोकना बताया. साथ ही कहा कि हम लोगों देखते हैं कि हमारे समाज में कई बार जातिवाद खुलकर सामने नहीं आता है. किसी ना किसी कारण से उसे सामने लाया जाता है और जो हकदार होता है, उसे उसकी जाति के कारण नियुक्ति नहीं की जाती.

'एकजुट हुए छात्र और प्रोफेसर'

प्रोफेसर कहा कि हम ऐसा नहीं होने देंगे. इसके लिए हम लोग 7 अक्टूबर को आर्ट फैकल्टी के बाहर तमाम छात्रों और प्रोफेसरों के साथ मिलकर प्रदर्शन भी किया था. प्रोफेसर बेचैन की नियुक्ति की मांग की थी. क्योंकि हम लोकतंत्र में हैं और जो हकदार है उसे उसका हक मिलना चाहिए.

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