नई दिल्ली:दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को जेएनयू के पूर्व छात्र शरजील इमाम की याचिका पर दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी किया. इसमें 2019 के जामिया हिंसा मामले में उसके खिलाफ दायर चार्जशीट को रद्द करने की मांग की गई थी. चार्जशीट में राजद्रोह के अपराधों को शामिल किया गया था और समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा दिया गया था.
इमाम ने कोर्ट से यह भी कहा है कि वह बिना किसी और देरी के ट्रायल कोर्ट को एफआईआर 242/2019 में अन्य सभी अपराधों के संबंध में ट्रायल के साथ आगे बढ़ने के निर्देश जारी करे. जस्टिस रजनीश भटनागर ने नोटिस जारी कर दिल्ली पुलिस से मामले में स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने को कहा है. अब मामले की सुनवाई 18 अक्टूबर को होगी.
इमाम की याचिका में कहा गया है कि 15 दिसंबर 2019 को जामिया मिल्लिया इस्लामिया में हुए दंगे के आधार पर न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी पुलिस स्टेशन में प्राथमिकी संख्या 242/2019 दर्ज की गई थी. जिसे बाद में अपराध शाखा को स्थानांतरित कर दिया गया था. इमाम को इस मामले में 17 फरवरी 2021 को एक सह-आरोपी के खुलासे के आधार पर गिरफ्तार किया गया था, जिसमें कहा गया था कि 13 दिसंबर, 2019 को दिए गए इमाम के भाषण ने उसे उकसाया था. हालाँकि, इस बीच, क्राइम ब्रांच द्वारा इमाम के खिलाफ एक अलग प्राथमिकी (22/2020) पहले ही दर्ज कर ली गई थी, क्योंकि उसने सीएए विरोधी प्रदर्शन के दौरान दो भाषण दिए थे. इसमें 13 दिसंबर, 2019 को जामिया में दिया गया भाषण भी शामिल है.
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शरजील ने कोर्ट में दिया है तर्कः एफआईआर 22/2020 में भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए/153ए/153बी/505 का इस्तेमाल किया गया और दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 196 के तहत मंजूरी मिलने के बाद उसके खिलाफ चार्जशीट दायर की गई. निचली अदालत ने इमाम के खिलाफ औपचारिक आरोप तय किए थे और मुक़दमा जारी है. हालांकि, प्राथमिकी 242/2019 की जांच के दौरान जांच अधिकारी (आईओ) ने प्राथमिकी संख्या 22/2020 के जांच अधिकारी से प्रतिलेख और जामिया भाषण के वीडियो की प्रति एकत्र की, अपना बयान दर्ज किया और पहला पूरक आरोप पत्र दायर किया.
राजद्रोह का मामला रद्द होः उसका कहना है कि चार्जशीट में धारा 124A और 153A (समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना) को जोड़ा गया, जो मूल रूप से प्राथमिकी में नहीं थे. यहां यह उल्लेख करना महत्वपूर्ण है कि जामिया भाषण जिसकी जांच पहले से ही उसी जांच एजेंसी द्वारा प्राथमिकी संख्या 22/20 में की गई थी, को भी वर्तमान प्राथमिकी का विषय बनाया गया था और याचिकाकर्ता के खिलाफ धारा 124A और 153A के तहत अतिरिक्त आरोप पत्र दायर किया गया था.
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याचिका में कहा गया है कि धारा 196 सीआरपीसी के तहत धारा 124ए और 153ए के तहत मुकदमा चलाने के लिए सरकार से कोई मंजूरी नहीं ली गई है. इसलिए अदालत ने अभी तक मामले का संज्ञान नहीं लिया है. याचिका में कहा गया है कि इसी कारण से उन अपराधों के लिए भी मुकदमे की सुनवाई लगभग डेढ़ साल तक आगे नहीं बढ़ी है, जिन पर अदालत पहले ही संज्ञान ले चुकी है.यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत निष्पक्ष और त्वरित परीक्षण के लिए याचिकाकर्ता के मौलिक अधिकार की पूर्ण अवहेलना है.