नई दिल्ली: दिल्ली विश्वविद्यालय में आए दिन हो रहे प्रदर्शन को देखते हुए डीयू प्रशासन ने सख्ती बरती है. बता दें कि डीयू प्रॉक्टर नीता सहगल द्वारा एक नोटिस जारी किया गया है. जिसमें कहा गया है कि आर्ट फैकल्टी और उसके आसपास के इलाके में कोई भी धरना, विरोध प्रदर्शन या रैली आयोजित करने के 24 घंटे पहले डीयू प्रशासन को सूचना देनी होगी.
'प्रदर्शन से पहले प्रशासन को देनी होगी जानकारी' साथ ही प्रदर्शन से जुड़ी जरूरी जानकारियां भी मुहैया करानी होगी. वहीं सभी छात्र संगठनों ने इस नोटिस पर आपत्ति जताई है और कहा कि इस तरह का नोटिस जारी करना छात्रों के अधिकारों और उनकी जनतांत्रिक आवाजों को कुचलने की कोशिश करना है.
प्रदर्शन से पहले देनी होगी यह जानकारियां
डीयू प्रॉक्टर द्वारा जारी किए गए नोटिस में स्पष्ट किया गया है कि किसी भी तरह का धरना प्रदर्शन या रैली करने के 24 घंटे पहले डीयू प्रशासन को सूचना देनी होगी. जिसमें यह जानकारियां भी मुहैया करानी होंगी :
संगठन का नाम
• कॉलेज/ इंस्टिट्यूशन/ डिपार्टमेंट
• कांटेक्ट नंबर
• ईमेल आईडी
• कोर्स का नाम (अगर प्रदर्शन छात्र द्वारा आयोजित किया जा रहा है )
• कार्यक्रम की जानकारियां
• कार्यक्रम कैसा होगा- धरना, पब्लिक स्पीच,प्रदर्शन, रैली, जीबीएम आदि
• कार्यक्रम के समय सीमा
• इस्तेमाल किये जाने वाले लोजिस्टिक्स
• वक्ताओं की सूची
• प्रतिभागियों की अनुमानित संख्या
'तानाशाही फरमान'
वहीं सभी छात्र संगठनों और छात्रों ने इस नोटिस की निंदा की है. क्रांतिकारी युवा संगठन (केवाईएस) ने इस नोटिस को डीयू प्रशासन का तानाशाही फरमान बताया और कहा कि यह जनतांत्रिक आवाज को दबाने की कोशिश है. केवाईएस ने दिल्ली विश्वविद्यालय प्रशासन पर आरोप लगाते हुए कहा कि वह खुले तौर पर केंद्र सरकार की कठपुतली बन कर काम कर रहा है.
केवाईएस ने इस फरमान को वापस लेने की मांग की है और कहा है कि यदि ऐसा नहीं होता तो प्रशासन के विरुद्ध जाकर वह छात्रों को संगठित करेंगें. आइसा ने कहा कि प्रदर्शन करना उनका जन्मसिद्ध अधिकार है. ऐसे में प्रदर्शन प्रक्रिया को कागजी कार्यवाही में बांधना उनसे उनकी आजादी छीनना है.
'हिंसक प्रदर्शन बंद होना चाहिए'
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के दिल्ली प्रदेश मीडिया प्रभारी आशुतोष कुमार ने बताया कि विश्वविद्यालय हमेशा से एक ऐसा केंद्र रहे हैं. जहां पर लोकतंत्र संवाद के लिए सबसे ज्यादा जगह रही है. लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि कुछ वर्षों से वामपंथियों ने एक साजिश के तहत जो संवाद की परंपरा विश्वविद्यालय में थी. उसको खत्म करते हुए छात्र आंदोलनों को हिंसक दिशा दे दी है. उन्होंने कहा कि वह विश्वविद्यालयों में एक सार्थक संवाद के पक्ष में हैं और विश्वविद्यालयों से हिंसा बिल्कुल बंद होनी चाहिए.