किसानों को जीरी बजट में प्राकृतिक खेती करने का फार्मूला बताया. नई दिल्ली:आईआईटी दिल्ली में आयोजित दो दिवसीय उन्नति महोत्सव एवं एक्सपो में लोगों ने उन्नत भारत अभियान से जुड़कर किए जा रहे अपने कार्यों को प्रदर्शित किया. साथ ही यह दर्शाया कि उनके काम से ग्रामीण क्षेत्र में किस तरह से लोगों को रोजगार उपलब्ध हो रहा है. लोग दूसरों को रोजगार भी दे रहे हैं. उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जिले में स्थित छत्रपति शाहूजी महाराज महाविद्यालय में उन्नत भारत अभियान की प्रोग्राम कॉर्डिनेटर सुधा सिंह ने लोगों को घर में उपलब्ध चीजों से जीरो बजट में प्राकृतिक खेती करने का फॉर्मूला बताया.
इसमें सुधा सिंह ने लोगों को बताया कि घर में उपलब्ध गोबर, गोमूत्र, गुड़, दलहन का आटा और मिट्टी के इस्तेमाल से खाद बनाकर जीरो बजट में प्राकृतिक खेती कर सकते हैं. उन्होंने बताया कि शुरू के तीन साल तक प्राकृतिक खेती में थोड़ी कम पैदावार होती है. इसके बाद पैदावार बढ़नी शुरू होती है. पांच साल में प्राकृतिक खेती से उतनी ही पैदावार शुरू हो जाती है जितनी रासायनिक खाद के इस्तेमाल से होती है. इस तकनीक को जीरो बजट इसलिए कहते हैं कि ये सारी चीजें किसानों के घर में उपलब्ध होती हैं. कहीं बाहर से कुछ खरीदकर लाने की जरूरत नहीं होती.
उन्होंने बताया कि उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जिले के सभी पांच ब्लॉक में प्राकृतिक खेती से किसानों को जोड़ा जा रहा है. अभी चैट ब्लॉक से पांच-पांच किसान और एक ब्लॉक से 30 किसानों को लिया गया है. इस तरह 50 किसानों की 50 एकड़ जमीन पर 2020 से खेती शुरू की गई है. इन किसानों को प्राकृतिक खेती के लिए तैयार करने में चार साल का समय लगा, लेकिन अब इनको तकनीक और पैदावार की थोड़ी समझ होने लगी है. आने वाले दो साल में इन्हें बहुत अच्छी पैदावार मिलेगी, जिससे इनकी आमदनी भी अच्छी होगी क्योंकि प्राकृतिक तरीके से पैदा किए गए अनाज और सब्जियों की मांग भी बाजार में बढ़ रही है. लोग प्राकृतिक तरीके से उगाई गई सब्जी और अनाज को डेढ़ से दोगुनी कीमत में भी खरीद रहे हैं.
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उन्होंने बताया कि एक एकड़ खेत के लिए 100 किलो गोबर, पांच लीटर गौमूत्र, एक किलो गुड़, एक किलो दलहन का आटा और 100 ग्राम मिट्टी को मिलाकर घनजीवामृत नाम से खाद तैयार करके इसे बीज में मिलाकर बुवाई करते हैं. इसको छह महीने तक इस्तेमाल कर सकते हैं. इसके बाद जब फसल बड़ी हो जाती है तो उसके लिए जीवामृत का घोल तैयार कर उसे यूरिया की तरह इस्तेमाल करते हैं. जीवामृत के लिए 10 किलो गोबर, 10 लीटर गौमूत्र, एक किलो गुड़, एक किलो दलहन का आटा, 100 ग्राम मिट्टी और 200 लीटर पानी से तैयार करते हैं. यह एक एकड़ में बोई गई फसल के लिए पर्याप्त होता है. इसे मिलाकर 72 घंटे बाद छानकर सात दिन के अंदर इस्तेमाल करना चाहिए.