नई दिल्ली:नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ स्वरुपों की पूजा होती है. इस साल नवरात्रि 26 सितंबर 2022 से शुरू होगी और 4 अक्टूबर 2022 को खत्म होगी. मां दुर्गा के नौ रूप अति प्रभावशाली और सर्व मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाली है. कहते हैं, नवरात्रि में जो मां के इन नौ रूपों का वर्णन और कथा श्रद्धा भाव से सुनता या सुनाता है, तो मां उस पर प्रसन्न होती हैं और विशेष कृपा रखती है. चलिए सुनते हैं, मां के कल्याणकारी नौ रूपों में से पहले रूप का वर्णन एवं कथा.
नवरात्रि का पहला दिन:नवरात्री के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है. पुराणों के अनुसार माता शैलपुत्री का जन्म पर्वत राज हिमालय की पुत्री के रूप में हुआ था. इसीलिए उनका नाम शैलपुत्री है. शैलपुत्री को शैलसुता के नाम से भी जाना जाता है. मां दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प धारण करती हैं. मां त्रिशूल से पापियों का नाश करती हैं, जबकि पुष्प ज्ञान और शांति का प्रतीक माना जाता है.
मां शैलपुत्री को सम्पूर्ण हिमालय पर्वत समर्पित है. मां शैलपुत्री का नवरात्री के पहले दिन विधिपूर्वक पूजन करने से शुभ फल प्राप्त किया जा सकता है. माना जाता है कि जिसकी कुंडली में मंगल की स्थिति खराब हो, उन्हें मां शैलपुत्री की पूजा करनी चाहिए. माता को सफेद वस्तुएं बहुत पसंद है. इसलिए पूजा में सफेद फल, फूल और मिष्ठान चढ़ाना फलदायी होता है. कुंवारी कन्याओं का इस व्रत को करने से अच्छे वर की प्राप्ति होती है. मां शैलपुत्री का पूजा व्रत करने से जीवन में स्थिरता आती है.
मां शैलपुत्री की पूजा विधि:नवरात्रि के पहले दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नानादि से निवृत होकर साफ कपड़े पहनें. इसके बाद चौकी को गंगाजल से साफ करके मां दुर्गा की प्रतिमा या फोटो को स्थापित करें. मां के सामने धूप, दीप जलाएं और मां की देसी घी के दीपक से आरती उतारें. शैलपुत्री माता की कथा, दुर्गा चालिसा, दुर्गा स्तुति या दुर्गा सप्तशती का पाठ करें.
मां शैलपुत्री की पूजा मंत्र:माता शैलपुत्री की पूजा षोड्शोपचार विधि से की जाती है. इनकी पूजा में सभी नदियों, तीर्थों और दिशाओं का आह्वान किया जाता है. मां शैलपुत्री का मंत्र इस प्रकार है.
वन्दे वांछितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।
पूर्णन्दु निभां गौरी मूलाधार स्थितां प्रथम दुर्गा त्रिनेत्राम्।