नई दिल्ली:आज विश्व एड्स दिवस (World AIDS Day) है. यह लाइलाज बीमारी है, लेकिन इस बीमारी का पता चलते ही इलाज शुरू कर दिया जाए तो कुछ सावधानियों के साथ एक सामान्य इंसान की तरह अपनी जिंदगी जी सकते हैं. एड्स (एक्वायर्ड इम्यूनो डिफिशिएंसी सिंड्रोम) एचआईवी वायरस से संक्रमित व्यक्ति के रक्त के संपर्क में आने से होने वाली बीमारी है. इस बीमारी से संक्रमित व्यक्ति से दूर भागने की नहीं, बल्कि उनके प्रति संवेदनशीलता अपनाने की जरूरत है.
ब्रिटिश मेडिकल काउंसिल के पूर्व वैज्ञानिक और स्वीडन की उपासला यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉ राम एस उपाध्याय कहते हैं, "लोग एड्स पीड़ित को छूने या सेवा करने से डरते हैं, जबकि इसका संक्रमण साथ बैठने, खाना खाने, हाथ मिलाने या साथ रहने से नहीं फैलता है.
डॉ उपाध्याय कहते हैं कि इस बीमारी को आचरण से जोड़कर देखते हैं. इसीलिए संक्रमित शख्स के प्रति सहानुभूति उतनी नहीं होती थी. एचआईवी पॉजिटिव होने के अधिकांश मामले असुरक्षित यौन संबंध के चलते ही सामने आया है. इसलिए पहले समाज में ऐसे लोगों को अच्छी नजर से नहीं देखा जाता था, लेकिन समय के साथ अब समाज बदल गया है."
उन्होंने बताया कि बीमारियों से लड़ने और स्वस्थ रहने के लिए शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता होना जरूरी है और एचआईवी वायरस रोग प्रतिरोधक क्षमता को ही प्रभावित करता है. संक्रमित शख्स एक निश्चित अंतराल पर टेस्ट करते रहें और देशभर में बने सेंटर पर इसके इलाज में एंटी रेट्रोवाइटल थेरेपी और जो दवाईयां दी जाती है, उसके सेवन से लंबी आयु तक जिंदगी जी सकते हैं. शर्त यही की संक्रमित शख्स अनुशासन का पालन करें और अपनी इम्युनिटी कमजोर न होने दें.
डॉ. राम एस उपाध्याय का कहना है कि इम्युनिटी कमजोर होने के कारण विभिन्न बीमारियों के संक्रमणों का खतरा बढ़ने के साथ ही शरीर के अन्य अंग धीरे-धीरे प्रभावित होने लगते हैं. यह वायरस संक्रमित मां से जन्म लेने वाले शिशु में भी फैल जाता है. लोगों को इस महामारी से बचाने और जागरूक करने के लिए 1 दिसंबर को वर्ल्ड एड्स दिवस मनाया जाता है. एड्स स्वयं में कोई बीमारी नहीं है, लेकिन इससे पीड़ित व्यक्ति बीमारियों से लड़ने की प्राकृतिक ताकत खो बैठता है.
आरएसएसडीआई में राष्ट्रीय कार्यकारी परिषद के सदस्य डॉ. अमित गुप्ता कहते हैं कि एचआईवी वाले लोगों के लिए निर्धारित चिकित्सा में आमतौर पर एंटीवायरल दवाएं शामिल होती हैं। इनमें से कुछ दवाएं रक्त शर्करा के स्तर को बदलने के दुष्प्रभाव के साथ आती हैं, विशेष रूप से रक्त शर्करा की एकाग्रता में वृद्धि करके। इसलिए, यह अनुशंसा की जाती है कि एचआईवी वाले लोगों को उपचार शुरू करने से पहले और उपचार के दौरान अपने ग्लूकोज के स्तर की जांच करवानी चाहिए। यह मधुमेह की शुरुआत का ट्रैक रखने में मदद करता है।