नई दिल्ली:2015 के विधानसभा चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी ने अपने 70 प्वाइंट एक्शन प्लान में 15वें नम्बर पर यमुना के कायाकल्प का जिक्र किया था. उस एक्शन प्लान में यमुना को सीवेज के गंदे पानी से मुक्ति दिलाने की बात कही गई थी.
आखिर कब स्वच्छ होगी यमुना ? लेकिन पांच साल के दौरान इस दिशा में क्या काम हुए इसे इस बात से समझा जा सकता है कि 2020 के चुनाव में भी आम आदमी पार्टी ने यमुना में दिल्ली वालों को डुबकी लगवाने के लिए 5 साल का समय मांगा.
मेनिफेस्टो तक ही रहा वादा
इन 5 सालों में इतना जरूर बदला कि यमुना की दुर्दशा दूर करने का आम आदमी पार्टी का वादा मेनिफेस्टो में 15वें से 8 वें नम्बर पर पहुंच गया. इस वादे में यमुना के किनारों का सौंदर्यीकरण भी शामिल कर दिया गया.
दिल्ली की दो अन्य पार्टियों भाजपा और कांग्रेस के घोषणापत्र में भी यमुना की सफाई का वादा था. भाजपा ने भी यमुना के घाटों के सौंदर्यीकरण की बात कही थी. लेकिन जनता ने मौका दिया, आम आदमी पार्टी को.
मंत्री ने दिया था ट्रीटमेंट पर जोर
इनके वादे के मद्देनजर जमीनी हकीकत देखें, तो अगले दो महीने में, केजरीवाल सरकार के तीसरे कार्यकाल का एक साल पूरे होने वाला है, लेकिन इस दिशा में अब तक कोई ठोस कदम उठाए जाते नहीं दिखे.
नई सरकार में पर्यावरण मंत्री का जिम्मा पाते ही गोपाल राय ने वाटर ट्रीटमेंट प्लांट का दौरा कर गंदे पानी के शोधन पर बल देने की बात कही थी. 23 फरवरी 2020 को गोपाल राय में दिल्ली गेट ट्रीटमेंट प्लांट का दौरा किया था.
कोरोना काल में बदले थे हालात
इस दौरे में पर्यावरण मंत्री ने अधिकारियों को निर्देश देते हुए कहा था कि दिल्ली सरकार का पहला लक्ष्य है कि सभी गंदे नालों के पानी को शोधित कर यमुना में डाला जाए. लेकिन उसके ठीक बाद कोरोना का कहर शुरू हो गया.
ये अलग बात है कि लॉक डाउन के दौरान यमुना साफ नज़र आने लगी थी. लेकिन पटरी पर लौटे आम जन-जीवन ने यमुना को फिर से उसी गंदे नाले वाले पहचान में तब्दील कर दिया है.
सीपीसीबी का जल बोर्ड को निर्देश
अब जबकि कोरोना का कहर कम हो रहा है, फिर से सबकी निगाहें यमुना पर टिकने लगीं हैं. बीते 4 दिसम्बर को ही केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने गंदे पानी के शोधन को लेकर दिल्ली जल बोर्ड को जरूरी निर्देश दिए थे.
पिछले अक्टूबर के आंकड़ों का हवाला देते हुए सीपीसीबी ने जल बोर्ड को कहा था कि पल्ला गांव के अलावा पूरी दिल्ली में कहीं भी यमुना का पानी नहाने लायक भी नहीं है.
यमुना के पानी में नहीं है ऑक्सीजन
आपको बता दें कि यमुना में 22 प्रमुख गंदे नालों के पानी गिरते हैं. इसका असर यह है कि कुछ घाटों पर यमुना के पानी में ऑक्सीजन की मात्रा 3 मिलीग्राम से भी कम पाई गई है.
ये आंकड़े इसलिए भयावह कहे जा सकते हैं, क्योंकि पानी में ऑक्सीजन की मात्रा 5 मिलीग्राम से कम होने पर उसे जलीय जीव जंतुओं के लिए खतरनाक माना जाता है, मानव स्पर्श के लिए तो यह खतरनाक होता ही है.
स्वच्छता के लिए मार्च 2023 का लक्ष्य
हैरानी की बात तो यह है कि दिल्ली में यमुना के प्रमुख घाटों जैसे कुदेशिया घाट, आईटीओ और निजामुद्दीन घाट पर यमुना के पानी में ऑक्सीजन की मात्रा शून्य पाई गई है. कई सरकारों की कई योजनाओं के खत्म होने और करोड़ों रुपए खर्च होने के बावजूद यमुना की बदहाली दूर नहीं हो रही.
अब दिल्ली सरकार ने यमुना को 90 फीसदी स्वच्छ करने के लिए मार्च 2023 का लक्ष्य रखा है.
जल बोर्ड को मिली जिम्मेदारी
इसकी जिम्मेदारी अब दिल्ली जल बोर्ड को दी गई है. जल बोर्ड ने इससे जुड़ा प्रेजेंटेशन भी सीएम केजरीवाल और जल मंत्री सत्येंद्र जैन को दे दिया है. दिल्ली जल बोर्ड के उपाध्यक्ष राघव चड्ढा खुद इस प्रोजेक्ट को लीड कर रहे हैं.
इसके तहत सबसे पहले दिल्ली के सभी नालों और यमुना में गिरने वाले सीवर को 'इंटरसेप्ट' किया जाना है. इस मुद्दे पर ईटीवी भारत दे बातचीत में राघव चड्ढा ने कहा कि इंटरसेप्टर प्रोजेक्ट के जरिए हम यमुना को साफ करेंगे.
अब इंटरसेप्टर प्रोजेक्ट का सहारा
राघव चड्ढा ने बताया कि इंटरसेप्टर सीवर प्रोजेक्ट के जरिए यमुना को साफ किया जाएगा. इसके तहत यमुना में जाने वाले सभी सीवर को अंडरग्राउंड तरीके से ट्रीटमेंट प्लांट तक लाया जाएगा और वहां से साफ पानी को ही नाले के जरिए यमुना में गिराया जाएगा.
राघव चड्ढा ने इसे माइलस्टोन प्रोजेक्ट करार दिया. अब देखने वाली बात होगी कि ये नया प्रोजेक्ट और ये नया लक्ष्य यमुना को बदहाली दूर कर पाते हैं या नहीं.