नई दिल्ली: निर्भया गैंगरेप के गुनाहगारों के डेथ वारंट पर दूसरी बार रोक लगी है. इस बार अभी फांसी की सजा की कोई तिथि भी मुकर्रर नहीं की गई है. निर्भया के चार दोषियों में से अभी मुकेश ने ही फांसी से बचने के लिए सभी कानूनी विकल्प आजमाया है. बाकी तीनों दोषियों के पास अभी कानून विकल्प बचे हुए हैं.
वकील अलख आलोक श्रीवास्तव की ईटीवी भारत से खास बातचीत डेथ वारंट पर रोक की वजह
पहला डेथ वारंट 22 जनवरी के लिए जारी किया गया था. पिछले 17 जनवरी को इस डेथ वारंट पर रोक की मांग पर सुनवाई करते हुए पटियाला हाउस कोर्ट ने नया डेथ वारंट जारी करते हुए 1 फरवरी को फांसी की सजा देने का आदेश दिया था. 22 जनवरी को डेथ वारंट पर रोक की वजह ये थी कि 17 जनवरी को ही राष्ट्रपति ने मुकेश की दया याचिका खारिज की थी.
दया याचिका खारिज होने के 14 दिन के बाद ही फांसी दी जा सकती है. इसलिए पटियाला हाउस कोर्ट ने नया डेथ वारंट जारी करते हुए 1 फरवरी को फांसी की सजा देने का आदेश दिया था. इस मामले के एक दोषी विनय की दया याचिका राष्ट्रपति के पास लंबित है, जिसकी वजह से 1 फरवरी को दी जाने वाली फांसी पर पटियाला कोर्ट ने रोक लगा दी है.
किस दोषी के पास क्या है कानूनी विकल्प
1. मुकेश सिंह ने सभी कानूनी विकल्पों का इस्तेमाल कर लिया है. उसने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ रिव्यू पिटीशन, क्युरेटिव पिटीशन भी दाखिल किया था. दोनों ही याचिकाएं खारिज हो चुकी हैं. उसकी दया याचिका भी राष्ट्रपति ने खारिज कर दी है.
2. विनय शर्मा ने भी सभी कानूनी विकल्पों का इस्तेमाल कर लिया है. सुप्रीम कोर्ट ने उसकी रिव्यू पिटीशन और क्युरेटिव पिटीशन दोनों याचिकाएं खारिज कर दी थीं. विनय की दया याचिका आज ही राष्ट्रपति ने खारिज की है.
3.अक्षय ठाकुर की रिव्यू और क्युरेटिव पिटीशन खारिज हो चुकी हैं. उसने राष्ट्रपति के पास दया याचिका दाखिल की है.
4.पवन गुप्ता के पास अभी सभी विकल्प मौजूद हैं. उसने अभी तक सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ रिव्यू पिटीशन भी दाखिल नहीं की है.
क्या कहता है कानून
वकील अलख आलोक श्रीवास्तव बताते हैं कि दिल्ली जेल मैनुअल के मुताबिक अगर मृत्यु की सजा पा चुके सह-दोषियों में से अगर सबकी दया याचिका खारिज हुई हो तभी सभी को फांसी दी जा सकती है. अगर एक भी दोषी की कोई याचिका लंबित है तो किसी को फांसी नहीं दी जा सकती है.
अगर कोई दोषी क्युरेटिव पिटीशन दाखिल करता है और वो खारिज होती है तो उसके सात दिनों के अंदर उन्हें राष्ट्रपति के पास दया याचिका दायर करनी होती है. राष्ट्रपति अगर दया याचिका खारिज करते हैं तो उसके चौदह दिन के बाद ही फांसी दी जा सकती है.