नई दिल्ली:कनॉट प्लेस में वर्षों से चल रहा कॉफी होम आज भी बुज़ुर्गों के लिए प्रासंगिक बना हुआ है. यहां समाज की कई नामी गिरामी शख्सियत अक्सर आते हैं. रेगुलर आने वालों को कॉफी बड्स भी कहा जाता है, क्योंकि यहां कॉफी के साथ जोरदार चर्चा का एक अलग माहौल होता है. कॉफ़ी होम आने वाले लोग घंटों सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर चर्चा करते हैं. खास बात यह है कि सीपी जैसी जगह पर कॉपी के दीवाने घंटों यहां बैठते हैं. विशेष तौर से बुजुर्ग अपने मित्रों के साथ समय गुजारते हैं. पुरानी यादों को शेयर करते हैं. मगर, बीते कुछ वर्षों में यहां बहुत से बदलाव हुए हैं. ऐसे में आइए जानते हैं कॉफ़ी होम में हुए बदलाव और इतिहास के बारे में.
34 साल पहले खुला कॉफी होम:पिछले 30 वर्षों से लगातार कॉफ़ी होम आने वाले दीपक खन्ना ने बताया कि 1989 में दिल्ली के चीफ एक्जीक्यूटिव काउंसलर जगप्रवेश चंद्र ने कॉफी होम का उद्घाटन किया था. उन्हीं के प्रयास से सीनियर सिटीजन के लिए मीटिंग प्लेस बनाया था. उस समय 2 रुपए कप कॉफी और 4 रुपये में 2 वड़ा सांभर और चटनी के साथ मिलता था. आज मिलने वाले 2 वड़ों का दाम 100 रुपया है. अब समय के साथ खाने-पीने के आइटम में इजाफा होने के साथ इनके रेट भी बढ़ाए गए हैं. उन्होंने बताया कि अब कॉफ़ी में पहले जैसा स्वाद भी नहीं रहा.
कॉफ़ी होम का संचालन दिल्ली सरकार का दिल्ली टूरिज्म एंड ट्रांसपोर्टेशन डेवलपमेंट कॉरपोरेशन करता है. कनॉट प्लेस के अलावा पर्यटन विभाग के अंतर्गत चल रहे कई कॉफी होम बंद हो गए हैं. जैसे आरके पुरम, टाइम्स ऑफ इंडिया के सामने और विकासपुरी में कॉफी होम बंद हो गए हैं. प्यारे लाल ने बताया कि पहले केवल बाहर बैठने की जगह थी. धीरे-धीरे नई बिल्डिंग बनी. सालभर पहले कॉफी होम को रिनोवेट किया गया है, जो दिन और रात में देखने में काफी खूबसूरत हो गया. पूरी तरह वातानुकूलित कॉफी होम में सुबह से शाम तक बुजुर्ग, नौजवान, नौकरी-पेशा वाले और बिजनेसमैन बैठते हैं और चर्चा करते हैं.