नई दिल्ली/भोपाल:ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को अपरा, अचला एकादशी और भद्रकाली एकादशी (Apara Ekadashi 2021) कहा जाता है. इसकी विशेष मान्यता है. कहा जाता है कि श्री हरि का कृपा पात्र बनने के लिए और दोषों से मुक्ति हेतु इस व्रत को करने से असीम सुख की प्राप्ति होती है.
एकादशी को लेकर पहले भ्रम था लेकिन फिर ज्योतिषर्विदों ने स्पष्ट किया कि अपरा एकादशी का व्रत जिस तिथि में सूर्योदय हो उसी में करना उत्तम है. चूंकि 5 तारीख को एकादशी तिथि सूर्योदय से पहले लगी और रविवार (6 जून) को सूर्योंदय के बाद तक रहेगी, इसलिए सूर्योदय की तिथि में एकादशी व्रत करना उत्तम रहेगा.
अपरा एकादशी 2021 शुभ मुहूर्त-
एकादशी तिथि 05 जून 2021 को सुबह 04 बजकर 07 मिनट से शुरू होकर 06 जून 2021 को सुबह 06 बजकर 19 मिनट तक रहेगी. अपरा एकादशी व्रत पारण शुभ मुहूर्त 07 जून 2021 को सुबह 05 बजकर 12 मिनट से सुबह 07 बजकर 59 मिनट तक रहेगा.
कैसे करें पूजा?
पूजा के लिए सुबह जल्दी उठें. स्वयं की शुद्धि के बाद पूजा के लिए चौकी लगाएं. उस पर स्वच्छ आसन लगाकर भगवान विष्णु का चित्र या मूर्ति स्थापित करें. विष्णु जी को चंदन का टीका लगाएं. भगवान विष्णु की पूजा में उन्हें पीले फूल अर्पित करें. तुलसी भगवान श्री हरि को प्रिय है, सो वो जरूर चढ़ाएं. सुपारी, लौंग, धूप-दीप से पूजा करें व पंचामृत, मिठाई और फलों का भोग लगाएं.
अब व्रत संकल्प करें. भगवान की आरती करें. ‘ऊं नमो भगवते वासुदेवाय नम:’ का जाप करें और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ भी करें. इस दिन भोजन में केवल फलाहार लें. व्रत रखने वाले व्यक्ति को छल- कपट, झूठ और परनिंदा जैसी बातों से बचना चाहिए.
क्या है विधि विधान?
अपरा एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा एक दिन पहले दशमी तिथि की रात्रि से ही शुरू हो जाती है. दशमी तिथि के दिन सूर्यास्त के बाद भोजन ग्रहण करने की मनाही है. सुबह सूर्योदय से पहले उठें और स्नान के जल में गंगाजल मिलाकर स्नान कर साफ कपड़े पहन कर विष्णु भगवान का ध्यान करना करें.
सुबह सूर्योदय से पहले उठें और स्नान के जल में गंगाजल मिलाकर स्नान कर साफ कपड़े पहन कर विष्णु भगवान का ध्यान करना करें. पूर्व दिशा की तरफ एक पटरे पर पीला कपड़ा बिछाकर भगवान विष्णु की फोटो को स्थापित करें.
इसके बाद दीप जलाएं और कलश स्थापित करें. पूर्व दिशा की तरफ एक पटरे पर पीला कपड़ा बिछाकर भगवान विष्णु की फोटो को स्थापित करें. इसके बाद दीप जलाएं और कलश स्थापित करें.
भगवान विष्णु को सामर्थ्य अनुसार फल-फूल, पान, सुपारी, नारियल, लौंग आदि अर्पित करें और खुद भी पीले स्थान पर बैठें. अपने दाएं हाथ में जल लेकर अपनी मनोकामना का मन में ध्यान कर भगवान विष्णु से प्रार्थना करें. पूरा दिन निराहार रहकर शाम के समय अपरा एकादशी की व्रत कथा सुनें और फलाहार करें. शाम के समय भगवान विष्णु की प्रतिमा के सामने एक गाय के घी का दीपक जलाएं.
सावधानी भी जरूरी है
माना जाता है जो लोग एकादशी के दिन व्रत नहीं कर रहे हैं उन्हें इस दिन चावल नहीं खाने चाहिए. अपरा एकादशी के दिन देर तक ना सोएं. घर में लहसुन प्याज और तामसिक भोजन बिल्कुल भी ना बनाएं. एकादशी की पूजा पाठ करते समय साफ-सुथरे कपड़े पहनकर ही पूजा करें.
विशेष फलदायी है ये व्रत
पंचांग के अनुसार 5 जून 2021 से एकादशी की तिथि का आरंभ होगा. एकादशी का व्रत सभी व्रतों में श्रेष्ठ और अतिपुण्य फल प्रदान करने वाला माना गया है. एकादशी व्रत में भगवान विष्णु की विशेष पूजा की जाती है.
ज्येष्ठ मास में भगवान विष्णु की पूजा को अतिशुभ और विशेष फलदायी माना गया है. एकादशी की तिथि का आरंभ दशमी की तिथि के समापन के बाद से ही आरंभ हो जाता है. एकादशी का व्रत तिथि के आरंभ होने से ही माना जाता है.
एकादशी के नियमों का पालन तिथि के आरंभ होने से शुरू कर दिया जाता है. यही कारण है कि एकादशी का व्रत सभी व्रतों में श्रेष्ठ होने के साथ साथ कठिन भी माना जाता है. अपरा एकादशी का व्रत सभी प्रकार के पापों से मुक्ति प्रदान करता है.
भगवान वामन की पूजा इस दिन उत्तम मानी गई है. इस बार एकादशी का व्रत और पूजा शोभन योग में होगा. शास्त्रों में शोभन योग को शुभ योग बताया गया है. पूजा और नवीन कार्यों को करने के लिए यह योग अच्छा माना गया है.
क्या है कहानी?
पौराणिक कथा के अनुसार, महीध्वज नामक एक धर्मात्मा राजा था. राजा का छोटा भाई वज्रध्वज बड़े भाई से द्वेष रखता था. एक दिन अवसर पाकर इसने राजा की हत्या कर दी और जंगल में एक पीपल के नीचे उसने राजा की लाश को दफन कर दिया. अकाल मृत्यु होने के कारण राजा की आत्मा प्रेत बनकर पीपल पर रहने लगी. मार्ग से गुजरने वाले हर व्यक्ति को आत्मा परेशान करती थी.
एक दिन एक ऋषि इस रास्ते से गुजर रहे थे. इन्होंने प्रेत को देखा और अपने तपोबल से उसके प्रेत बनने का कारण जाना. ऋषि ने पीपल के पेड़ से राजा की प्रेतात्मा को नीचे उतारा और परलोक विद्या का उपदेश दिया.
राजा को प्रेत योनि से मुक्ति दिलाने के लिए ऋषि ने स्वयं अपरा एकादशी का व्रत रखा और द्वादशी के दिन व्रत पूरा होने पर व्रत का पुण्य प्रेत को दे दिया. एकादशी व्रत का पुण्य प्राप्त करके राजा प्रेत योनि से मुक्त हो गया और स्वर्ग चला गया.
क्यों कहते हैं अपरा?
प्रश्न उठता है कि ज्येष्ठ के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को अपरा या अचला क्यों कहते हैं? ज्योतिषाचार्यों के अनुसार भगवान विष्णु के आशीर्वाद से व्रत करने वाले साधक का पारिवारिक जीवन सुखमय बीतता है.
इस दिन व्रत रखने वाले लोगों को अपार धन की प्राप्ति होती है. इस एकादशी को करने से धन की देवी लक्ष्मी प्रसन्न रहती हैं और साधक को अपार धन से संपन्न बनाती हैं, इसलिए इस एकादशी को अपरा या अचला एकादशी कहते हैं.
अपरा एकादशी का शुभ मुहूर्त
- एकादशी तिथि प्रारम्भ: 05 जून, 2021 को प्रात: 04 बजकर 07 मिनट
- एकादशी तिथि समाप्त: 06 जून, 2021 को प्रात: 06 बजकर 19 मिनट
- व्रत का पारण मुहूर्त: 07 जून, 2021 को प्रात: 05 बजकर 23 मिनट से प्रात: 08 बजकर 10 मिनट
- पारण तिथि के दिन द्वादशी की तिथि के समाप्त होने का समय - 07 जून, 2021 प्रात: 08 बजकर 48 मिनट