नई दिल्ली:पिछले पांच सालों में राजधानी दिल्ली में नशे का कारोबार करीब तीन गुना हो गया है. हालांकि, इसके साथ ही तस्करों की गिरफ्तारी में भी दोगुना की बढ़ोतरी हुई है. नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्सटेंस (एनडीपीएस) एक्ट 1985 में सख्त प्रावधान होने के बावजूद नारकोटिक्स विभाग की कार्रवाई तस्करों को सजा नहीं दिला पाती है. इसका एक कारण यह भी है कि तस्कर ड्रग पैडलर के रूप में बच्चों और महिलाओं का इस्तेमाल करते हैं. नाबालिग होने के चलते बच्चों पर कोई सख्त कार्रवाई नहीं हो पाती है. इसलिए बहुत ही कम मामलों में तस्करों को सजा हो पाती है.
कड़कड़डूमा कोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता एनके सिंह भदौरिया ने बताया कि तस्करों को पकड़ने के बाद उनके खिलाफ सबूत इकट्ठे करने में पुलिस कोताही बरतती है. कई बार पुलिसकर्मी गिरफ्तार किए गए आरोपित से चरस, गांजा, हेरोइन, स्मैक या अन्य ड्रग्स की बरामदगी करते समय ठोस सबूत के रूप में उसका वीडियो नहीं बनाते हैं और ना ही उसका फोटो लेते हैं. साथ ही मौके से कोई चश्मदीद गवाह भी पुलिस नहीं बनाती है और कई बार लोग तस्करों के खिलाफ गवाही देने से मुकर भी जाते हैं या गवाह बनना पसंद नहीं करते हैं. इस वजह से कोर्ट में तस्करों पर मामला साबित नहीं हो पाता है.
कम मामलों में फोटो-वीडियो बनाते हैं पुलिसकर्मीः भदौरिया का कहना है कि बहुत कम मामलों में पुलिसकर्मी फोटो, वीडियो या सीसीटीवी फुटेज के तौर पर ठोस सबूत पेश कर पाते हैं, जिन मामलों में सुबूत पेश हो जाते हैं. उन मामलों में तस्करों को जरूर सजा हो जाती है. अन्यथा अधिकतर मामलों में वह बरी हो जाते हैं. उन्होंने बताया कि नशे के कारोबार के खिलाफ सख्त अभियान चलाने के साथ-साथ कोर्ट में भी सबूत जुटाकर तस्करों को सजा दिलानी होगी. इसके बाद ही इस कारोबार पर कुछ लगाम लग सकती है.