नई दिल्ली: दिल्ली सरकार में अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग से संबंधित विधेयक संसद में पेश होना है. सबकी नजर इस बात पर टिकी है कि क्या यह संसद से पास हो पाएगा, क्योंकि इस वक्त लगभग पूरा विपक्ष एकजुट दिख रहा है और आगामी लोकसभा चुनाव में एनडीए को टक्कर देने की तैयारी कर रहा है. लोकसभा में इस बिल के पास होने की पूरी संभावना है, क्योंकि यहां मोदी सरकार के पास पूरी संख्या है, लेकिन अगर पूरा विपक्ष चाह ले तो यह राज्यसभा में फंस सकता है. आइए डालते हैं संसद में इस अध्यादेश को लेकर बने सूरत-ए-हाल पर एक नजर...
संसद में समीकरणःलोकसभा में सत्ता पक्ष के पास 332 सदस्य हैं, जबकि राज्यसभा में इनके पास 110 सदस्य हैं. वहीं, अगर विपक्ष की बात करें तो लोकसभा में इनके पास 205 सदस्य हैं और राज्यसभा में 128 सदस्य, जो सत्ता पक्ष से अधिक हैं. वहीं, इस बिल की मुखर विरोधी आम आदमी पार्टी की परेशानी यह है कि विपक्षी गठबंधन से बाहर चल रहे ऐसे दल, जो न तो सत्ता पक्ष में और न ही विपक्ष के साथ हैं, उनका वोट किधर जाएगा. अगर इनके सदस्य को हटा दिया जाए तो फिर बिल राज्य सभा से भी पास हो सकता है.
कांग्रेस तैयारः संसद के मानसून सत्र में पेश किए जाने वाले इस बिल के खिलाफ विपक्षी दल (I.N.D.I.A.) एकजुट हैं. कांग्रेस ने राज्यसभा में इस बिल पर वोटिंग के लिए सभी सदस्यों को मौजूद रहने को कहा है. यहां तक कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह अस्वस्थ हैं, फिर भी जब राज्यसभा में यह बिल लाया जाएगा, तो वोटिंग के लिए उन्हें व्हीलचेयर पर लाने की तैयारी है.
आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सदस्य राघव चड्डा ने कहा कि आज दिल्ली का जो अध्यादेश संसद में लाया जा रहा है, इससे ज्यादा गैरकानूनी अध्यादेश संसद में कभी नहीं लाया गया. यह सिर्फ संविधान के खिलाफ ही नहीं, बल्कि दिल्ली के 2 करोड़ लोगों के भी खिलाफ है. यह एक प्रकार से भाजपा द्वारा दिल्ली के लोगों को धमकी दी जा रही है कि अगर तुम भाजपा के अलावा किसी और पार्टी को वोट देंगे तो हम उस सरकार को नपुंसक बना देंगे, उसकी सारी शक्तियां ले लेंगे. इससे ज्यादा और असंवैधानिक और गैरकानूनी अध्यादेश आज तक भारत के संसदीय इतिहास में नहीं आया है.
क्यों बना है विवादः दिल्ली के लिए केंद्र सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश को लेकर विवाद इसलिए भी है क्योंकि 11 मई को सुप्रीम कोर्ट ने उपराज्यपाल बनाम दिल्ली सरकार के मामले पर सुनवाई करते हुए चुनी हुई सरकार को सभी तरह की सेवाओं का अधिकार देने का आदेश दिया था. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के 8 दिन बाद 19 मई को केंद्र सरकार यह अध्यादेश ले आई. इसमें राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण बनाने को कहा गया है. दिल्ली सरकार में ग्रुप ए के अधिकारियों के तबादले और उन पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जिम्मेदारी उस प्राधिकरण को दे दिया गया. दिल्ली सरकार का मानना है कि इस अध्यादेश से राज्य सरकार की शक्तियां कम हो गई हैं और दिल्ली सरकार दोबारा इसके खिलाफ कोर्ट चली गई.
जल्दी में क्यों केंद्र सरकारः केंद्र सरकार जो अध्यादेश लाई है, इसे 6 महीने के भीतर कानून बनाना जरूरी है. पिछले कुछ महीनों में ट्रांसफर-पोस्टिंग को लेकर दिल्ली की राज्य और केंद्र सरकार में ठनी है. अध्यादेश राष्ट्रपति द्वारा केंद्रीय कैबिनेट की सिफारिश पर लाया जाता है और यह तब लाया जाता है जब संसद सत्र चल नहीं रहा होता है और सरकार कानून बनाना चाहती है. अध्यादेश को 6 महीने के अंदर कानून की शक्ल देनी होती है, जिसके लिए केंद्र सरकार इसे मानसून सत्र में पेश करने जा रही है.
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