नई दिल्ली:गाजियाबाद स्थित शिव शंकर ज्योतिष एवं वास्तु अनुसंधान केंद्र (Shiv Shankar Jyotish Evam Vastu Anusandhan Kendra, Ghaziabad) के आचार्य शिव कुमार शर्मा (Acharya Shiv Kumar Sharma) के मुताबिक वाल्मीकि रामायण में वर्णित है कि भगवान राम का भूमि पुत्री सीता के साथ विवाह बंधन मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी को हुआ था. इसलिए प्रतिवर्ष इस उत्सव का आयोजन किया जाता है. हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार विवाह केवल शारीरिक मिलन का ही आयोजन नहीं है बल्कि दो आत्माओं का मिलन है. वैवाहिक संबंधों की पुष्टि और सुदृढता, कुल वृद्धि और ग्रस्त जीवन में सुख शांति और प्रेम के लिए राम जानकी विवाह का उत्सव का आयोजन किया जाता है.
कथा ज़रूर सुनें:-श्री राम जानकी विवाह की पवित्रता, विश्वास की पराकाष्ठा और तन और मन के पवित्र मिलन का संकेतक है. श्री राम जानकी विवाह महोत्सव में साधक गण भगवान राम और सीता के विग्रह को सज्जित करते हैं. उन्हें सुंदर वस्त्रों और पुष्पमाला से सुसज्जित करके परस्पर वैवाहिक प्रतीक के रूप में उन्हें दूसरे को समर्पित कर देते हैं. इस अवसर पर रामायण अथवा रामचरितमानस में वर्णित राम विवाह प्रसंग के कथा सुनने से परिवार और गृहस्थ जीवन में सुख शांति का लाभ होता है. साथ-साथ विवाह योग्य युवक और युवतियों को भी राम जानकी विवाह का प्रसंग अवश्य सुनना चाहिए.
विशिष्ट पूजा करें:- राम जानकी विवाह के प्रसंग को सुनने से पारिवारिक एकता, पति पत्नी का आपसी विश्वास, स्नेह और माधुर्य हमेशा बना रहता है. श्री राम सीता के विग्रह को सज्जित करने के पश्चात भगवान राम सीता के विग्रह को फल, फूल, द्रव्य, नैवेद्य मिष्ठान आदि का भोग लगाकर उनकी विशिष्ट पूजा करनी चाहिए.
विवाह पंचमी मुहूर्त
- पंचमी तिथि की शुरुआत:- 27 नवंबर को शाम 4 बजकर 25 मिनट पर.
- पंचमी तिथि समाप्त:- 28 नवंबर को दोपहर 1 बजकर 35 मिनट पर.
रावण के आतंक किया अंत:- हिंदू धर्म में मान्यता है कि भगवान राम एक मर्यादा पुरुष हैं और सीता माता उनके जीवन की आदिशक्ति हैं. सीता माता के साथ रहते हुए ही भगवान राम रावण का वध कर सकें. उन्हीं के साथ रहते हुए पृथ्वी को रावण आदि राक्षसों के अत्याचारों से मुक्त किया. श्री राम का सीता माता के साथ का पाणिग्रहण संस्कार न होता तो पूरी पृथ्वी पर रावण का आतंक फैल जाता.
मां सीता शक्ति के रूप में राम के साथ रही:- आचार्य शिव कुमार शर्मा बताते हैं कि विवाह होने के बाद ही राजतिलक के स्थान पर राम को वनवास मिला. सीता भगवान राम और लक्ष्मण के साथ 14 वर्षों तक वनों में दर-दर भटकती रही और वनवास की अंतिम अवधि में उनका रावण ने हरण कर लिया था. भगवान राम दिव्य महापुरुष और अवतारी मानव थे और माता सीता उनकी शक्ति के रूप में सदैव साथ रही, जिससे भगवान राम ने मारीच, सुबाहु, खर, दूषण आदि दुष्टों का अंत किया. जैसे मां पार्वती के बिना शिव अधूरे हैं, ऐसे ही मां सीता के बिना राम अधूरे हैं. और सीता माता तो आद्या शक्ति है जो पल-पल पर भगवान राम को मर्यादित जीवन की याद कराती हैं.