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UGC Guidelines: DU में अब छात्र लेंगे 12 घंटे की क्लास, शिक्षक संगठनों ने किया विरोध

यूजीसी ने डीयू से कहा है कि वह अपने छात्रों को 12 घंटे की क्लास देना सुनिश्चित करें. इसके साथ ही कक्षाओं और प्रयोगशाला को कम से कम सुबह 08:00 बजे से रात 08:00 बजे तक सभी कार्य दिवसों पर खोला जाना चाहिए. हालांकि यूजीसी के इस फैसले का शिक्षक संगठनों ने कड़ा विरोध किया है.

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Published : May 6, 2023, 2:25 PM IST

नई दिल्ली: दिल्ली यूनिवर्सिटी (डीयू) अब विश्वविद्यालय अनुदान आयोग(यूजीसी) के दिशा निर्देश पर अपने छात्रों को 12 घंटे की क्लास देना सुनिश्चित करेगा. इस संबंध में दिल्ली यूनिवर्सिटी ने अपनी वेबसाइट पर आदेश जारी कर दिया है. आदेश में कहा गया है कि यूजीसी ने जनवरी माह में डीयू और देश की अन्य केंद्रीय विश्वविद्यालयों को निर्देश दिया था कि उपलब्ध संसाधनों के इष्टतम उपयोग के लिए उचित उपाय करें, ताकि यूजी/पीजी छात्रों और शोधकर्ताओं को लाभ मिल सके.

यूजीसी के उक्त दिशा-निर्देशों के खंड 8 में कहा गया है कि संसाधनों के इष्टतम उपयोग के लिए कक्षाओं और प्रयोगशाला को कम से कम सुबह 08:00 बजे से रात 08:00 बजे तक सभी कार्य दिवसों पर खोला जाना चाहिए. डीयू ने अपने आदेश में कहा है कि सभी कॉलेजों और विभागों को कक्षाओं और प्रयोगशाला को छात्रों की सुविधाओं के लिए सुबह 08:00 बजे से रात 08:00 बजे तक खोलने के लिए उचित उपाय करने की आवश्यकता है. डीयू ने साथ ही साथ इस संबंध में कॉलेजों से 31 मई तक रिपोर्ट जमा करने के लिए कहा है.

छात्रों को लाभ होगा: यूजीसी चेयरमैन :यूजीसी चैयरमेन जगदीश कुमार ने बताया कि कॉलेजों में छात्रों को सभी उपलब्ध संसाधनों का लाभ मिल सके. इस संबंध में यूजीसी के द्वारा 14 जनवरी को दिशा-निर्देश जारी किए गए. इन निर्देशों से कॉलेजों में उपयुक्त प्रोटोकॉल विकसित किया जाना चाहिए, जिससे इसका सबसे बड़ा लाभ हमारे छात्रों को होगा.

शिक्षक संगठन ने जताया विरोध :अकादमिक फॉर एक्शन एंड डेवलपमेंट दिल्ली टीचर्स एसोसिएशन (AADTA) के मीडिया इंचार्ज राजेश झा ने बताया कि 11 जनवरी 2023 अधिसूचित निर्देश कों लागू कर सभी कार्य दिवसों पर क्लास रूम और प्रयोगशालाओं को सुबह 8 बजे से रात 8 बजे तक खोलने का निर्णय ले रहा है, उसका हम विरोध करते हैं. इसे इस पृष्ठभूमि में देखे जाने की जरूरत है, जहां वर्तमान शिक्षा मंत्रालय यूनिवर्सिटी और कॉलेजों पर अपना खर्च कम करती जा रही है, ओबीसी और ईडब्ल्यूएस आरक्षण के पद में दिए जाने वाले और शिक्षक, कर्मचारी और पैसे ना देना और चालीस प्रतिशत क्लासेज को ऑनलाइन में ले जाया जा रहा है.

यूजीसी दिशानिर्देश विश्वविद्यालय को अकादमिक संस्थान से बदल कर मशीनी संस्थान के रूप में परिवर्तित करने के लिए बढ़ाया गया एक कदम है. कहना न होगा, विश्वविद्यालय शिक्षा प्रणाली नए विचार सृजित करने और उसे विकसित करने के लिए है, ना कि यह प्रोडक्शन वर्क कल्चर के लिए है. लेकिन यूजीसी का दिशा निर्देश और उसके आधार पर दिल्ली विश्वविद्यालय का आत्मसमर्पण इस ओर संकेत करता है कि केंद्र सरकार एनईपी 2020 के तहत सार्वजनिक विश्वविद्यालय और कालेजों को निजीकरण की तरफ धकेल रही है और छात्रों से उच्च शुल्क वसूल किया जाएगा.

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इस संदर्भ में, निम्नलिखित बिंदुओं पर हमारी कड़ी आपत्ति है:

1. संबंधित दिशा-निर्देशों में अतिरिक्त संसाधनों में निवेश के बिना संसाधनों के अधिकतम उपयोग पर जोर दिया गया है. यह विचार छोटे संस्थानों के लिए कुछ हद तक अच्छा हो भी सकता है, लेकिन दिल्ली विश्वविद्यालय के संदर्भ में देखें तो, बुनियादी ढांचे में कोई महत्वपूर्ण वृद्धि किए बिना बड़ी संख्या में छात्रों के प्रवेश के कारण विश्वविद्यालय के कॉलेज-संसाधनों पर पहले से ही जो भारी बोझ है वो और भी लचर हालत मे पहुंच जाएगा. सरकार ने ईडब्ल्यूएस विस्तार में छात्रों की संख्या तो बढ़ा दी है लेकिन शिक्षण पद के साथ-साथ बुनियादी ढांचे को मंजूरी नहीं दी है.

2. चूंकि कॉलेजों को यूजीसी से किसी भी प्रकार की विज्ञान प्रयोगशाला विकास निधि नहीं मिल रही है. इसका मतलब है कि आने वाले समय में यह शुल्क छात्रों की फीस से वसूला जाएगा, जो कि निश्चित रूप से हर साल कॉलेज फीस में वृद्धि करेगा. जिससे सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के छात्र प्रभावित होंगे.

3. समन्वय समिति द्वारा टाइम टेबल तय करने की बात की जा रही है, जिससे पूरे कॉलेज का टाइम टेबल बिगड़ जाएगा. अतिथि कॉलेज छात्र हमेशा दिल्ली के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में भागते रहेंगे और बिना किसी जानकारी के यात्रा में अपना बहुमूल्य समय खो देंगे. इससे छात्रों की पढ़ाई प्रभावित होगी.

4. असल में संसाधनों को साझा करने का उद्देश्य क्लासरूम टीचिंग के स्थान पर ऑनलाइन टीचिंग पर निर्भरता बढ़ाना प्रतीत होता है.

5. शोध के लिए सहयोग कोष के संदर्भ में भी यह निर्णय तुगलकी फरमान प्रतीत होता दिख रहा है क्योंकि महाविद्यालयों के पास शोध के लिए कोई कोष नहीं है. इसे छात्र की फीस से जोड़ा जाएगा.

6. यह मॉडल उन संस्थानों में ज्यादा प्रभावी होगा जहां सभी छात्रों के लिए हॉस्टल हो, पर आज हॉस्टल के लिए कर्ज लेने के लिए बाध्य किया जा रहा है.

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