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करोड़ों के घोटाले में गिरफ्तार हुए कंपनी के 2 अधिकारी, EOW का एक्शन - रेलिगरे फिनवेस्ट लिमिटेड करोड़ों रुपये के घोटाले

आर्थिक अपराध शाखा ने करोड़ों रुपये का घोटाला करने वाले दो आरोपियों को गिरफ्तार किया है. दोनों ने रेलिगरे फिनवेस्ट लिमिटेड नाम की एक कंपनी के रुपयों का दुरुपयोग कर बहुत सी कंपनियों को लोन दिया था.

two officials of religare finvest limted company arrested for doing money fraud
पैसा का घोटाला करने वाले दो अधिकारी गिरफ्तार

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Published : Oct 27, 2020, 4:36 PM IST

नई दिल्ली:करोड़ों रुपये के घोटाले में आर्थिक अपराध शाखा ने दो आरोपियों को गिरफ्तार किया है. इनकी पहचान मनिंदर सिंह और नरेंद्र घोषाल के रूप में की गई है. आरोपियों ने कंपनी के रुपयों का दुरुपयोग किया था. अदालत में आज दोनों आरोपियों की पेशी होगी.

करोड़ों के घोटाले में गिरफ्तार हुए कंपनी के 2 अधिकारी.

कंपनी को हुआ 2397 करोड़ का नुकसान

संयुक्त आयुक्त ओपी मिश्रा के अनुसार रेलिगरे फिनवेस्ट लिमिटेड के अधिकारी मनप्रीत सिंह सूरी की तरफ से मालविंदर सिंह, शिवेंद्र मोहन सिंह और सुनील गोड़वानी के खिलाफ शिकायत की थी. यह लोग इस कंपनी में बड़े पद पर कार्यरत थे. शिकायत में उन्होंने बताया कि आरोपियों ने कई ऐसी कंपनी को लोन दिया, जिसकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी. इन कंपनियों ने रुपये नहीं लौटाए, जिससे उनकी कंपनी को 2397 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ. मनिंदर सिंह रेलिगरे कंपनी में 2017 में सीईओ और निदेशक थे. कंपनी के प्रमोटर मालविंदर सिंह और शिवेंद्र सिंह के साथ वह इस पूरी साजिश में शामिल थे.

13 लोन में दिए 700 करोड़ रुपये

शिकायतकर्ता ने पुलिस को बताया कि मनिंदर सिंह और कवि अरोड़ा ने 13 लोन में 700 करोड़ रुपये की राशि जारी की. नरेंद्र कुमार घोषाल आर्च फाइनेंस लिमिटेड में डायरेक्टर और प्रमोटर था. आरएफएल के जरिए फाइनेंथियल ट्रांजैक्शन के लिए यह पूरा काम नरेंद्र और उसके साथियों द्वारा किया गया था. प्राथमिक छानबीन के बाद आर्थिक अपराध शाखा द्वारा मार्च 2019 में एफआईआर दर्ज की गई. एसीपी अमरदीप सहगल की देखरेख में पुलिस मामले की जांच शुरू की.

दोनों आरोपी किये गए गिरफ्तार

इस मामले में कंपनी के कई अधिकारियों से पूछताछ की गई. छानबीन कर रही पुलिस टीम ने मनिंदर सिंह और नरेंद्र कुमार घोषाल को 27 अक्टूबर को गिरफ्तार कर लिया है. वर्ष 2008 में आरएफएल के कारोबार से संबंधित कॉरपोरेट लोन बुक बनाई गई थी. इसके जरिए कंपनियों को लोन दिया जाना था. यह लोन कंपनी के प्रमोटर के द्वारा दिया जाता था. शुरुआत में रियल एस्टेट बिजनेस में यह पैसा लगाया गया, लेकिन बाद में आरोपियों ने प्रमोटर के साथ मिलकर इस रुपये को अपने फायदे के लिए दूसरी कंपनियों में इस्तेमाल किया.

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