नई दिल्लीःआज 1 जुलाई को GST लागू होने के 6 साल पूरे हो गए हैं. इसको लेकर देश और दिल्ली में व्यापारियों के शीर्ष संगठन चैंबर ऑफ ट्रेड एंड इंडस्ट्री (सीटीआई) ने अपनी रिपोर्ट पेश की है. सीटीआई चेयरमैन बृजेश गोयल और अध्यक्ष सुभाष खंडेलवाल ने बताया कि 6 साल पूरे होने के बाद भी जीएसटी में समस्याओं का अंबार है और लोगों की न केवल लागत बढ़ी है बल्कि कागजी कार्यवाही भी बढ़ गई है. वैट की तरह जीएसटी भी इनपुट आउटपुट पर आधारित है. पर जहां वैट रिटर्न्स सिंपल थी, जीएसटी में रिटर्न्स सिस्टम काफी जटिल हैं. वैट में एक वर्ष में चार रिटर्न्स थी. जीएसटी में दो दर्जन से ऊपर है.
सीटीआई के सदस्यों का आरोप है कि इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) जीएसटी की प्रयोगशाला बन गया है. कभी किसी पर आईटीसी मिलेगा, तो कभी नहीं मिलेगा. कभी पूरा मिलेगा, तो कभी नहीं मिलेगा. किसी पर 20% का फार्मूला लागू किया गया, फिर 10% हो गया. उसके बाद 5% आ गया. इन छह सालों में जीएसटी में आईटीसी पर कई प्रयोग किए गए हैं.
उनका कहना है कि अब ये चल रहा है कि अगर आपके सप्लायर ने अपनी रिटर्न एक घंटे या एक दिन देरी से फाइल की तो उसके माल का जीएसटी हमको देना पड़ता है. यह स्थिति नितांत अव्यवहारिक है. व्यापार को ठेस पहुंच रहा है. सप्लायर ने टैक्स नहीं दिया, देरी से दिया या रिटर्न देरी से फाइल की है तो जीएसटी डिपार्टमेंट उसको देखे, जिसने माल खरीदा है. उस से सप्लायर का जीएसटी क्यों लेते हो?
इनकम टैक्स में दो-दो रिवाइज्ड रिटर्न्स हैः उनका कहना है कि छह साल पहले जीएसटी आया था. उसमें रिवाइज रिटर्न नहीं थी. इस गलती का एहसास हुआ. संसद ने कानून में संशोधन किया और जीएसटी में भी रिवाइज रिटर्न लागू की गई. सीटीआई का कहना है कि यह आश्चर्यजनक है कि आज तक रिवाइज्ड रिटर्न जीएसटी पोर्टल पर लॉन्च नहीं की गई है. इससे होता यह है कि पिछले साल का डाटा इस साल की रिटर्न आ जाता है. इस साल का डाटा अगले साल की रिटर्न्स में चला जाता है. कोई भी रिटर्न अपने आप में पूरी नहीं होती है. अनावश्यक नोटिस और दूसरी कार्यवाहियां भुगतनी पड़ती है. जब रिवाइज रिटर्न लॉन्च हो जाएगी, तब एनुअल रिटर्न की भी कोई जरूरत नहीं रहेगी.
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सीटीआई का कहना है कि एक करोड़ से ज्यादा व्यापारी जो जीएसटी में रजिस्टर्ड हैं, वो सोलप्रोप्राइटर हैं. उसकी मृत्यु होने पर उसका व्यापार तुरंत प्रभाव से ठप्प हो जाता है. मृत्यु के एकदम बाद जीएसटी रजिस्ट्रेशन खत्म हो जाता है. लंबा वक्त जीएसटी की जटिल प्रक्रियों में लग जाता है. उसके बाद ही उसके उत्तराधिकारी व्यापार को दुबारा आरंभ कर पाते हैं. तब तक व्यापार ठप रहता है. जीएसटी से पहले वैट के समय मृत्यु के बाद भी कारोबार चलता रहा था. उत्तराधिकारी की प्रक्रियाएं बाद में पूरी की जाती थी.
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